बड़वानी। एक छोटा सा वायरस पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया है, जिसका सबसे बुरा असर गरीब और मध्यम वर्ग पर पड़ा है. खासकर, इससे वो लोग ज्यादा प्रभावित हुए हैं, जिनका चूल्हा तभी जलता है, जब उनकी कमाई होती है. प्रदेश के आदिवासी जिले बड़वानी के हजारों ऐसे कारीगर हैं, जिनकी दिन भर की मेहनत से शाम को उनका पेट भरता था, पर इस महामारी से बचाने के लिए किए गए लॉकडाउन ने एक तरह से इन सबको बर्बाद कर दिया है. फिलहाल, अभी इनके आबाद होने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं.
लॉकडाउन के चलते करोड़ों लोगों के सामने जीविका का संकट खड़ा हो गया है, छोटे-मोट कारीगर जो अपने हुनर के जरिए अपना परिवार पालते थे, अब उनकी रोजी-रोटी पर भी संकट खड़ा हो गया है क्योंकि मूर्ति की मांग बेहद कम हो गई है, जिससे मूर्ति बनाने वाले कलाकार एक तरह से बेरोजगार हो गए हैं. इसके अलावा आशा गांव में हस्तशिल्प का काम कर अपना भरण पोषण करने वाले कुष्ठ रोगी बेहाल हो गए हैं क्योंकि उनके द्वारा बनाई गई चादर-दरी की बिक्री भी ठप हो गई है.
आशा ग्राम के दिनेश मण्डलोई बताते हैं कि 30 सालों से उनका हस्तशिल्प का काम चल रहा था, जो अब अस्त-व्यस्त हो गया है. इसकी वजह से कई कुष्ठ रोगी परेशानियों से जूझ रहे हैं. कुष्ठ रोगियों द्वारा निर्मित सामग्री का विक्रय करने वाले नानूराम पाटीदार का कहना है कि कुष्ठ रोगियों द्वारा निर्मित सामान आसपास के जिलों के अलावा दूसरे राज्यों के लोग खरीदते हैं. लॉकडाउन के पहले एक लाख से ज्यादा का व्यवसाय हुआ था, लेकिन लॉकडाउन के चलते उनका व्यवसाय पूरी तरह ठप पड़ गया है.
मूर्तिकारों पर छाया संकट