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'सफेद सोना' उगाने वाले किसानों का बुरा हाल, पहले बारिश की मार, फिर मंडी कर्मचारियों की हड़ताल ने किया परेशान - सफेद सोना यानी कपास

देश भर में सफेद सोना यानि कपास के लिए मशहूर किसान इन दिनों परेशान हैं. बारिश की मार के बाद फसल का उचित दाम नहीं मिलने से किसानों को दोहरी मार पड़ी है. पढ़ें पूरी खबर...

Spoiled cotton
किसान हुए बेहाल

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Published : Oct 19, 2020, 3:21 AM IST

बड़वानी।कभी मौसम की मार तो कभी मंडी कर्मचारियों की हड़ताल, इन सबके बीच पीस रहा निमाड़ का किसान. सफेद सोना यानी कपास के लिए देश भर में मशहूर निमाड़ अंचल में किसानों में त्राहि-त्राहि मची हुई है. करीब चार महीने तक खेतों में अपना पसीना बहा कर फसल तैयार करने वाले किसानों को उम्मीद थी कि इस साल अच्छा उत्पादन होगा और उचित दाम भी मिलेंगे लेकिन आसमान से बरसे आफत के गोलों ने जहां किसानों के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया, वहीं अब बची फसल का उचित दाम नहीं मिलने से किसानों को दोहरी मार पड़ी है.

किसान हुए बेहाल

किसान कर रहे ठगा महसूस

कपास की पैदावार के मामले में निमाड़ के किसान अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं. मंडी अधिकारी और व्यापारियों की मोनोपोली के चलते किसान को कम दामों पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है. बड़वानी जिले में जहां कपास करीब 72 हजार हेक्टेयर तथा मक्का करीब 63 हजार हेक्टेयर में बोया गया है. लेकिन जैसी फसल होनी चाहिए थी, प्राकृतिक मार के चलते ऐसा नहीं हो पाया. निमाड़ में कपास का उत्पादन 1 एक एकड़ में करीब 15 क्विंटल तक होता है लेकिन बारिश के चलते 4 से 5 क्विंटल तक ही हो पाया है. सरकार ने समर्थन मूल्य 5500 से 5700 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है लेकिन CCI (Cotton Corporation of India) की खरीदी नहीं होने से 1200 से ज्यादा 2500 रुपए क्विंटल की खरीदी व्यापारी कर रहे हैं.

किसान हुए परेशान

मक्के के मुकाबले कपास ने मारी बाजी

जिले में मक्का और कपास दोनों की ही अच्छी पैदावार होती है. लेकिन इस साल अतिवृष्टि के कारण दोनों ही फसलों को काफी नुकसान हुआ है. हालांकि फिर भी मक्का के मुकाबले कपास ने बाजी मार ली है.

खराब हुआ कपास

नहीं निकल पा रही लागत

जिले में कपास की बड़ी आवक अंजड़ कृषि मंडी में होती है, जहां मंडी सचिव के मुताबिक 25 अक्टूबर तक संभावित खरीदी शुरू हो सकती है. हालांकि इसके लिए शासनस्तर से कोई आदेश जारी नहीं हुआ है. जिले में पिछले साल 25 हजार 273 मेट्रिक टन कपास की खरीदी हुई थी वहीं मक्का की 39 हजार 986 मेट्रिक टन खरीदी हुई थी. मक्का की फसल को लेकर किसानों का कहना है कि पहले तो मक्का के बीज के लिए भटकना पड़ा फिर बमुश्किल बीज मिला तो अतिवृष्टि के चलते इल्लियों का प्रकोप फसल पर पड़ गया. वहीं मजदूरी भी महंगी हो गई है क्योंकि वर्तमान में ज्यादातर मजदूर गुजरात मजदूरी के लिए वापस लौट गए हैं.

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किसानों का कहना है कि प्रकृति के बर्बाद हो गए हैं. ऐसी हालात में मुनाफा तो दूर लागत मूल्य भी निकाल पाना मुश्किल हो गया है. बाजार से महंगा खाद बीज खरीद कर फसल बोई थी लेकिन प्राकृतिक आपदा ने उनके सपनों को धराशाई कर दिया और किसान फिर से नए कर्ज के बोझ तले दबने को मजबूर हैं.

इस साल लगातार बारिश से कपास सहित खरीफ की सभी फसलों को काफी नुकसान हुआ है. 1 एकड़ में करीब 15 क्विंटल तक पैदावार होने वाला सफेद सोना निमाड़ की शान माना जाता है लेकिन वर्तमान में महज से 4 से 5 क्विंटल ही उत्पादन हो पाया है. पहले प्रकृति की मार और फिर व्यापारी की मनमानी से किसानों की कमर तो टूट रही है. वहीं रही सही कसर बैंको के बढ़ते कर्जे और साहूकारों का चुंगल पूरा कर देता है.

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