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बर्बाद हो रही खुदाई में मिली परमार कालीन मूर्तियां-शिलालेख, पुरातत्व विभाग नहीं ले रहा सुध

बड़वानी में किसानों के खेत से मूर्तियां और खजुराहो से मिलती जुलती आकृति वाली प्रतिमाएं भी निकलती रहती हैं, लेकिन पुरातत्व विभाग की लापरवाही की वजह से यहां हजारों साल पुरानी मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं.

Thousands of years old idols being destroyed by carelessness
लापरवाही से नष्ट हो रही हजारों साल पुरानी मूर्तियां

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Published : Aug 3, 2020, 12:20 PM IST

बड़वानी। मध्यप्रदेश प्राचीन कालकृतियों और मूर्तियों के मामले में धनी है. इन धरोहरों को सहेजने के लिए ही पुरातत्त्व विभाग का गठन किया गया है, लेकिन बड़वानी में पुरातत्व विभाग की अनदेखी की वजह से बेशकीमती धरोहर दिन ब दिन खंडित होती जा रही है, जिले में किसानों के खेत से मूर्तियां और खजुराहो से मिलती जुलती आकृति वाली प्रतिमाएं निकलती रहती हैं, लेकिन लापरवाही की वजह से यहां हजारों साल पुरानी मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं.

लापरवाही से नष्ट हो रही हजारों साल पुरानी मूर्तियां

जिले के निवाली विकास खंड अंतर्गत वझर और फुलजवारी में किसानों के खेतों में जुताई के दौरान प्राचीन मंदिर, मूर्तियां और शिलालेख निकल रहे हैं. किसानों के खेतों से निकली असंख्य मूर्तियां संग्रहित कर मंदिर के पास रख दी गई हैं. कुछ मूर्तियां और शिलालेख का किसान खेतों की मेढ़ और घरों के ओटले बनाकर उपयोग कर रहे हैं तो कई मूर्तियां जस की तस पड़ी हैं. कई मूर्तियों का संरक्षण नहीं होने से टूट गई हैं. दो गांवों के खेतों में महज दो से तीन फीट खुदाई करने पर ही जमीन के अंदर से शिवलिंग, ब्रह्मा, गणेश, बजरंगबली, नन्दी, जैन धर्म की मूर्तियों के अलावा खजुराहो स्थित कलाकृतियों की तरह दिखने वाली पाषण प्रतिमाएं शिलालेख और अन्य देवी देवताओं के अलावा मंदिर निकलते हैं. इसके बाद भी इन्हें सहेजने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है.

पुरातत्व विभाग की अनदेखी

पुरातत्व विभाग ने यहां की कुछ मूर्तियों को इंदौर, मांडव और खरगोन जिले के संग्रहालय में रखवा दिया है, लेकिन अधिकांश मूर्तियां यहां वहां बिखरी पड़ी हैं. ग्रामीणों की मांग है कि बड़ा संग्रहालय बनाकर इन पाषण प्रतिमाओं को संरक्षित किया जाए और इसको पर्यटन स्थल घोषित किया जाए. जिससे ग्रामीणों की आय भी बढ़े.

क्षतिग्रस्त हो रही मूर्तियां

इतिहासकार बताते हैं कि खुदाई में इन स्थानों पर मिले प्राचीन मंदिर, मूर्तियां और शिलालेख 7वीं से 12वीं शताब्दी की है. इतिहासकार शिवनारायण यादव का कहना है कि पूरे निमाड़ में परमार वंश का एकाधिकार रहा है, जो शैवपंथी होकर अन्य धर्मों का भी सम्मान करते थे. उस दौरान जैन अनुयाइयों को भी उनके धर्म के प्रसार की छूट थी. खजुराहो की तर्ज पर मिली मूर्तियों को लेकर इतिहासकार बताते हैं कि शैवपंथियों ने कलाकृतियों के माध्यम से संदेश दिया है कि सब तरह की कामुकता से निर्वरत होकर व्यक्ति अंत में शिव की शरण में जाता है.

यहां वहां रखी है मूर्तियां

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