बालाघाट।राष्ट्र की प्रगति और सामाजिक स्वतंत्रता में शिक्षित महिलाओं की भूमिका उतनी ही अहम है, जितनी कि पुरुषों की. इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब-जब नारी ने आगे बढ़कर अपनी बात सही तरीके से रखी है, समाज और राष्ट्र ने उसे पूरा सम्मान दिया है. आज समाज में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से भी लोगों की सोच में भारी बदलाव आया है. आधिकारिक तौर पर भी अब नारी को पुरुष से कमतर नहीं आंका जाता. यही कारण है कि महिलाएं पहले से अधिक सशक्त और आत्मनिर्भर हुई हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आज हम आपको ऐसी ही निष्ठावान और कर्तव्यपरायण एक शिक्षिका के जोश, जुनुज और जज्बे से वाकिफ करवा रहे है, जिसने सरकारी स्कूल की परिभाषा को ही बदलकर रख दिया.
बालाघाट जिले में एक ऐसा स्कूल है, जो मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सीमा पर स्थित रजेगांव के समीप लगा हुए बगड़मारा गांव में है. जहां पर शिक्षिका तिलोत्तमा कटरे ने ऐसा ही कमाल कोरोना काल में भी कर दिखाया है. सुबह से शाम और रात तक इनके जीवन का सिर्फ एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य है. सिर्फ अपने स्कूल के बच्चों का सर्वांगीण विकास. यहां शिक्षिका के संबंध में वह बात कही जा सकती है जो फिल्म दंगल में महावीर फोगाट के रोल में आमिर खान के स्वरों में दिखाया गया कि 'म्हारी बेटियां छोरों से कम है के' ठीक उसी अंदाज में शिक्षिका तिलोत्तमा कटरे के लिए कहा जा सकता है कि, 'उनके स्कूल के बच्चे प्रायवेट स्कूलों से कम है के'.
- स्कूल के उत्थान में लगाए वेतन के पैसे
तीन वर्षों से बगड़मारा स्कूल में पदस्थ तिलोत्तमा कटरे ने पहले अपने वेतन के पचास हजार रुपए लगाकर स्कूल भवन की मरम्मत करवाई, और उसे आकर्षक स्वरुप देने का प्रयास किया. वहीं जब कोरोना काल में स्कूलों में बच्चों का आना बंद करवा दिया गया. तब भी तिलोत्तमा कटरे ने प्रयास जारी रखे, अपने क्लासरुम को विविध साजो सामान से सजाते हुए लगभाग पचास हजार रुपए दोबारा अपने वेतन से खर्च कर स्कूल का स्वरुप बदल दिया.