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नींद में हैं हुक्मरान, पेड़ के नीचे जिंदगी बिताने को मजबूर बैगा परिवार

बालाघाट जिले के बैहर में दो बैगा परिवार पिछले दो सालों से पेड़ के नीचे जिंदगी बिताने को मजबूर है. जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. आलम ये है कि दोनों बैगा परिवारों के लिए दाने-दाने के लिए मोहताज होना पड़ रहा है. लेकिन उनकी खबर लेने वाला कोई नहीं है.

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Published : May 10, 2020, 6:04 PM IST

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पेड़ के नीचे जिंदगी बिताने को मजबूर बैगा परिवार

बालाघाट। जिले के बैहर नगर पालिका के वार्ड नंबर दो में पिछले कई वर्षों से दो बैगा परिवार पेड़ के नीचे जिंदगी बिताने को मजबूर है. जिनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है. कहने को बैगा देश की अतिसंरक्षित जनजाति में आती है. जिनका विशेष ध्यान रखने का सरकार दावा करती है. लेकिन इन दो बैगा परिवारों की स्थिति देखकर ये दावे धरे के धरे नजर आते है. क्योंकि आवास का लाभ तो छोड़िए मूलभूत सुविधाएं भी इन दोनों परिवारों से कोसो दूर हैं.

पेड़ के नीचे जिंदगी बिताने को मजबूर बैगा परिवार

खुले आसमान में पेड़ के नीचे पत्थर के चूल्हे के इर्द-गिर्द अपने परिवार को चलाने वाली ये ये दोनो बैगा परिवार पिछले दो सालों से ऐसे ही रह रहे हैं. गरीब बुधियारिन बैगा जो बेबस नजरों से थोड़े रहमो करम के मोहताज होकर शायद अपने नसीब को कोस रही है जिसकी सुध लेने वाला फिलहाल कोई नजर नहीं आता. पेड़ के नीचे रह रहे इन दो बैगा परिवारों पर किसी जनरप्रनिधि और प्रशासनिक अधिकारी की नजर तक नहीं पड़ी.

नहीं मिल रही सरकारी की मदद

पेड़ के नीचे रह रहे इन दोनों मजदूरों को किसी प्रकार की कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. ना तो मूलभूत व्यवस्था के लिए राशन कार्ड, समग्र आईडी और न अन्य कोई दस्तावेज अब तक इन दोनों परिवारों के बन पाए है. आलम ये है कि यातनाओं को भोग रहे दोनो बैगा परिवार के लोग दाने-दाने के लिए भी मोहताज होना पड़ रहा है. महुए के पेड़ के नीचे जिंदगी बिताने वाले इन परिवार का हाल आंधी-तूफान, बारिश और कड़ाके की ठंड में क्या होता होगा इसका अंदाजा लगाकर ही शरीर मे सिहरन सी दौड़ने लगती है. लेकिन अफसोस कोई इनके तरफ ध्यान देने वाला तक नहीं है.

पेड़ के नीचे रहकर जैसे तैसे जिंदगी को यातनाओं में काटने को मजबूर ये बैगा परिवार कई वर्षों से रहने को मजबूर है. हैरानी की बात ये है कि मलाजखंड नगर पालिका के अधिकारी और कर्मचारी यहां तक कि वोट लेने वाले पार्षद, अध्यक्ष को आजतक इनकी भनक तक नहीं लगी यह बड़ा सवाल ये है. ऐसे कई सवाल हैं जो जिम्मेदारों के मुंह पर झन्नाटेदार तमाचा मार रहे हैं.

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