बालाघाट। बालाघाट के चावलों को जीआई टैग (Geographical Indication) (GI) Tag मिल गया है. G1 टैग मिलने से किसानों की आय बढ़ेगी. इससे यहां के चावलों को वैश्विक बाजार में उचित स्थान और दाम मिलेगा. इस उपलब्धि का लाभ सीधे किसानों को मिलेगा.
सीएम शिवराज सिंह ने जताई खुशी
बालाघाट के चिन्नौर चावल को जीआई टैग मिलने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुशी जाहिर की है. शिवराज सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को धन्यवाद दिया है. शिवराज सिंह ने उम्मीद जताई है कि इससे बालाघाट का चिन्नौर देश दुनिया में छा जाएगा. इससे किसानों की आय दोगुनी करने के पीएम मोदी के प्रयास को भी बल मिलेगा.
बालाघाट के चिन्नौर की खासियत
धान को सुगंध के लिए वैज्ञानिक तौर तीन श्रेणी में बांटा गया है-निम्न, मध्यम और तीव्र सुगंध. चिन्नौर तीव्र सुगंध वाली किस्म में शामिल है. सामान्यत: चावल में राइस ब्रान की मात्रा 17-18 प्रतिशत होती है, जबकि चिन्नौर में 20-21 प्रतिशत होती है.
चिन्नौर के चावल की खासियत इसकी महक और स्वाद है. उन्नत किस्म की इस धान के चावल के भीगने के बाद की खुशबू और पकने के बाद की मिठास का जिसने भी स्वाद लिया है, वह भूल नहीं सका. चिन्नौर का स्वाद ही नहीं महक भी गजब की है.
- इस धान का चावल अधिक खुशबूदार होता है
- यह धान की सभी किस्मों में सबसे उत्तम है
- चिन्नौर 160 दिन में पकती है
- इसकी ऊंचाई 150 सेमी होती है
- एक एकड़ में 7-8 क्विंटल उत्पादन होता है
क्या है जीआई टैग ? (What is GI Tag)
भारत ने मई, 2010 में अपने यहां सात राज्यों में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh), पंजाब (Panjab), हरियाणा (Haryana), उत्तराखंड (Uttarakhand), दिल्ली (Delhi) के बाहरी क्षेत्रों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) और जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के कुछ भागों में बासमती को जीआई टैग दिया था. किसी उत्पाद को उसके उत्पत्ति की विशेष भौगोलिक पहचान से जोड़ने के लिए जीआई टैग दिया जाता है. ताकि वह उत्पाद अलग और खास बन सके.
संसद से मिली मान्यता
भारतीय संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशेष वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है. ये जीआई टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में मिलने वाले उत्पाद का दूसरे स्थान पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है.
जीआई टैग के फायदे
जीआई टैग के जरिये उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है यानि जीआई टैग उत्पादों की नकल को रोकता है. साथ ही जीआई टैग किसी उत्पाद की अच्छी गुणवत्ता का पैमाना भी होता है जिससे देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है. इस टैग से किसी उत्पाद के विकास और फिर उस क्षेत्र विशेष के विकास मसलन रोजगार से लेकर राजस्व वृद्धि तक के द्वार खुलते हैं. जीआई टैग मिलने से उस उत्पाद से जुड़े क्षेत्र की विशेष पहचान होती है.
पंजीकरण कैसे, कहां और कितने वक्त के लिए
किसी उत्पाद के जीआई टैग के लिए कोई भी व्यक्तिगत निर्माता, संगठन इसके लिए Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) में आवेदन कर सकता है. जो कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आता है. इस संस्था की तरफ से उत्पाद की विशेषताओं से जुड़े हर दावे को परखा जाता है. पूरी जांच पड़ताल और छानबीन के बाद संतुष्ट होने पर ही जीआई टैग मिलता है. जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है जिसे रिन्यू करवाया जा सकता है. एक निर्धारिक फीस जमा करने पर जीआई टैग की अवधि 10 और वर्षों के लिए बढ़ जाती है. लेकिन इसका हस्तांतरण नहीं हो सकता है.
जीआई टैग सरकार की ओर से जारी एक सर्टिफिकेट और लोगो होता है. इस टैग का इस्तेमाल सिर्फ उस क्षेत्र विशेष या वो उत्पादक कर सकता है जिसके उत्पाद को ये टैग मिला है. किसी राज्य विशेष के उत्पाद को ये टैग मिलने पर इसका इस्तेमाल उस उत्पाद के लिए सिर्फ उसी प्रदेश के लोग कर सकते हैं जैसे बंगाल के रसगुल्ले के लिए जो लोगो मिला है उसका इस्तेमाल बंगाल के लोग ही कर सकते हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होता है जीआई टैग
इस टैग से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी उस उत्पाद की कीमत और महत्व बढ़ जाता है. देश-विदेश से लोग उस खास जगह पर टैग वाले सामान को देखना और खरीदना चाहते हैं. इससे उस क्षेत्र विशेष में व्यापार के साथ-साथ पर्यटन क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलता है.जीआई टैग को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है. WTO यानि विश्व व्यापार संगठन (world trade organization) इसके तहत Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights (TRIPS) एक एग्रीमेंट है. सदस्य देशों के बीच इस बात पर सहमति है कि वो एक-दूसरे के जीआई टैग का सम्मान करेंगे. इस एग्रीमेंट के तहत किसी देश के जीआई टैग उत्पाद की किसी भी दूसरे देश में नकली उत्पाद बनाने से रोकने पर भी सहमति बनी हुई है.
पहला जीआई टैग
सबसे पहला जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग की चाय को मिला. इसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्र विशेष की पहचान बन चुके 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. इनमें कश्मीर का केसर और पश्मीना, नागपुर के संतरे, बंगाली रसगुल्ले, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, रतलाम की सेव आदि शामिल हैं.