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इस मंदिर में बिना भगवान के होती है मां जानकी की पूजा, लगते हैं सीता माता के जयकारे - करीला माता मंदिर

अशोकनगर के करीला गांव में मां जानकी और लव-कुश की पूजा बड़े धूम धाम से होती है. करीला गांव वाल्मिकी आश्रम था और मां जानकी माता ने इसी आश्रम में लव-कुश को जन्म दिया था. इसीलिए यहां भगवान राम का नहीं बल्कि माता सीता का करीला माता मंदिर है.

Maa Janaki Dham

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Published : Oct 25, 2019, 1:52 AM IST

अशोकनगर।मुंगावली तहसील स्थित करीला गांव में मां जानकी और लव-कुश की पूजा बड़े धूम धाम से होती है. माना जाता है कि करीला में पौराणिक काल में वाल्मिकी आश्रम था और मां जानकी माता ने इसी आश्रम में लव-कुश को जन्म दिया था. यहां सीता माता की जय जयकार होती है, क्योंकि यहां भगवान राम का नहीं बल्कि माता सीता का मंदिर है.

माता सीता का करीला माता मंदिर

यहां करील के पेड़ अधिक संख्या में होने के कारण इस स्थान को करीला कहा जाता है. करीला की जानकी मैया की कृपा से जुड़ी किंवदंतियां दूर-दूर तक मशहूर हैं. यह देश का इकलौता मंदिर है, जहां भगवान राम के बगैर माता सीता विराजमान हैं. मंदिर में मां जानकी की प्रतिमा के साथ वाल्मिकी ऋषि और लव-कुश की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं. करीला मंदिर के बारे में यह मान्यता प्रचलित है कि इस मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाए वह पूरी होती है. अपनी मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालुगण यहां राई और बधाई नृत्य करवाते हैं. .

करीला मंदिर का इतिहास

लगभग 200 साल पहले महंत तपसी महाराज को रात में स्वप्न आया कि करीला गांव में टीले पर स्थित आश्रम में मां जानकी और लव-कुश कुछ समय रहे थे. लेकिन यह वाल्मिकी आश्रम वीरान पड़ा हुआ है. तुम वहां जाकर इस आश्रम को जागृत करो. अगले दिन सुबह होते हुए तपसी महाराज करीला पहाड़ी को ढूढ़ने के लिए चल पड़े. जैसा उन्होंने स्वप्न में देखा और सुना था वैसा ही आश्रम उन्होंने करीला पहाड़ी पर पाया. तपसी महाराज इस पहाड़ी पर ही रूक गए और स्वयं ही आश्रम की साफ-सफाई में जुट गए. उन्हें देख आस-पास के ग्रामीणजनों ने भी उनका सहयोग किया.

तपसी महाराज ने लगभग 40 सालों तक इस आश्रम में तपस्या करते हुए आश्रम की सेवा की. उनके पश्चात अयोध्या आश्रम से बलरामदास जी महाराज यहां आए और गोशाला स्थापित करवाई. ऐसा कहा जाता है कि आश्रम में शेर और गाय एकसाथ रहते थे. इतना ही नहीं आश्रम में कई बन्दर भी थे, जो आश्रम के कार्यों में अपना हाथ बटांते थे.

स्वर्ग से आ अप्सराओं ने किया नृत्य

प्राचीन काल से क्षेत्र में यह लोकोक्ति प्रचलित है कि लव-कुश के जन्म के बाद मां जानकी के अनुरोध पर महर्षि वाल्मिीकि ने उनका जन्मोत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया था. जिसमें स्वर्ग से उतरकर अप्सरायें आईं थी और उन्होंने यहां नृत्य भी किया था. लव-कुश जन्मोत्सव आज भी रंग पंचमी के अवसर पर मनाया जाता है. उसी उत्सव में हर साल बेड़िया जाति की हजारों नृत्यांगनायें यहां राई नृत्य प्रस्तुत करती हैं.

करीला की चमत्कारी भभूति

करीला मंदिर की भभूति को आसपास के किसान अपनी फसल में कीटाणु और इल्ली नाशक के रूप में प्रयोग करते हैं. किसान मानते हैं कि इस भभूति को फसल पर डालने से फसल में से इल्लियां खत्म हो जाती हैं.
माता सीता के इस मंदिर से भक्तों की आस्थाएं जुड़ी हैं. करीला गांव के लोग यहां जानकी मां का मंदिर होने को अपना सौभाग्य मानते हैं.

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