आगर। सुसनेर से 10 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर लाल रंग के एक ही पत्थर से बना पंचदेहरिया महादेव मंदिर अपने साथ सदियों का इतिहास समेटे हुए है. जिसका निर्माण अज्ञातवास के दौरान भीम ने एक पत्थर को तराश कर किया था. ऐसी मान्यता है कि जुए में सब कुछ हारने के बाद वनवास पर निकले पांडव इसी स्थान पर अज्ञातवास के दिन काटे थे, लिहाजा शिव की साधना के लिए भीम ने एक लाल पत्थर को काटकर मंदिर और उसी शिला से एक शिवलिंग का निर्माण किया था. जिसे पंचदेहरिया महादेव का नाम देते हुए शिव की आराधना की थी. आज भी इस मंदिर को पांडव कालीन पंचदेहरिया महादेव मंदिर कहा जाता है. यहां पूजा-पाठ करने से सबकी मनोकामना पूरी हो जाती है.
यहां सत्य है शिव का स्वरूप, परमात्मा से मिलन के लिए दूर-दराज से आते हैं संत-महात्मा!
सत्य ही शिव है और शिव ही सत्य है, पुराणों में भगवान शिव का महत्व कुछ इसी तरह से वर्णित है. जिनकी कृपा से जीवन-मरण से मुक्ति मिल जाती है. ऐसा ही एक शिव मंदिर है, जहां साधु-महात्मा का सीधा कनेक्शन परमात्मा से होता है. लिहाजा, दूर दराज से साधु महात्मा यहां तप करने के लिए आते हैं.
इसी मंदिर के पास ही पांडवों ने रहने के लिए कई गुफाएं भी बनाई थी, समय के साथ श्रद्धालुओं की आस्था के अनुरूप मंदिर को नए स्वरूप में बदल दिया गया, वर्तमान में मंदिर के बाहरी हिस्से पर सीमेंट का प्लास्टर किया जा रहा है, पर अंदर से देखने में गर्भ गृह व आस पास छोटी-छोटी गुफाएं एक ही पत्थर से बनी हुई लगती हैं. यहां पर पांचों पांडवों की कुटिया आज भी मौजूद है, पर भीम की एक अलग ही कुटिया बनी हुई है. इस मंदिर का उल्लेख शिवपुराण में भी मिलता है. ज्योतिषाचार्य पंडित बालाराम व्यास बताते हैं कि औरंगजेब ने इस मंदिर पर आक्रमण किया था, औरंगजेब के वार से शिवलिंग में तीसरे नेत्र जैसी आकृति उभर आई थी, जिसे कई बार जोड़ने का प्रयास किया गया, पर सफलता नहीं मिली, अंततः उसे तीसरा नेत्र मानकर पूजा जाने लगा.
पहाड़ी पर बने होने के चलते इस मंदिर के आसपास का वातावरण बेहद शांत रहता है, जिसके चलते दूर-दराज से साधु-महात्मा यहां साधना के लिए आते रहते हैं, यहां रोजाना महामृत्युंजय का जाप होता है. भले ही सदियों पहले इस मंदिर की स्थापना हुई थी, पर आज भी इस मंदिर का महत्व कम नहीं है क्योंकि यहां तो शिव ही सत्य है और सत्य ही शिव है.