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मन्नत या मौत का खेल: परंपरा का नाम पर उज्जैन और बैतूल से सामने आई अजीबो- गरीब घटनाएं - tradition or superstition in betul

महाकाल की नगरी से 15 किमी दूर चिंतामण मार्ग पर ग्राम टकवासा और हमीर खेड़ी में और बैतूल के आमला विकासखंड से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम गुबरेल में होली के दिन अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन होता है. आस्था कहे या फिर अंधविश्वास, ग्रामीण जान की परवाह किए बिना इन परंपराओं को मानते हैं.(devotees hangs on a 30 feet high pillar)

devotees hangs on a 30 feet high pillar in ujjain
आस्था के नाम पर 30 फीट ऊंचे लकड़ी के खंभे पर लटके लोग

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Published : Mar 19, 2022, 7:11 PM IST

उज्जैन। महाकाल की नगरी से 15 किमी दूर चिंतामण मार्ग पर ग्राम टकवासा और हमीर खेड़ी में होली के दिन गल महादेव का आयोजन होता है. आस्था कहे या फिर अंधविश्वास, इस गांव में 30 फीट लंबे लकड़ी के खंभे पर उन लोगों को बांधकर घुमाया जाता है, जिन लोगों की मन्नत पूरी हो जाती है.(devotees hangs on a 30 feet high pillar)

परंपरा का नाम पर उज्जैन और बैतूल से सामने आई अजीबो- गरीब घटनाएं

वर्षों से चली आ रही परंपरा
उज्जैन के टकवासा और हमीर खेड़ी में होली के पर्व पर गल महादेव का आयोजन होता है, दोनों ही गांव के लोग बड़े धूमधाम से ढोल धमाकों के साथ कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते हैं. इसके बाद जिन लोगों की मन्नतें पूरी हो जाती है, उन लोगों को 30 फीट ऊंचे लकड़ी के खंभे पर बांधकर गोल घुमाया जाता है. ग्रामीणों की आस्था है कि, जब मन्नत रखते हैं और पूरी हो जाती है तो होली के पर्व पर इस लकड़ी के खंभे पर लटककर घूमना पड़ता है. गांव वालों के अनुसार, कई वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है.

कभी नहीं हुई जनहानि
उज्जैन के टकवास के गांव में महादेव के रूप में 30 फीट ऊंची लकड़ी पर कोल्हू की तरह बल्ली बांधी जाती है, जिस पर उन लोगों को बांधकर घुमाया जाता जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है. शुक्रवार को दोनों गांव में दोपहर 4 बजे यह कार्यक्रम हुआ. दो घंटे तक चले आयोजन में दर्जन भर से ज्यादा ग्रामीणों ने अपनी इच्छा से इस पर लटके और उन्हें घुमाया गया. ग्रामिणों ने यह भी बताया कि, गल महादेव में हर वर्ष हजारों लोग शामिल होते हैं, लेकिन अब तक किसी प्रकार से जनहानि नहीं हुई है.

बैतूल में तलवारबाजी अखाड़े का आयोजन
इसके साथ ही, बैतूल के आमला विकासखंड से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम गुबरेल में लगने वाले मेघनाथ मेले (Meghnath Mela) का खासा महत्व है. इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और मेले में शामिल हो कर अखाड़े (arena) और तलवारबाजी (fencing) का होते है. खास बात यह है कि, इसकी जिम्मेदारी एक ही परिवार द्वारा 5 पीढ़ियों से उठाई जा रही है.

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पांच पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा
गुबरेल में लगने वाले इस मेले में सिंगारे परिवार द्वारा होलिका दहन के पश्चात धुलेंडी के दिन गांव स्थित पूजा स्थल पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, इसके साथ ही यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. लगभग पांच पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है, जिसमें आसपास के कई गांव से श्रृद्धालु यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं, इस पूजा में लोगों की बड़ी आस्था, भक्ति जुड़ी हुई है. यहां सभी श्रद्धालु सुख शांति और समृद्धि की कामना करते हैं.

तलवारबाजी अखाड़े का होता है आयोजन
सिंगारे परिवार ने बताया कि, पीढ़ियों से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी पर्व पर आयोजित होने वाले इस मेले में हमारे परिवार द्वारा मेघनाथ जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, पूजा अर्चना के बाद गांव में मेले का आयोजन किया जाता है तथा अखाड़े का आयोजन होता है. इसमें सिंगारे परिवार के द्वारा तलवारबाजी, अखाड़ा आदि का प्रदर्शन किया जाता है. उन्होंने बताया कि, यह परम्परा उनके बुजुर्गों द्वारा गांव, क्षेत्र तथा सभी लोगों की सुख शांति तथा समृद्धि की कामना के लिए शुरू की गई थी. पांच पीढ़ियों से सिंगारे परिवार इस परंपरा को कायम रखे हुए हैं, जिसमें धुलेंडी से लेकर रंग पंचमी तक पांच दिनों तक विशेष पूजा अर्चना की जाती है.

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