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Sawan 2022: सावन के दूसरे सोमवार पर जानें शिव के आभूषणों के महत्व के बारे में, सिर पर कैसे विराजमान हुए चंद्रमा और क्या है डमरू के पीछे की कहानी

भगवान शिव का ध्यान करते ही मन में वैरागी शिव की छवि उभरती है. हाथों में त्रिशूल, डमरू, जटाओं से निकलती गंगा, सिर पर विराजमान चंद्रमा और गले में सर्प की माला, लेकिन शिव के प्रतीक माने जाने वाले इन सबका क्या कुछ रहस्य है. ये यहां पढ़िए. भोलेनाथ के प्रिय सावन (Sawan 2022) के इस खास महीने में जानिए महादेव के प्रतीकों के बारे में.(Ornaments of Lord Shiva Speciality)

Sawan 2022
सावन 2022

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Published : Jul 25, 2022, 7:00 AM IST

उज्जैन। भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना सावन (Sawan 2022) महीना चल रहा है. यह महीना शिवभक्तों के लिए विशेष फलदायी होता है. भक्तों की श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने केवल मनुष्यों पर ही नहीं बल्कि पशु पक्षियों, देवी देवताओं पर भी उपकार किया है. इन सबका प्रमाण है शिव का आभूषण. फिर चाहे सिर में चंद्रमा हो, गले में लिपटा सांप हो या जटाओं में मां गंगा हों. शिव के इन सभी आभूषणों का रहस्य क्या है. किस आभूषण से कौन सा जुड़ा है रहस्य. इन सब बातों को आज हम आपको बताएंगे.(Ornaments of Lord Shiva)

शिव की जटाओं में क्यों है गंगा का वास:शिव पुराण में वर्णित है कि अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए इक्ष्वाकु वंश के राजा भगरीथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया था. राजा भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा पृथ्वी में आने के लिए तैयार हो गईं, लेकिन मां गंगा ने कहा कि उनका वेग इतना तेज है कि पृथ्वी में भयंकर तबाही मचेगी. पृथ्वीवासी उनका गति सहन नहीं कर पाएंगे. जिसके बाद राजा भगीरथ ने भगवान शंकर की आराधना की. राजा भगीरथ की आराधना से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव ने मां गंगा को धारण कर लिया और मां गंगा की केवल एक धारा को पृथ्वी पर भेजा.(shiv ganga importance)

चंद्रमा का रहस्य:भगवान शिव को चंद्रशेखर भी कहते हैं. यानि जिसके शिखर में चंद्रमा का निवास हो. लेकिन, क्या आपको पता है कि शिव ने अपने शीष में चंद्रमा क्यों धारण किया है? वैसे तो शिव के हर आभूषण का अपना महत्व है, लेकिन क्या आपको इनके रहस्यों के बारे में पता है. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि भगवान भोलेनाथ के सिर में विराजमान चंद्रमा को लेकर क्या कुछ रहस्य और मान्यताएं हैं.

पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के रचयिता परमपिता ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था. दक्ष की इन कन्याओं में रोहिणी सबसे खूबसूरत थीं और चंद्रमा रोहिणी से ही अत्यधिक प्रेम करते थे. रोहिणी के प्रति चंद्रमा का अत्यधिक स्नेह देखकर बाकी कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से इस पीड़ा को बताया. जिसके बाद क्रोध में आकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग का शाप दे दिया.

चंद्रमा को शाप से दिलाई मुक्ति:दक्ष प्रजापति के शाप के कारण चंद्रमा की सारी कलाएं धीरे-धीरे कम होने लगीं और उनका शरीर क्षीण होने लगा. तभी नारद ने चंद्रमा को भगवान शिव की आराधना करने को कहा, जिसके बाद चंद्रमा और उनकी पत्नियों ने मिलकर भगवान आशुतोष की आराधना की. चंद्रमा की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने चंद्रमा को आश्वस्त किया कि प्रजापति दक्ष कोई साधारण व्यक्ति नहीं है. उनके शाप से मुक्ति पाना असंभव है, जिसके बाद शिव ने मध्य का रास्ता निकाला और चंद्रमा से कहा कि तुम कृष्ण पक्ष में शाप के प्रभाव के कारण क्षीण होते जाओगे. अमावस्या पर पूरी तरह गायब हो जाओगे, लेकिन शुक्ल पक्ष में तुम्हारा चंद्रमा का उद्धार होगा और पूर्णमासी को पूर्ण तेज रहेगा. यही वजह है कि चंद्रमा का आकार घटता बढ़ता रहता है.

चंद्रमा का दूसरा रहस्य:वहीं चंद्रमा को लेकर एक दूसरी मान्यता यह भी प्रचलित है कि जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था तब 14 रत्नों के साथ विष भी निकला था. सृष्टि को विष से बचाने के लिए भगवान शिव ने विष का पान किया था, जिसके कारण उनका शरीर तेज गर्म हो गया और कंठ नीला पड़ गया. इसके बाद शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए चंद्रमा ने भगवान भोलेनाथ से उन्हें धारण करने का निवेदन किया. इसके बाद भगवान शिव ने चंद्रमा के निवेदन को पहले तो अस्वीकार कर दिया, लेकिन बाद में देवताओं के कई बार आग्रह पर शिव ने चंद्रमा को अपने सिर में धारण कर लिया.

गले में सर्प का क्या है राज:शिव के गले में लिपटा सांप नागों के शासक नागनाथ वासुकी हैं. माना जाता है कि शिवलिंग पूजा का प्रचलन नागों ने ही शुरू किया था. यानि सबसे पहले नाग जाति के लोग ही शिवलिंग की पूजा अर्चना करते थे. नागनाथ वासुकी शिव के बड़े भक्त थे और वासुकी की इसी श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों में शामिल किया और अपना आभूषण बनाया था. कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय देवताओं ने नागनाथ वासुकी को ही रस्सी के रूप में प्रयोग किया था.

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रुद्राक्ष का महत्व:माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई है. रुद्राक्ष शिव को बहुत प्रिय है. इस रुद्राक्ष को धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. यही वजह है कि यह रुद्राक्ष वैज्ञानिकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना है और इस रहस्य को सुलझाने के लिए देश विदेश में शोध चल रहे हैं. एक कथा के अनुसार हजारों वर्षों तक तपस्या करने के बाद शिव ने जब आंखें खोली तो उनके आंखों से अश्रु की कुछ बूंद टपकी जिससे रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो गए.(shiv trishul damru and other things)

डमरू का महत्व:डमरू संसार का पहला वाद्य यंत्र माना जाता है. शिव नृत्य संगीत के प्रवर्तक भी हैं. उन्हें नटराज भी कहा जाता है. शिव जब प्रसन्न होते हैं तो नृत्य करते हैं और डमरू बजाते हैं. मान्यता है कि देवी सरस्वति ने वीणा के स्वर से सृष्टी में ध्वनि को जन्म दिया. यह ध्वनि संगीतविहीन थी. शिव ने नृत्य करते हुए 14 बार डमरू बजाया. डमरू की ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ और इसी प्रकार शिव के डमरू की उत्पत्ति हुई.

त्रिशूल का राज:वैसे तो शिव को सभी अस्त्र शस्त्रों में महारथ हासिल है, लेकिन शिव को सबसे अधिक प्रिय उनका त्रिशूल है. शिव का त्रिशूल मानव शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियों बायीं, दाहिनी और मध्य का प्रतिबिंब है. इनसे 72,000 नाड़ियां निकलती हैं. सजगता की स्थिति में यह बात महसूस की जा सकती है कि उर्जा की गति अनियमित न होकर निर्धारित पथों यानी 72,000 नाड़ियों से होकर गुजर रही है. त्रिशूल रज सत और तम का प्रतीक है. इन तीनों में सामंजस्य बैठाना बेहद जरूरी है और शिव का त्रिशूल इसी बात का प्रतीक है.(shiv trishul significance)

तीसरी आंख का रहस्य:शिव को त्रिलोचन भी कहते हैं. यानि तीन नेत्रों वाला. हम मनुष्यों के पास केवल दो आंखे हैं, जिससे हम केवल एक सीमा तक ही देख सकते हैं. लेकिन, शिव इससे परे हैं यानि शिव त्रिकालदर्शी हैं. इसी दिव्य दृष्टि से वह तीनों काल यानि भूत भविष्य वर्तमान पर नजर रखने वाले. ऐसी शक्ति किसी अन्य देवता के पास नहीं है. ऐसी मान्यता है कि शिव के इस तीसरे नेत्र के खुलने पर पूरी सृष्टि नष्ट हो जाएगी.

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