रायसेन। सावन का महीना आते ही शिव भक्तों की बम बम भोले की गूंज सुनाई देने लगती है, ज्यादातर हर शहर, जिले, गांव में शिव मंदिर होते हैं, जहां बेल पत्र चढ़ा कर सावन में शिव की अराधना की जाती है, ज्योतिर्लिंग और बड़े मंदिरों के बारे में तो हम सभी जानते ही हैं, लेकिन हर शहर में कोई न कोई ऐसा मंदिर होता है, जिसका प्राचीनतम इतिहास होता है, उसकी अपनी ही ऐतिहासिक भूमिका होती है, ऐसा ही एक शिव मंदिर है, भोजपुर शिव मंदिर.मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे भोजपुर में ये शिवलिंग है, जिससे आज हम आपको रूबरू कराएंगे.
रायसेन जिले की गौहर गंज तहसील के ओबेदुल्लागंज विकास खंड में स्थित इस शिव मंदिर को 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज प्रथम ने बनवाया था, कंक्रीट के जंगलों को पीछे छोड़ प्रकृति की हरी भरी गोद में बेतवा नदी के किनारे बना उच्च कोटि की वास्तुकला का यह नमूना राजा भोज के वास्तुविदों के सहयोग से तैयार हुआ था.
विश्व का ऐतिहासिक भोजपुर महादेव मंदिर इस मंदिर की विशेषता इसका विशाल शिवलिंग हैं, जो कि विश्व का एक ही पत्थर से निर्मित सबसे बड़ा शिवलिंग हैं, सम्पूर्ण शिवलिंग कि लम्बाई 5.5 मीटर (18 फीट ), व्यास 2.3 मीटर (7.5 फीट ) और केवल शिवलिंग कि लम्बाई 3.85 मीटर (12 फीट) है.
अधूरा है भोजपुर का ये शिव मंदिर भोजपुर मंदिर का अधूरा निर्माण है, कहा जाता है कि इस मंदिर के अधूरे होने के पीछे एक बड़ा कारण है, किस्से कहानियों कहते हैं, इस मंदिर को किसी वजह से एक ही रात में बनाया जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं हो सका, सुबह होते ही इस मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया, उस समय छत के बनाए जाने का कार्य चल रहा था, लेकिन सूर्योदय होने के साथ ही मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया, तब से ये मंदिर अधूरा ही है. हालांकि पुरातत्व विभाग ऐसी किसी भी घटना की पुष्टि नहीं करता है.
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भक्तों का हुजूम सावन के महीने में भोजपुर मंदिर में विराजमान भगवान शिव के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ता था, लेकिन हालिया वर्षों में फैले कोरोना वायरस के चलते मंदिर में कम ही भक्त देखने को मिल रहे हैं, लोगों में उनके आराध्य भगवान शिव के प्रति उनकी आराधना में किसी तरह की कमी नहीं देखी, कारण यही है कि प्रशासन के शक्ति के बाद भी लोग दर्शन के लिए कतार लगाए देखे जा सकते है.