सतना। जिले में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां खंडित शिवलिंग की पूजा होती है, इस शिवलिंग को उज्जैन महाकाल का दूसरा उपलिंग कहा जाता है, जिले के बिरसिंहपुर में गैवीनाथ धाम के नाम से यह मंदिर सुप्रसिद्ध है. यहां भगवान भोलेनाथ के खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है. सावन महीना और महाशिवरात्रि में यहां मध्य प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों से भी लाखों की तादाद में श्रद्धालु पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं. इस शिवलिंग का वर्णन पाताल पुराण में किया गया है.
कैसे पड़ा इस शिवलिंग का नाम गैवीनाथ धाम: ऐसा माना जाता हैं कि, पद्म पुराण के अनुसार त्रेता युग में बिरसिंहपुर कस्बे में राजा वीर सिंह का राज्य हुआ करता था. उस समय बिरसिंहपुर का नाम देवपुर था. राजा वीर सिंह प्रतिदिन भगवान महाकाल को जल चढ़ाने के लिए घोड़े पर सवार होकर उज्जैन महाकाल दर्शन करने जाते थे और भगवान महाकाल काे दर्शन कर उन्हें जल चढ़ाते थे. बताया जाता है कि करीब 60 सालों तक यह सिलसिला चलता रहा. (Gabinath Shiv Temple birsinghpur) जैसे जैसे राजा वृद्ध होते गए उन्हें उज्जैन जाने में परेशानी होने लगी. एक बार उन्होंने भगवान महाकाल के सामने मन की बात रखी की भगवान हमें हमारी नगरी में दर्शन दें ताकि मैं आपकी पूजा अर्चना कर सकूं.
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स्वप्न में आए महाकाल: माना जाता है कि, भगवान महाकाल ने राजा वीर सिंह को स्वप्न में दर्शन दिए और देवपुर में दर्शन देने की बात कही. इसके बाद नगर में गैवी यादव नामक व्यक्ति के घर में एक घटना सामने आई. घर के चूल्हे से रात को शिवलिंग निकला. जिसे गैवी यादव की मां मूसल से ठोक कर अंदर कर दिया. शिवलिंग फिर निकला फिर से उसे अंदर कर दिया गया. यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. एक दिन महाकाल फिर राजा के स्वप्न में आए और कहा मैं तुम्हारी पूजा और निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में प्रकट होना चाहता हूं , लेकिन गैवी यादव मुझे निकलने नहीं देता.
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गैवी का घर कराया खाली:राजा ने गैवी यादव को बुलाया स्वप्न की बात बताई, इसके बाद गैवी के घर की जगह को खाली कराया गया. राजा ने उस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया. भगवान महाकाल के कहने पर शिवलिंग का नाम गैवीनाथ धाम रख दिया गया. तब से भगवान भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाने लगा.
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शिवलिंग की मान्यता:पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर चारों धाम से लौटने वाले भक्त भगवान भोलेनाथ के दर गैवीनाथ धाम पहुंचकर चारों धाम का जल चढ़ाते हैं. पूर्वज बताते हैं कि, जितना चारों धाम का दर्शन लाभ का पुण्य मिलता है उससे कहीं ज्यादा गैवीनाथ में जल चढ़ाने से मिलता है. लोग कहते हैं कि, चारों धाम का जल अगर यहां नहीं चढ़ा तो चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है. यहां पर पूरे विंध्य क्षेत्र से भक्त पहुंचते हैं. हर सोमवार यहां हजारों भक्त पहुंचकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं. मन्नत मांगते हैं. यहां पहुंचने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है.
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शिवलिंग की किवदंती:यहां की किवदंती है कि, यह स्वयंभू स्थापित शिवलिंग है. जो कि खंडित है. यहां मुगल शासक औरंगजेब ने सोना पाने के लालच में इस शिवलिंग को खंडित करने की कोशिश की थी. इसमें उसने टाकी मारी थी. जब औरंगजेब ने पहली टाकी मारी थी तो दूध निकला था, दूसरी टाकी में खून, तीसरी टाकी में मवाद, चौथी टाकी में फूल बेलपत्र आदि और पांचवी टाकी में जीवजंतु निकले, इसके बाद औरंगजेब को वहां से भागना पड़ा. भगवान भोलेनाथ से छमा याचना मांगनी पड़ी. तब से लेकर अब तक यहा खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती हैं.