सागर। डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर के रसायन शास्त्र विभाग के प्रोफेसर केबी जोशी (Sagar University Professor KB Joshi) के मार्गदर्शन में शोधकर्ताओं ने एक नया पेप्टाइड ड्रग (प्रोटीन के छोटे-छोटे हिस्सों) तैयार किया है. यह पेप्टाइड ड्रग कोरोना के दौरान होने वाले सेकेंडरी बैक्टीरियल इंफेक्शन को कंट्रोल करने में कारगार है. अगर इस ड्रग को किसी विशेष एंटीबायोटिक के साथ लोड किया जाए, तो टारगेटेड ड्रग डिलीवरी के रूप में काम करता है. पेप्टाइड ड्रग का उपयोग फेफड़ों में होने वाले बैक्टीरिया के संक्रमण को भी रोक सकता है. जिस पर अभी क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं. सागर विश्वविद्यालय (Dr. Harisingh Gour Central University Sagar) के शोधकर्ताओं का ये शोध दुनिया की जानी मानी साइंस जर्नल में भी प्रकाशित हुआ है.
सागर यूनिवर्सिटी में रिसर्च टीम ने किया पेप्टाइड ड्रग का अविष्कार रिसर्च के मिले सकारात्मक परिणाम:प्रोफेसर केबी जोशी मुख्य रूप से मेडिसिनल केमेस्ट्री और केमिकल बायोलॉजी में रिसर्च के लिए जाने जाते हैं. रिसर्च टीम ने ऐसे छोटे-छोटे पेप्टाइड तैयार किए हैं जो प्राकृतिक अणु (Neutral molecules) की कैटेगरी में आते हैं. इनको खास तरीके से डिजाइन कर बायोमेडिकल उपयोग किया जा सकता है. इसके बारे में कहा जा रहा है कि ये टारगेटेड ड्रग डिलीवरी के रूप में काम करता है. जहां बैक्टीरिया पनप रहा होगा वहां पेप्टाइड ड्रग के माध्यम से दिया जाने वाला एंटीबायोटिक उसी जगह पर काम करेगा. रिसर्च टीम (Dr HSG University) का हिस्सा रहीं डॉ वंदना विनायका का कहना है कि यह ड्रग 95 फीसदी बैक्टीरिया की ग्रोथ रोकने में कामयाब है. इसके काफी सकारात्मक परिणाम मिले हैं.
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प्रतिष्ठित मेडिकल साइंस जर्नल में हुआ प्रकाशित:प्रोफेसर केबी जोशी ने जानकारी देते हुए बताया कि कोविड-19 के दौरान सेकेंडरी इंफेक्शन बढ़ने में बैक्टीरिया बड़ा कारण रहा है. इसी स्थिति को ध्यान रखते हुए बैक्टीरियल इंफेक्शन को कंट्रोल करने के लिए ये पेप्टाइड ड्रग बनाया गया है. खास बात ये है कि यह रिसर्च अमेरिकन केमिकल सोसाइटी एसी इंफेक्शियस डिजीज की एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. यह पत्रिका रसायन शास्त्र और संक्रामक रोगों के क्षेत्र में काम करने वाला पहला जर्नल है. माना जा रहा है कि यह शोध पेप्टाइड आधारित चिकित्सा ध्यान पद्धति में अहम भूमिका निभा सकता है.
जितने भी हमने बैक्टीरियल टेस्ट किए हैं उनसे हमें पता चला है कि जब इन पेप्टाइड को हम किसी विशेष एंटीबायोटिक के साथ शरीर में प्रवेश कराते हैं तो ये टारगेटेड ड्रग डिलीवरी के रूप में काम करते हैं. कोरोना के दौरान होने वाले सेकेंडरी बैक्टीरियल इंफेक्शन को कंट्रोल करने में मदद करते हैं. फेफड़ों में होने वाले दूसरे बैक्टीरिया संक्रमण को कितना रोक पाएंगे, इस पर अभी रिसर्च चल रही है.- केबी जोशी, प्रोफेसर रसायन शास्त्र विभाग
क्या है रिसर्च:रसायन शास्त्र विभाग के प्रोफेसर केबी जोशी ने बताया कि हमारी (DHSGSU Sagar corona research) रिसर्च टीम में कुछ छोटे-छोटे पेप्टाइड फ्रेगमेंट बनाए और फिर इनको छोटे-छोटे लिपिड्स, फैट मॉलिक्यूल और कार्बोहाइड्रेट से मॉडिफाई किया. इसका असर यह हुआ कि इनकी बायोडिग्रेडेबिलिटी (यानि अगर मानव शरीर में जाएंगे, तो बहुत जल्दी डिग्रेड हो जाएंगे) कम हो गई और स्टेबिलिटी बढ़ गई. इस पेप्टाइड को किसी और ड्रग के साथ नैनो फार्मूलेशन में उपयोग किया गया, तो ड्रग की हॉफ लाइफ बढ़ जाती है, जो काफी कारगर और प्रभावी है. जहां तक फेफड़ों में होने वाले बैक्टीरिया संक्रमण को लेकर इसके असर की बात है, तो इस पर अभी क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं.
(Sagar University research team new Invention) (Peptide drug invented at Sagar University)