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मास्साब की जिद: स्कूली बच्चों के लिए मसीहा बना सरकारी शिक्षक, पढ़ाई न रूके इसके लिए उठाया अनोखा कदम

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Published : Feb 1, 2022, 1:58 PM IST

बच्चे शिक्षा से वंचित न रहें इसके लिए सागर के सरकारी स्कूल में पदस्थ एक प्राथमिक शिक्षक मसीहा बनकर आए हैं. वे मोहल्ला-मोहल्ला पहुंचकर बच्चों की पढ़ाई करा रहे हैं और कोरोना के प्रति भी जागरूक कर रहे हैं. (teacher started teaching door to door) देखें वीडियो...

sagar online class poor student
सागर का मोहल्ला क्लास

सागर।कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा असर बच्चों की पढ़ाई पर हुआ है. स्कूल बंद होने से पिछले 2 सालों से पढ़ाई बंद सी हो गई है. स्कूलों के बंद रहने के बीच ऑनलाइन पढ़ाई को एक अच्छा विकल्प माना जा रहा है, लेकिन असल में ऑनलाइन शिक्षा का दायरा बेहद सीमित है. ऑनलाइन क्लासेज के लिए बच्चों को स्मार्टफोन की जरूरत होती है, लेकिन गरीब और ग्रामीण तबके के बच्चे स्मार्टफोन खरीदने में सक्षम नहीं हैं. बच्चे शिक्षा से वंचित न रहें इसके लिए सागर के सरकारी स्कूल में पदस्थ एक प्राथमिक शिक्षक मसीहा (incredible story of a teacher) बनकर आए हैं. वे मोहल्ला-मोहल्ला पहुंचकर बच्चों की पढ़ाई करा रहे हैं और कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं.

सागर का शिक्षक बच्चों का बना मसीहा

कोरोना गाइडलाइन का रखते हैं ख्याल

कोरोना के कारण सरकार ने स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के निर्देश दिए हैं, लेकिन गरीब और ग्रामीण तबके तक स्मार्टफोन की पहुंच नहीं होने के कारण वे ऑनलाइन क्लास का लाभ नहीं ले पा रहे थे. इसे देखकर सागर के रिछोड़ा टपरा में शासकीय प्राथमिक स्कूल के शिक्षक चंद्रहास श्रीवास्तव ((government teacher chandrahas shrivastava)) के मन में मोहल्ले-मोहल्ले जाकर पढ़ाने का विचार आया. सबसे पहले अपनी पदस्थापना वाले गांव में मोहल्ले-मोहल्ले जाकर बच्चों का समूह बनाकर उनकी घर पर पढ़ाई करवाना शुरू की. गरीब बस्तियों में शिक्षक चंद्रहास श्रीवास्तव किसी भी पेड़ के नीचे बच्चों को इकट्ठा कर कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए उनकी पढ़ाई कराते हैं.

शिक्षक बच्चों को मुफ्त बांटते हैं स्टेशनरी

बच्चों को घर जाकर पढ़ाई कराने के अलावा शिक्षक चंद्रहास श्रीवास्तव उनकी पढ़ाई की जरूरतों को भी पूरा करते हैं. बच्चों के लिए कापी, किताबें, पेंसिल और पेन की भी व्यवस्था करते हैं. खास बात यह है कि ये सब खर्चा वह अपने वेतन से करते हैं. उनके वेतन का एक बड़ा हिस्सा मास्क, सैनिटाइजर और बच्चों के लिए स्टेशनरी खरीदने में जाता है. शिक्षक की कर्तव्यनिष्ठा और लगन का ही परिणाम है कि गांव में बच्चों की शिक्षा बन्द नहीं हुई है. चंद्रहास श्रीवास्तव बच्चों को घर बैठे पढ़ाई तो करवाते ही हैं. इसके अलावा उनके अभिभावकों को कोरोना के प्रति भी जागरूक करते हैं. मास्क सोशल डिस्टेंस और समय-समय पर हाथ सैनिटाइज करने की सलाह देते हैं. इसके अलावा वैक्सीन लगवाने के लिए भी प्रेरित करते हैं. गांव के लिए शिक्षक की इस कार्य से बेहद खुश हैं. वे लोग ऐसे टीचर को अपने बीच देखकर खुद को धन्य मानते हैं.

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मास्साब के नाम से मशहूर

पिछले 2 सालों से लगातार बस्तियों में जाकर बच्चों की पढ़ाई कराने के अलावा कोरोना के प्रति जागरूकता के कारण शिक्षक चंद्रहास श्रीवास्तव मशहूर भी हो रहे हैं. आमतौर पर बच्चे इन्हें कोरोना वाले सर या कोरोना वाले मास्साब कह कर बुलाते हैं. जब शिक्षक चंद्रहास श्रीवास्तव इन बस्तियों में पहुंचते है, तो बच्चों के परिजन अपने अपने बच्चों को उनके मोहल्ला स्कूल में पहुंचाने के लिए आते हैं. बच्चों के परिजन कहते हैं कि शिक्षक ऐसे समय में मसीहा बनकर आए हैं जब सब कुछ थम सा गया है.

(teacher started teaching door to door)

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