सागर। कोरोना महामारी में जिंदा तो जिंदा मुर्दा हो चुकने के बाद भी इंसान का संघर्ष खत्म नहीं हुआ. ऐसे-ऐसे दृश्य दिखाई दिए जिनकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती. अस्पताल में बिस्तर, दवाई और इंजेक्शन के लिए हाहाकार और मौत के बाद भी अंतिम संस्कार के लिए भी इंतजार. महामारी में हुई मौतों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि श्मशान घाटों में जगह और लकड़ियां सब कुछ कम पड़ गया. ऐसे में अंतिम संस्कार के लिए एक बेहतर विकल्प के तौर पर सामने आए विद्युत शवदाह गृह. आम तौर पर अपनी धार्मिक मान्यताओं के चलते हिंदू विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने से बचते हैं, लेकिन सागर में श्मशानों में हो रही लाशों की दुर्गति, जगह की कमी और दूसरी तमाम परेशानियों के बीच विद्युत शवदाह गृह में रोजाना तीन से 4 अंतिम संस्कार हो रहे हैं. कोरोना काल में बढ़ी इनकी जरूरत को देखते हुए शहर में तीन और विद्युत शवदाह गृह बनाने जा रहे हैं.
श्मशान घाट में जगह की कमी, विद्युत शवदाहगृह बेहतर विकल्प बढ़ती गई मौतों की संख्या, घटते गए श्मशानसागर में अप्रैल माह की शुरुआत में कोरोना बेकाबू हो चुका था, महामारी से होने वाली मौतों की संख्या ज्यादा हो रही थी, लेकिन प्रशासन आंकड़ों को कम बता रहा था. जबकि शहर के तमाम श्मशान घाटों पर आने वाले शवों का शवदाह करने के लिए जगह नहीं बची थी. मुर्दों को भी घंटों इंतजार करना पड़ रहा था.शहर के नरयावली नाका श्मशान घाट को कोविड-19 से होने वाली मौतों के लिए रिजर्व किया गया था. शुरुआत में तो यहां 5 से 10 अंतिम संस्कार ही होते थे,लेकिन कोरोना का कहर बढ़ते बढ़ते इनकी संख्या इनकी संख्या रोजाना 30 तक पहुंच गई थी. श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए जो व्यवस्थाएं की गई थी,वह नाकाफी साबित होने लगी. श्मशान में जगह और लकड़ियों की कमी पड़ने लगी. ऐसे में शवों की दुर्दशा को देखकर, श्मशान घाटों के बाहर जलते शवों, अधजले शवों को नोचते जानवरों को देखकर मृतकों परिजन तो आहत थे ही स्थानीय लोग भी शवों को बाहर जलाए जाने का विरोध करते नजर आए.हालात इतने बिगड़ते गए कि नगर निगम को शहर के काकागंज और गोपालगंज श्मशान घाट में भी कोरोना मरीजों के अंतिम संस्कार की व्यवस्था करनी पड़ी.
विपरीत परिस्थितिओं में बेहतर विकल्प बने विद्य़ुत शवदाह गृह
कोरोना काल में शहर में लगातार बढ़ रही मौतें और अव्यवस्थाओं के चलते सागर नगर निगम द्वारा नरयावली नाका श्मशान घाट पर विद्युत शवदाह गृह की स्थापना की गई. आमतौर पर धार्मिक परंपराओं में अधिक आस्था रखने वाले लोग यहां अंतिम संस्कार नहीं करते थे, लेकिन कोरोना काल में जब स्थितियां विपरीत हुईं.तो कई लोगों ने शवों का विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार कराने की इच्छा जताई. यहां शवदाह गृह की झमता आड़े आई जहां 1 दिन में सिर्फ 3 अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं, क्योंकि एक अंतिम संस्कार में 2 घंटे का वक्त लगता और इसके बाद विद्युत शवदाह गृह की चिमनी को ठंडा करने के लिए 2 से 3 घंटे की जरूरत होती है. इस सब के बीच यहां बीते 2 महीने में विद्युद शवदाह गृह में 56 अंतिम संस्कार हो चुके हैं.
ऐसे बढ़ा श्मशान घाटों पर बढ़ा दबाव
नरयावली नाका श्मशानघाट -पिछले 2 महीने में इस संस्थान घाट में 725 अंतिम संस्कार हो चुके हैं. जब कोरोना शहर में कहर बरपा रहा था तब इस श्मशान घाट में 1 दिन में 40 के ज्यादा अंतिम संस्कार किए जा रहे थे.
काकागंज श्मशान घाट -25 अप्रैल को श्मशान घाट को कोविड-19 के मरीजों के अंतिम संस्कार के लिए रिजर्व किया गया. अब तक 235 अंतिम संस्कार हो चुके हैं. कोरोना काल के पीक पर होने के दौरान यहां रोजाना 20 से ज्यादा अंतिम संस्कार हुए.
गोपालगंज श्मशान घाट -अंतिम संस्कार में हो रही अव्यवस्थाओं और जगह कम पड़ने के कारण शहर के गोपालगंज श्मशान घाट को भी कोविड-19 के मरीजों के अंतिम संस्कार के लिए अधिकृत किया गया है हालांकि यहां अब तक 110 अंतिम संस्कार किए गए हैं.
शहर में बनेंगे तीन और विद्युत शवदाह गृह
कोरोना काल में श्मशान घाटों पर कम पड़ी व्यवस्थाओँ और विद्य़ुत शवदाह गृह को मिली लोगों की स्वीकार्यता को देखते हुए सागर नगर निगम ने शहर में 3 और विद्युत शवदाह गृह बनाने का फैसला किया है. नरयावली नाका श्मशान घाट पर पहले से ही 1 विद्युत शवदाह गृह है. इसके नजदीक ही एक और शवदाह गृह बनाने का काम शुरू हो चुका है. इसके अलावा काकागंज और गोपालगंज श्मशान घाट में भी दो और विद्युत शवदाह गृह बनाने की तैयारी चल रही है.