सागर। सनातन धर्म में बरगद के पेड़ 'वटवृक्ष' को पूज्यनीय माना गया है. सागर विश्वविद्यालय के बॉटनिकल गार्डन में एक ऐसा दुर्लभ ही वटवृक्ष संरक्षित है. इस बरगद के पेड़ को कृष्णवट के नाम से जानते हैं. ये सामान्य बरगद के पेड़ से अलग है. इसकी पत्तियां विशेष आकार की कटोरी और चम्मच नुमा हैं. इसी कारण इसे भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं से जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि इसी कृष्णवट के कटोरी और चम्मचनुमा पत्तों में मां यशोदा कान्हा को माखन मिश्री खिलाती थी. ये भी कहा जाता है कि जब कान्हा चोरी से माखन खाते थे,तो मां यशोदा को पता ना चले, इसलिए चोरी से इसकी पत्तियों में छिपा देते थे. खास बात ये है कि इसका बॉटनिकल नाम भी कृष्ण भगवान से मिलता जुलता 'कृष्नाई फाइकस' है. Krishna Janmashtami 2022
सागर यूनिवर्सिटी के बॉटनिकल गार्डन में संरक्षित कृष्णवट विशुद्ध भारतीय प्रजाति का 'कृष्नाई फाइकस': सागर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय स्तर के बॉटनिकल गार्डन में पिछले 58 सालों से यह दुर्लभ कृष्णबट (कृष्नाई फाइकस) संरक्षित है. वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर दीपक व्यास बताते हैं कि यह एक दुर्लभ पेड़ है. जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कि यह भगवान कृष्ण की पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है प्रोफ़ेसर दीपक व्यास के अनुसार जब भगवान कृष्ण बचपन में चोरी छुप माखन खाते थे और कभी मां यशोदा आती हुई दिख जाती थी तो वह इसी कृष्ण वट के पेड़ में माखन छुपा देते थे. इसलिए इसके पत्तों का आकार कटोरी और चम्मच नुमा हो गया. पेड़ की पत्ती में कटोरी और चम्मच का आकार अलग नजर आता है. एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि माता यशोदा इसी कटोरी-चम्मच नुमा पत्ते में अपने लाड़ले कान्हा को दही-मक्खन खिलाती थीं.
सागर वटवृक्ष के कटोरी चम्मच नुमा पत्ते देश में बहुत ही कम स्थानों पर मौजूद: सागर में डॉ. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय स्तर के बॉटनीकल गार्डन में कृष्णवट लगा है. हालांकि ये यूनिवर्सिटी में कब और कैसे पहुंचा और दुर्लभ पेड़ को किसने लगाया गया. ये जानकारी विभाग के पास नहीं है. हालांकि विभाग ने इसको संरक्षित करने व मानवीय हस्तक्षेप से बचाने के लिए भरपूर सुरक्षा इंतजाम किए हैं. वैसे तो यूनिवर्सिटी के बॉटनीकल गार्डन में सैकड़ों दुर्लभ प्रजाति के पेड़-पौधे संरक्षित हैं, लेकिन सबसे खास ये कृष्नाई फाइकस (कृष्णवट) है. इसकी ऊंचाई 30 मीटर तक होती है. यह तमाम औषधीय गुणों से भरपूर है.
सागर वटवृक्ष के कटोरी चम्मच नुमा पत्ते 50 साल से अधिक समय से है मौजूद: यह मूलतः भारतीय पेड़ है. सागर के अलावा बेंगलुरु के लालबाग और मुंबई के उपवन में मौजूद है. इसके अलावा श्रीलंका और अफ्रीका में भी पाया जाता है. एचओडी प्रोफेसर दीपक व्यास बताते हैं कि ये दुर्लभ प्रजाति का "कृष्ण वट" बॉटनीकल गार्डन में करीब 50 साल से अधिक समय से मौजूद है. हमने प्रयास करके इसके 4 पौधे तैयार किए थे, लेकिन सिर्फ एक छोटा सा पौधा 4 साल में तैयार हो पाया है. अन्य 2 पौधे जीवित नहीं रहे. खास बात ये है कि, इसका वानस्पतिक नाम भी भगवान कृष्ण से मिलता जुलता है. इसके अलावा ऐसी आम बोलचाल की भाषा में 'माखन कटोरी' और 'माखन दोना भी कहते है. Krishna Janmashtami 2022
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आक्सीजन का बड़ा स्त्रोत और भूजल का संकेत: बॉटनिकल गार्डन में दुर्लभ पेड़ कृष्ण वट का अपना वैज्ञानिक महत्व और औषधीय गुण भी है. दरअसल फाइकस बेंगालेंसिस नाम के सोलानासि परिवार का पेड़ प्राणवायु ऑक्सीजन का स्रोत है. ऑक्सीजन देने वाले दूसरे पेड़ों की अपेक्षा ये पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है. यह पेड़ 12 महीने हरा भरा रहता है. इससे यह सिद्ध होता है कि, इस पेड़ के आसपास भूजल स्तर काफी अच्छा है. इस दुर्लभ प्रजाति के नए पेड़ तैयार करने के लिए विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने कई प्रयास किए हैं, लेकिन सिर्फ एक पेड़ तैयार हो सका है. जो 4 सालों में मामूली तौर पर बढ़ा है.