सागर। वैसे तो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देश की आजादी के लिए 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है, लेकिन जानकारों की मानें तो अंग्रेजों के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह 1842 का बुंदेला विद्रोह था, जिसमें करीब एक साल तक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर कर दिया था, और इस विद्रोह ने एक तरह से 1857 की क्रांति नींव रखने का काम किया था.
बुंदेला विद्रोह की वीर गाथा भूमि सुधार बंदोबस्त के कानून का विरोध
बुंदेला विद्रोह के महानायक मधुकर शाह बुंदेला बने, जिन्होंने अंग्रेजों के बुंदेलखंड इलाके में कब्जा करने के बाद मनमाने तरीके से भूमि सुधार बंदोबस्त के कानून का विरोध किया था, विद्रोह की शुरूआत में जहां उन्होंने अंग्रेजों की अदालत के आदेश के उल्लंघन में कई ब्रिटिश सिपाहियों को मौत के घाट उतारा था, तो करीब एक साल तक अंग्रेजों की नाक में दम करके रखा था.
जेल में सार्वजनिक तौर पर दी गई फांसी
इस विद्रोह की आग तत्कालीन बुंदेलखंड इलाके में जमकर फैली और लोगों के मन में धारणा बनी, अंग्रेजों की भी खिलाफत की जा सकती है. बुंदेला विद्रोह के नायक मधुकर शाह बुंदेला को सागर जेल में सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई थी, जिनकी समाधि आज भी सागर केंद्रीय जेल में मौजूद हैं, लोग उनको नायक के तौर पर पूजते हैं.
अंग्रेजों के भूमि बंदोबस्त की कोशिश से पनपा था आक्रोश
1842 में वर्तमान सागर, दमोह, जबलपुर, मंडला नरसिंहपुर और बैतूल इलाकों में अंग्रेजों की भूमि बंदोबस्त सुधारों का जमकर विरोध हुआ, अंग्रेजों ने जब सागर और उसके आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया, तो अपने हिसाब से प्रशासनिक सुधार भी करने लगे, इन सुधारों के कारण इलाके की जनता में असंतोष पैदा हो गया और बड़े पैमाने पर विद्रोह का माहौल बनने लगा, राजस्व और भू राजस्व बंदोबस्त के जरिए, मनमाना लगान निर्धारित किए जाने से लोग आर्थिक बदहाली का शिकार होने लगे.
लगान नहीं देने पर अंग्रेजों ने संपत्ति से किया बेदखल
गांव के मुखिया के तमाम कानूनी अधिकार छीन लिए गए, इलाके के भू स्वामियों को अत्याधिक कर भार और संपत्ति से बेदखल कर प्रताड़ित किया जाने लगा, यही वजह 1842 के बुंदेला विद्रोह का कारण बनी, सागर में प्रमुख रूप से गौंड, लोधी और बुंदेला राजपूत वंश के लोग भूमि स्वामी थे, ईस्ट इंडिया कंपनी के भूमि बंदोबस्त के कारण पुराने मालगुजारों की बेदखली कर दी गई. जिन्हें अंग्रेज विद्रोही मानते और जो भू स्वामी मालगुजारी अदा नहीं कर पा रहे थे, जिन लोगों के ऊपर भू राजस्व बकाया था, उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई की गई और जमीन और संपत्ति से बेदखल कर दिया गया. इन वजहों के अलावा अफगानिस्तान में अंग्रेजों की हार से उत्साहित बुंदेलों ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह का आगाज कर दिया.
मधुकर शाह बने बुंदेला विद्रोह के नायक
बुंदेला विद्रोह की शुरुआत सागर के उत्तर में दो बुंदेला सरदारों चंद्रपुर के जवाहर सिंह और नरहुत के मधुकर शाह और गणेश जू ने की. इन लोगों के खिलाफ 1842 में सागर की दीवानी न्यायालय ने डिग्री दी थी, इसके जवाब में इन्होंने कोर्ट के आदेश को भंग कर पुलिस पर आक्रमण कर विद्रोह का आगाज़ किया, इस विद्रोह में कई पुलिस वाले मारे गए, विद्रोही हुए भू स्वामियों ने खुरई, खिमलासा, धामोनी, नरयावली और सागर नगर को लूटा और पुलिस की चौकियों पर हमले किए, डिलनशाह नरसिंहपुर के गौड़ों का मुखिया था. उसने देवरी और नरसिंहपुर के आसपास के इलाकों पर हमला कर दिया, लगभग एक साल तक ये पूरा इलाका उपद्रव ग्रस्त रहा, लेकिन कैप्टन बैकमैन ने नरहुत के मधुकर शाह को पकड़ने में सफलता हासिल की और उन्हें सार्वजनिक रूप से सूली पर चढ़ा दिया गया और उनके शव को सागर जेल के पीछे जला दिया गया.
जेल में जहां दी गई थी फांसी, वहां आज भी मधुकर शाह की समाधि
जिस तरह से बुंदेलखंड में अंग्रेजों को बगावत का सामना करना पड़ा था, तो अंग्रेजों ने सागर में 1842 में जेल की स्थापना की थी, वीर बुंदेला मधुकर शाह को गिरफ्तार करने के बाद सागर के मौजूदा केंद्रीय जेल, जो तब जिला जेल था, वहीं उन्हें सार्वजनिक रूप से 1845 में फांसी दी गई. सागर केंद्रीय जेल में वह फांसी घर आज भी मौजूद है और जहां मधुकर शाह का अंतिम संस्कार किया गया, वहां उनकी समाधि बनाई गई. जिसे जेल विभाग ने आज भी संरक्षित किया हुआ है.
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फांसी पर चढ़ जाने के बाद मधुकर शाह बुंदेलखंड में गीतों और जनश्रुतियों के नायक बन गए, कहा जाता है कि बुंदेलों के संगठित विद्रोह और करीब एक साल तक अंग्रेजों की नाक में दम करने के बाद लोगों की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नफरत बढ़ती गई और मधुकर शाह की फांसी ने इस आग में घी डालने का काम किया.
बुंदेला विद्रोह ने जलाई आजादी की अलख
इतिहासकार मानते हैं कि अंग्रेजों के खिलाफ संगठित विद्रोह का पहला नमूना बुंदेला विद्रोह था, 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 15 साल पहले ही बुंदेलों ने जिस तरह से एकजुट होकर करीब एक साल तक अंग्रेजों की नाक में दम किया, तो उन लोगों का मनोबल बढ़ा, जो अंग्रेजों की खिलाफत तो करते थे, लेकिन उनका विरोध नहीं कर पाते थे, 1857 की क्रांति की महानायिका लक्ष्मीबाई भी बुंदेलखंड इलाके से आती थी, कहा जाता है कि बुंदेला विद्रोह के बाद बुंदेलखंड में लगातार ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आक्रोश बढ़ता जा रहा था, जो 1857 की क्रांति के समय चरम पर पहुंच गया था.