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Diwali 2021: बुंदेलखंड में महालक्ष्मी का ऐतिहासिक मंदिर, मराठा काल में हुआ था निर्माण, सिर्फ दशहरा-दिवाली में खुलते हैं पट - दशहरा दिवाली में खुलता है महालक्ष्मी मंदिर

बुंदेलखंड में काफी ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर स्थित हैं. सागर के लक्ष्मीपुरा इलाके में महालक्ष्मी का एक प्रचीन मंदिर स्थित है, जो सिर्फ दशहरा-दिवाली पर खुलता है.

Diwali 2021
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Published : Nov 2, 2021, 2:02 PM IST

सागर।मध्य प्रदेश केबुंदेलखंड संभाग में काफी ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर हैं. मराठा काल में कई ऐतिहासिक और भव्य मंदिरों का निर्माण बुदेलखंड में कराया गया. सागर के लक्ष्मीपुरा इलाके में ऐसा ही एक महालक्ष्मी का ऐतिहासिक मंदिर स्थापित है. हालांकि यह मंदिर निजी संपत्ति है, लेकिन दीपावली के अवसर पर शहरवासियों को दर्शन के लिए इसे खोला जाता है. मराठा काल में सागर में आकर बसे सूबेदार परिवार के लोग मंदिर की पूजा-अर्चना और व्यवस्थाएं देखते हैं. यह सूबेदार परिवार का मंदिर है. इस मंदिर में दशहरा और दीपावली के दिन विशेष पूजन होता है.

मराठा काल में हुआ था निर्माण

300 साल पुराना है मराठा काल में बना मंदिर
मंदिर की ऐतिहासिकता और प्राचीनता की बात करें, तो इतिहासकार डॉ भरत शुक्ला बताते हैं कि महाराजा छत्रसाल को चरखारी (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में बाजीराव पेशवा ने मुगलों से युद्ध में मदद की थी. जिसमें उन्होंने बुंदेलखंड का यह इलाका मराठों के लिए उपहार के स्वरूप में दिया था. जब मराठा सागर जिले के आसपास बस गए, तो उन्होंने सागर जिले में कई मंदिर और भवनों का निर्माण किया. इसी कड़ी में सागर के लक्ष्मीपुरा इलाके में महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण किया गया था. यह मंदिर रियासत काल में निजी संपत्ति था और जब अंग्रेजों का भारत पर राज हुआ, तो यह मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच गया.

बाद में पुरुषोत्तम राव सूबेदार ने इस मंदिर का नए सिरे से जीर्णोद्धार कराया था. फिलहाल सूबेदार परिवार के वंशज इसी मंदिर परिसर में रहते हैं. मंदिर सूबेदार परिवार की निजी संपत्ति होने के कारण आमतौर पर दर्शनों के लिए नहीं खोला जाता है. लेकिन दशहरा और दीपावली के अवसर पर यह आम जनता के लिए खोला जाता है.

भगवान गणेश की भी मूर्ति विराजित

दशहरा-दिवाली में होती है विशेष पूजा
महालक्ष्मी मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर विशेष पूजा की जाती है. खासकर दशहरे के दिन सागर के हजारों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं. मंदिर के नजदीक स्थित शमी के पेड़ से शमी की पत्तियां तोड़कर मां महालक्ष्मी को अर्पित की जाती हैं. ऐसा माना जाता है कि शमी की पत्तियां अर्पित कर मां महालक्ष्मी से सच्चे मन से जो कामना करते हैं, वह पूरी होती है. इसी तरह दीपावली के अवसर पर स्थानीय लोग मां महालक्ष्मी की पूजा करने मंदिर पहुंचते हैं.

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महालक्ष्मी और भगवान गणेश की मनोहारी मूर्ति
यह मंदिर मराठा काल के स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है. मंदिर में स्थापित महालक्ष्मी की मनोहारी मूर्ति मराठा काल की मूर्ति कला से मिलती है. मंदिर में भगवान गणेश की भी प्रतिमा स्थापित है. इसके अलावा मंदिर में चारों तरफ दीवारों पर कलाकृतियां बनाई गई हैं. जो दर्शनार्थियों को आकर्षित करती हैं.

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