सागर। डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिले करीब 13 साल बीत चुके हैं. लेकिन 13 सालों में विश्वविद्यालय की दुर्दशा में सुधार नहीं आया है. एक तरफ सागर सेंट्रल यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के नए पाठ्यक्रम शुरू करने की तैयारी कर रही है और दूसरी तरफ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के स्वीकृत पदों में से 60 फीसदी पद खाली हैं. 2013 में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इन पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की गई थी, लेकिन भर्ती में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार के चलते भर्ती प्रक्रिया जांच और कानूनी झमेलों में उलझ गई. जिन लोगों का चयन कर लिया गया, उनका भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है. दूसरी तरफ विश्वविद्यालय प्रबंधन इन पदों को भरने में रुचि नहीं ले रहा है.
2009 में विश्वविद्यालय को मिला केंद्रीय दर्जा: सागर में विश्वविद्यालय की स्थापना देश की आजादी के एक साल पहले बुंदेलखंड के सपूत और जाने-माने बैरिस्टर डॉ. हरिसिंह गौर ने अपने जीवन की जमा पूंजी खर्च करके की थी. मध्य प्रदेश गठन के बाद इस विश्वविद्यालय को राजकीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ और 2009 में विश्व विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. इस तरह से विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिले करीब 13 साल बीत चुके हैं.
विश्वविद्यालय के 60 फीसदी प्रोफेसरों के पद खाली: सागर के डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा मिले एक अरसा बीत गया है. लेकिन हालात ये है कि, विश्वविद्यालय के स्वीकृत पद में से 60 फीसदी भी नहीं भर पाए हैं. विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के कुल 417 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से सिर्फ 172 पद भरे गए हैं और 245 पद रिक्त हैं. असिस्टेंट प्रोफेसर के 251 पद हैं, जिनमें से 155 पद भरे जा चुके हैं और 96 पद अभी भी खाली हैं. इसके अलावा विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के 106 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से सिर्फ 15 भरे गए हैं और 91 पद अभी भी खाली हैं. इसके अलावा प्रोफेसर के कुल स्वीकृत 56 पदों में से सिर्फ 2 पद भरे गए और 54 पद रिक्त हैं.
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2013 में की गई भर्तियां अधर में लटकी: ऐसा नहीं है कि, विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद स्वीकृत पदों को भरने की कोशिश नहीं की गई. 2013 में विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर नियुक्तियां निकाली गई थी. लेकिन इन भर्तियों में धांधली और भ्रष्टाचार के चलते सीबीआई जांच की गई थी, सीबीआई जांच के अलावा मानव संसाधन विकास मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन द्वारा स्वतंत्र जांच कराई गई थी. सीबीआई जांच के बाद मामला न्यायालय पहुंचा, तो न्यायालय ने इन भर्तियों में गड़बड़ी पाते हुए आदेश दिया था कि, इन नियुक्तियों के साक्षात्कार फिर से कराए जाएं. हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नियुक्तियां कर दी गई थी, लेकिन अभी तक इन नियुक्तियों को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है. ना तो विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कोर्ट के आदेश के तहत फिर से इंटरव्यू कराए गए हैं और ना ही नए सिरे से भर्ती की जा रही है. हालात ये है कि, 2013 में विभिन्न पदों पर चयनित उम्मीदवार अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
कैसे लागू होगी राष्ट्रीय शिक्षा नीति: विश्वविद्यालय के खाली पड़े पदों को लेकर एमपी कांग्रेस के प्रवक्ता संदीप सबलोक कहते हैं कि, 'विश्वविद्यालय के आधे से ज्यादा प्रोफेसर के पद खाली हैं, लेकिन इन पदों को भरने के लिए कोई पहल नजर नहीं आ रही है. एक तरफ सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू की है, तो दूसरी तरफ विश्वविद्यालय मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग के नए-नए पाठ्यक्रम शुरू कर रहा है. लेकिन शिक्षकों के खाली पद नहीं भर पा रहा है. सरकार उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन इनके लिए जो काम किया जाना जरूरी है, वह काम नहीं करती है.
क्या कहती हैं कुलपति: विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता का कहना है कि, 'विश्वविद्यालय के खाली पड़े पदों को लेकर समय-समय पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय से मार्गदर्शन मांगा गया है. इसके अलावा कानूनी सलाह भी ली जा रही है, जल्दी से जल्दी खाली पद भरने की कोशिश की जाएगी'.