सागर। प्रदेश के बुंदेलखंड और महाकौशल क्षेत्रों के साथ देश के कई राज्यों में ग्रामीण इलाकों के कुटीर उद्योग के रूप में स्थापित हो चुके बीड़ी व्यवसाय पर गंभीर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. दरअसल, बीड़ी और बीड़ी बनाने में काम आने वाले तमाम उत्पादों पर भारी-भरकम जीएसटी लगा दिया गया है जिसके चलते वैध तरीके से बीड़ी व्यवसाय करने वाले लोगों की कमर टूट (Beedi industry in crisis) गई है. हालाकि, अवैध तरीके से बीड़ी व्यवसायियों की चांदी भी हुई है, लेकिन इन परिस्थितियों में सरकार को राजस्व की हानि हो रही है.
जीएसटी लगने से बढ़ी चिंता
सरकार द्वारा विभिन्न उत्पादों पर लगाई गई जीएसटी आम कारोबारियों की तो कमर तोड़ ही रही है, दूसरी तरफ ग्रामीण अंचलों में ग्रामीण मजदूरों को कुटीर उद्योग के तौर पर रोजगार उपलब्ध कराने वाले बीड़ी व्यवसाय की भी कमर तोड़ दी है. बीड़ी पर मौजूदा स्थिति में 28% जीएसटी लगता है, इसके अलावा तेंदूपत्ता पर 18% और तंबाकू पर 28% जीएसटी लगता है. इसके साथ ही प्रिंटिंग पर 18% जीएसटी देना होता है. भारी भरकम जीएसटी के कारण बीड़ी उत्पादन की लागत काफी बढ़ गई है, पिछले दिनों बीडी पर लगने वाले करों को लेकर स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ और ऑल इंडिया बीड़ी इंडस्ट्री फेडरेशन के लोगों के अलावा बीड़ी उद्योग वाले प्रदेशों के राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधियों ने राउंड टेबल मीटिंग की थी, इस मीटिंग में बीड़ी उद्योग की मौजूदा स्थिति और बीड़ी पर लगने वाले करों का व्यवसाय पर क्या असर पड़ रहा है, इस पर मंथन किया गया.