सागर।कुपोषण को लेकर शोध में सामने आया है कि पिछले कुछ सालों में कुपोषण के कारण बच्चों में होने वाला दुबलापन कम हुआ है, लेकिन बच्चे तेजी से बौनेपन का शिकार हो रहे हैं. 1992-93 में शुरू हुए फैमिली हेल्थ सर्वे में यह चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉप्युलेशन साइंसेज (IIPS) पिछले 28 साल से कुपोषण पर शोध कर रहा है. वहीं हैरान करने वाली यह है कि कुपोषण का शिकार सिर्फ गरीब परिवार के बच्चे नहीं हो रहे हैं, बल्कि समृद्ध परिवार के बच्चे भी इसकी जद में आ रहे हैं.
IIPS कर रही नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे
कुपोषण को लेकर मुंबई में स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉप्युलेशन साइंसेज ने 1992-93 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की शुरुआत की थी. दरअसल कुपोषण से संबंधित सही आंकड़े ना होने के कारण कुपोषण को लेकर चलाए जा रहे कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू करने में दिक्कत आ रही थी. सरकार के पास सिर्फ आंगनबाड़ी ही ऐसा जरिया था, जिसकी सहायता से पीड़ित बच्चों को पका हुआ भोजन और रेडी-टू-ईट भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद भी समस्याएं सामने थी. जो पोषण आहार के अलावा दूसरी तरह की समस्याएं थी.
इन परिस्थितियों में परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, रहन-सहन का स्तर और अन्य चीजों का अध्ययन किया गया. क्योंकि पोषण और कुपोषण पर इन परिस्थितियों का गंभीर परिणाम पड़ता है, इसके लिए सही आंकड़े मिल पाना चुनौती थी. इसलिए IIPS मुंबई द्वारा 1992-93 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की शुरुआत की गई.
अलग-अलग अंतराल में हुआ सर्वे
ये सर्वे अलग-अलग अंतराल में किए गए हैं. पिछला नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 में शुरू हुआ था. लेकिन कोरोना के कारण कुछ राज्यों में सर्वे नहीं हो पाया था. अब सर्वे का काम समाप्त हो गया है. जिसके आधार पर मिले आंकड़ों से पोषण की मौजूदा स्थिति को आसानी से समझा जा सकेगा. फिलहाल केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पोषण अभियान चलाए जा रहे हैं. लेकिन इसको पूरी तरह से लागू करना और इसके अपेक्षित परिणाम मिलने में 2-4 साल लगने की उम्मीद है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से निकले आंकड़ों के आधार पर पोषण-कुपोषण और सरकार के पोषण अभियान की सफलता-असफलता का अध्ययन आसानी से हो सकेगा.
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बच्चों के खानपान से खिलवाड़
सागर विश्वविद्यालय में स्थित मप्र और छत्तीसगढ़ की जनसंख्या अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञ निखिलेश परचुरे ने कई जानकारी दी. उन्होंने बताया कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में मुख्य तौर पर देखने को मिला है कि बच्चों को संतुलित भोजन उपलब्ध नहीं होता है और अगर होता है, तो बच्चों को रुचिकर नहीं लगता है. पोषक तत्व के रूप में चावल, दूध, पनीर और दाल जैसी चीजें तो होती हैं. लेकिन 5 साल के बच्चों को उनकी रूचि का भोजन कैसे तैयार किया जाए. इसको लेकर परिवारों में जागरूकता का अभाव है.