सागर :दो साल बाद ये खास मौका होगा, जब माता के भक्तों को बिना किसी रोक-टोक के नवरात्रि में दर्शन करने को मिल रहे हैं. पिछले 2 साल से कोरोना महामारी के कारण ना तो माता के दरबार में मेले लग रहे थे और ना भक्तों को माता के दर्शन हो रहे थे. बुंदेलखंड में स्थित मां हरसिद्धि के प्रसिद्ध रानगिर मंदिर में हर साल चैत्र नवरात्रि में लगने वाला मेला 2 साल के बाद इस नवरात्रि में लगेगा. यूपी और एमपी के बुंदेलखंड के लाखों श्रद्धालु रानगिर मेले में शिरकत करने पहुंचते हैं. रानगिर के प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित इस मंदिर में भक्त सच्चे मन से जो भी मनोकामना करते हैं, वह पूरी होती है.
सागर जिले के रहली विकासखंड की रानगिर ग्राम पंचायत में मां हरसिद्धि का मंदिर स्थित है. जिला मुख्यालय से सागर-रहली मार्ग 5 मील से रानगिर के लिए सड़क मार्ग स्थित है. वहीं नेशनल हाईवे क्रमांक 44 से रानगिर के लिए रास्ता निकला हुआ है. रानगिर पहुंचने के लिए मेले के अवसर पर विशेष बसें चलाई जाती हैं. इसके अलावा ज्यादातर श्रद्धालु अपने निजी वाहनों से मां हरसिद्धि के दर्शन करने पहुंचते हैं.
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माता सती और रावण से जुड़ी कहानी: वैसे तो रानगिर की हरसिद्धि माता मंदिर को लेकर कई किवदंती है. किवदंती है कि दक्ष प्रजापति के अपमान से दुखी होकर माता सती ने योग बल से अपना शरीर त्याग दिया था और भगवान शिव ने क्रोध में आकर तांडव किया था. पूरे संसार में हाहाकार मच जाने के बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े किए थे. ये अंग जहां-जहां गिरे, वह सिद्ध क्षेत्र के नाम से जाते हैं. कहा जाता है कि माता सती की रान (जांघ) इसी पहाड़ी पर गिरी थी. इसलिए इसका नाम रानगिर पड़ गया. वहीं कुछ दूरी पर मां सती के दांत गिरे थे. इसलिए इस स्थान को गोरी दांत कहते हैं. यह भी कहा जाता है कि यहां रावण ने कालांतर में घोर तपस्या की थी. इसलिए इसे रावण गिरी के नाम से जानते थे. जो धीरे-धीरे रानगिर नाम में परिवर्तित हो गया.
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स्वयंभू है प्रतिमा: रानगिर की माता मंदिर में स्थापित मां हरसिद्धि की प्रतिमा को स्वयंभू प्रकट प्रतिमा कहा जाता है. कहा जाता है कि देहार नदी के किनारे एक बालिका खेलने के लिए आती थी और अपने साथ खेलने वाली बालिकाओं को हर दिन चांदी का एक सिक्का देती थी. इस बारे में जब गांव के लोगों को जानकारी हुई. तो उन्होंने दिव्य बालिका से पूछताछ करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए. एक चरवाहे ने छुपकर दिव्य बालिका को पकड़ तो लिया, लेकिन दिव्य बालिका तुरंत पाषाण की प्रतिमा में परिवर्तित हो गई. तब से ग्रामीण हरसिद्धि माता के रूप में दिव्य बालिका की पूजा अर्चना करने लगे और धीरे-धीरे मंदिर की ख्याति आसपास फैल गई.