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कोरोना काल में फीका रहा रीवा का दशहरा, किला परिसर में हुआ रावण दहन - Ravana Dahan Rewa

250 वर्षों से रीवा में दशहरा का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है, और अब कोरोना वायरस के चलते वर्षों बाद इस बार फिर किला परिसर में ही दशहरा के दिन रावण का पुतला दहन किया गया.

Rewa Dussehra faded due to Corona period
रीवा रियासत का अनूठा दशहरा

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Published : Oct 26, 2020, 3:31 AM IST

रीवा। वर्षों पुरानी प्रथा पर कोरोना वायरस का ग्रहण लग गया. मैसूर के बाद रीवा रियासत में धूम धाम से मनाया जाने वाले दशहरे में इस बार न तो चल समारोह का आयोजन हुआ और न ही मां दुर्गा की सुंदर झांकिया निकाली गईं. रीवा के कॉलेज चौराहा स्थित एनसीसी मैदान आयोजित होने वाले रावण वध और सांस्कृतिक महोत्सव भी स्थगित कर दिया गया. कोरोना संक्रमण के चलते इस बार किला परिसर में ही रावण वध का आयोजन किया गया. इस दौरान रावण के साथ दहन होने वाले मेघनाथ सहित कुंभकरण का पुतला किला मैदान से गायब रहा.

रीवा रियासत का अनूठा दशहरा
लगभग 250 वर्षों से रीवा में दशहरा का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है, और अब कोरोना वायरस के चलते वर्षों बाद इस बार फिर किला परिसर में ही दशहरा के दिन रावण का पुतला दहन किया गया. रीवा रियासत का यह दशहरा अपने आप में अनूठा है. और मैसूर के बाद एक मात्र रीवा ही एसी जगह है, जहां बड़े ही धूमधाम के साथ विजयादशमी उत्सव का आयोजन किया जाता है. शाम चार बजे किला परिसर में गद्दी पूजन के बाद किला परिसर से चल समारोह की शुरुआत हुआ करती थी, जिसमें आगे रथ पर सवार होकर रियासत के राजा चला करते थे और सैकड़ों की तादात में मां दुर्गा की प्रतिमाओं की झांकिया निकाली जाती थी, जिसके बाद एनसीसी मैदान में सांस्कृतिक महोत्सव कार्यक्रमों की शुरुआत होती थी. रात 12 बजे रावण दहन का आयोजन किया जाता था. लेकिन इस बार कोरोना काल के चलते विजयादशमी उत्सव समिति ने एनसीसी मैदान में होने वाले रावण वध कार्यक्रम का आयोजन निरस्त कर दिया और किला परिसर में ही आयोजन करने का निर्णय लिया.
दशहरा पूजन
रीवा रियासत का दशहरा अपने आप में एक अलग महत्व रखता है. राजघराने में रीवा महाराजा सहित राजपुरोहितों द्वारा पहले गद्दी पर विराजे राजाधिराज भगवान लक्ष्मण के पूजन का अयोजन किया जाता है, इसके बाद रीवा रियासत के महाराजा पुष्पराज सिंह किला परिसर पहुंचने वाले लोगों को संबोधित करते हैं, और वर्षों पुरानी परंपरा के तहत रीवा की प्रजा आज भी उनका न्यौछावर कर उनसे आशीर्वाद लेती है. फिर झांकियों का चल समारोह प्रारंभ होता है, इसमें स्वयं आगे-आगे रथ में रीवा राजाधिराज भगवान लक्ष्मण की झांकी निकाली जाती है, उनके पीछे मां दुर्गा की प्रतिमाओं की झांकियों को निकाला जाता है, उनके सेवक के रूप में रीवा महाराजा पुष्पराज सिंह और उनके पुत्र युवराज दिव्यराज सिंह चलते हैं. कहा जाता है कि इस रियासत में कोई भी राजा गद्दी पर नहीं बैठा बल्कि इस रियासत की गद्दी में भगवान लक्ष्मण ही विराजमान हैं, जो की रीवा रियासत के कुल देवता हैं.
रावण दहन
किला परिसर में गद्दी पूजन के बाद महाराजा पुष्पराज सिंह व उनके पुत्र युवराज दिव्यराज सिंह को पान खिलाया गया, महाराज व युवराज द्वारा नीलकंठ के दर्शन कर उन्हें आकाश की और उड़ाया गया, जिसके बाद किला परिसर से चल समारोह का आयोजन शुरू कर किला परिसर के सामने मैदान में भगवान राम के हाथों रावण का पुतला दहन किया गया और आतिशबाजी की गई.

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