जबलपुर। देश की आज़ादी के अमृत महोत्सव में ऐसे कई क्रांतिकारियों की चर्चा है जिन्हें इतिहास में उतनी जगह नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी. ऐसे ही एक वीर शहीद मामा टंट्या भील हैं. अब इनके नाम पर सरकार, इंदौर के पातालपानी स्टेशन सहित कई जगहों का नाम रखने जा रही है. 12 बरस तक अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले इंडियन रॉबिनहुड, टंट्या भील (Indian Robinhood Tantya Bheel)के बारे में आज भी कम ही लोग जानते हैं.
जबलपुर सेंट्रल जेल की दीवारें टंट्या की जांबाज़ी की गवाह हैं आदिवासियों के रॉबिनहुड टंट्या भील
देश की आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले कई गुमनाम योद्धाओं में से एक नाम है टंट्या भील. मामा टंट्या भील आज भी आदिवासियों के जननायक हैं. उनके हीरो हैं. उनके सम्मान में आज भी इंदौर के पातालपानी रेल्वे स्टेशन पर(who was tantya bheel) हर ट्रेन कुछ देर के लिए जरुर रुकती है.
उस जगह की मिट्टी जहां टंट्या भील को फांसी दी गई थी अंग्रेजों द्वारा लूटा गया धन गरीबों में बांटा
टंट्या भील वो जांबाज थे, जिन्होंने अंग्रेजों से 24 लड़ाइयां जीती थीं. 400 बार अंग्रेजों और उनके चापलूस जमींदारों से जनता से लूटा हुआ धन छीना था. 300 से ज्यादा गरीब लड़कियों की शादी करवाई थी. मामा टंट्या एक ऐसा किरदार है जो ब्रिटिश सत्ता के लुटेरों को लूटकर भूखे-नंगे गरीबों का पेट भरता था. इन्ही टंट्या भीम को जबलपुर केंद्रीय जेल में 25 नवंबर को फांसी दे दी गई थी.मध्यप्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव जबलपुर पहुंचे, जहां उन्होंने टंट्या भील मामा के उस स्थान की मिट्टी लेकर गए, जहां उन्हें कभी फांसी दी गई थी. बताया जाता है कि टंट्या मामा से पस्त हो चुकी अंग्रेजी हुकूमत ने ही उसे इंडियन रॉबिनहुड का नाम दिया था.
टंट्या भील की समाधि से पवित्र मिट्टी खंडवा के लिए रवाना टंट्या का मतलब संघर्ष
इतिहासकारों की मानें तो खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में सन् 1842 के करीब भाऊसिंह के यहां टंट्या का जन्म हुआ था. कहते हैं कि टंट्या का मतलब झगड़ा या संघर्ष होता है और टंट्या के पिता ने उन्हें ये नाम दिया था, क्योंकि वे आदिवासी समाज पर हो रहे जुल्म का बदला लेने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. बचपन में ही तीर कमान, लाठी और गोफल चलाने में पारंगत हो चुके टंट्या ने जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही जमींदारी प्रथा के खिलाफ अंग्रेजों से लोहा लेना शुरु कर दिया था.
इंडियन रॉबिनहुड टंट्या भील, जिन्होंने अंग्रजों के छक्के छुड़ा दिए थे अंग्रेजों की नाक में कर दिया था दम
सन् 1870 से 1880 के दशक में तब के मध्य प्रांत और बंबई प्रेसीडेंसी में टंट्या भील ने 1700 गांवों में अंग्रेजों के खिलाफ समानांतर सरकार चलाई थी. तब महान क्रांतिकारी तात्या टोपे ने टंट्या से प्रभावित होकर उन्हें छापामार शैली में हमला बोलने की गौरिल्ला युद्धकला सिखाई थी. (tantya bheel fight british) )जिससे टंट्या ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. तब ये मान्यता थी कि मामा टंट्या के राज में कोई आदिवासी भूखा नहीं सो सकता. टंट्या से मुंह की खा रहे अंग्रेजों को टंट्या से लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना की ख़ास टुकड़ी भारत बुलानी पड़ी थी. हांलांकि टंट्या को ब्रिटिश सेना ने धोखे से गिरफ्तार कर लिया था. इतिहासकार बताते हैं कि 11 अगस्त सन् 1889 को रक्षाबंधन के दिन जब टंट्या अपनी मुंहबोली बहन से मिलने पहुंचे थे तो उसके पति गणपत सिंह ने मुखबिरी कर उन्हें पकड़वा दिया था. जबलपुर में अंग्रेजी सेशन कोर्ट ने 19 अक्टूबर को टंट्या भील को फांसी की सज़ा सुना दी थी.
जानिए, टंट्या भील को क्यों कहते हैं इंडियन रॉबिनहुड धोखे से पकड़ा, जबलपुर सेंट्रल जेल में दे दी फांसी
जबलपुर के कुछ देशप्रेमी वकीलों ने टंट्या की जान बचाने के लिए मर्सी पिटिशन भी दायर की थी. लेकिन क्रूर अंग्रेजी अदालत ने 25 नवंबर को उनकी मर्सी पिटीशन खारिज कर दी थी. आखिरकार अंग्रेजों ने 4 दिसंबर 1889 को मामा टंट्या भील को जबलपुर की सेंट्रल जेल में फांसी दे दी थी. जेल में टंट्या पर खूब जुल्म ढाए गए थे. जबलपुर सेंट्रल जेल की दीवारें आज भी मामा टंट्या की जांबाज़ी की गवाह हैं. जहां टंट्या ने मौत को सामने देखकर भी अंग्रेजों के सामने झुकना कुबूल नहीं किया था.
आदिवासियों के भगवान हैं टंट्या भील
भारत और भारतीयों के स्वाभिमान की खातिर शहीद हुए टंट्या भील को गुज़रे भले ही 100 साल से ज्यादा का अरसा हो गया है, लेकिन मामा टंट्या आज भी आदिवासियों के लिए भगवान से (god of adiwasi tantya bheel )कम नहीं हैं. इंडियन रॉबिनहुड मामा टंट्या भील का पूरा जीवन और अन्याय के खिलाफ उनका संघर्ष आज भी देश वासियों के लिए गौरव के साथ साथ प्रेरणा देता है.