जबलपुर। हत्या के आरोप में आजीवन कारावास से दण्डित मेडिकल छात्र को हाईकोर्ट ने दोषमुक्त कर दिया है. हाईकोर्ट जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस सुनीता यादव ने अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ता को आरोपी सिद्ध करने में अभियोजन व पुलिस ने जल्दीबाजी में कार्रवाई की है. डबल बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि डॉक्टर बनने के बाद याचिकाकर्ता 3 लाख रूपये सालाना कमाई करता था. उसने अपने जीवन के 14 साल जेल में काटे हैं. इसके लिए सरकार उसे 42 लाख रूपये मुआवजे के तौर पर दे.
डॉक्टर पर लगा था एक लड़की की हत्या का आरोप:याचिकाकर्ता चंद्रेष मर्सकोले की तरफ से दायर अपील याचिका में कहा गया था कि वह गांधी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस अंतिम साल का छात्र था. उसे एक लडकी की हत्या के आरोप में जून 2009 में कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. अपील में डॉक्टर ने कहा था कि वह निर्दोष है और अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर हेमंत वर्मा के इशारे पर पुलिस ने उसे फंसाया है. डॉक्टर हेमंत वर्मा के तत्कालीन आईजी भोपाल शैलेन्द्र श्रीवास्तव के अच्छे संबंध थे. हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के दौरान पाया कि हत्या का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है. प्रकरण में डॉ हेमंत वर्मा और उनका ड्रायवर मुख्य गवाह है.
यह था पूरा घटनाक्रम:अभियोजन के मुताबिक याचिकाकर्ता ने 19 सितम्बर 2008 को होशंगाबाद जाने के लिए रेसिडेंट डॉक्टर हेमंत वर्मा से उनकी टोयोटा क्वालिस गाडी मांगी थी. डॉ वर्मा ने अपने ड्रायवर राम प्रसाद को याचिकाकर्ता के साथ जाने के लिए कहा था. हॉस्टल से याचिकाकर्ता के अपना बिस्तरबंद गाडी की डिक्की में रखा था. इसके बाद वह होशंगाबाद जाने के लिए रवाना हुए. बुधनी घाटी के पास याचिकाकर्ता ने ड्राइवर को पचमढ़ी चलने के लिए कहा. शाम 4 बजे ड्राइवर ने पचपढी स्थित दर्शन मजार के समीप टायलेट जाने के लिए गाडी रोकी. जब वह यूरिन कर रहा था तभी उसे कुछ गिरने की आवाज आई. उसने देखा कि गाडी की डिक्की खुली थी और बिस्तरबंद नहीं था. इसके बाद वह रात लगभग 10 बजे वापस लौट आये थे. लौटने के बाद ड्राइवर ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी डॉ वर्मा को दी थी. डॉ वर्मा ने घटना का उल्लेख करते हुए आईजी भोपाल को पत्र लिखा था. पत्र में इस बात का उल्लेख किया गया था कि पिपरिया निवासी एक लडकी का याचिकाकर्ता मेडिकल छात्र के हॉस्टल स्थित कमरे में आना-जाना था. लडकी छात्र के कमरे में रूकती थी. संभवता याचिकाकर्ता मेडिकल छात्र ने लडकी की हत्या कर लाश को ठिकाने लगा दिया है.
यह है कोर्ट का तर्क: कोर्ट ने पाया कि डॉ वर्मा ने सीधे आईजी भोपाल से संपर्क किया,जिससे स्पष्ट है कि वे दोनों परिचित हैं
- डॉ वर्मा ने अपने बयान में कहा है कि पुलिस याचिकाकर्ता छात्र को छात्रावास से 20 सितम्बर 2008 को ले गयी थी,जबकि उसकी गिरफ्तारी 25 सितम्बर 2008 को दिखाई गई है.
- डॉ वर्मा ने अपने बयान में कहा है कि वह 19 सितम्बर 2008 को इंदौर गये थे. विवेचना अधिकारी ने उसने किस कार्य और किस तरह इंदौर गये थे,इस संबंध में कोई पूछताछ नहीं की.
- जब उन्हें इंदौर जाना था तो उन्होने अपना वाहन और ड्राइवर याचिकाकर्ता को क्यों दिया, ड्राइवर ने अपने बयान में कहा है कि बिस्तरबंद भारी था.
- ड्राइवर ने जब डिक्की में रखने व फैंकने में सहयोग नहीं किया तो उसे कैसे पता चला की बिस्तदबंद भारी है.
- इसके अलावा एक बयान में कहा है कि पचमढ़ी टोल नाका पर गाडी में चार व्यक्ति बैठे थे. बयानों के आधार पर कोर्ट ने पाया कि मामले में जल्दबाजी में विवेचना की गई है.उन्होंने सिर्फ याचिकाकर्ता को दोषी साबित करने के लिए कार्रवाई की सत्य जानने का प्रयास नहीं किया. मामले में बुधवार को पारित अपने आदेश में हाईकोर्ट ने जिला न्यायालय के आदेश को खाजिर करते हुए डॉक्टर चंद्रेश मर्सकोले को दोषमुक्त करते हुए राज्य सरकार से उसे मुआवजा देने के आदेश दिए हैं.
रीवा में दो भाईयों की संदिग्ध मौत का मामला:रीवा के मनगवां थानातंर्गत रक्षा बंधन के बाद रिश्ते दो भाईयों की संदिग्ध अवस्था में हुई मौत को पुलिस ने हादसा बताया था. इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. दायर याचिका में मामले की जांच सीबीआई व एसटीएफ से कराये जाने की मांग की गई है.
जस्टिस पुरुषेन्द्र कौरव की एकलपीठ ने मामले में गृह विभाग,डीजीपी सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिये हैं. यह मामला रितेश कुमार सेन की ओर से हाईकोर्ट में दायर किया गया है. जिसमें कहा गया है कि उसका भाई जय प्रकाश सेन व मौसी का लड़का मोहित सेन थाना मऊगंज के ग्राम कांटी राखी बंधवाने गये थे. वहां से वापस लौटने के निकले और लापता हो गये, जिनका कुछ पता नहीं चला. उसके दूसरे दिन दोनों युवकों के शव बाइक सहित अमवा पुल के नीचे नहर में पड़े मिले थे. परिजनों द्वारा पुलिस को सूचना दी गई और दोनों युवकों के शव को बाहर निकलवाया गया. दोनो के शवों पर चोट के निशान थे. इस दौरान परिजनों ने शिवम तिवारी नामक युवक पर हत्या का संदेह व्यक्त करते हुए आरोप लगाया था कि शिवम से पूर्व में दोनों मृतकों की लड़ाई हुई थी. शिवम ने उन्हें मारने की धमकी भी दी थी. उक्त मामले को लेकर परिजनों व क्षेत्रीय जनों ने शव रखकर प्रदर्शन भी किया था और पुलिस पर आरोप लगाए थे कि हत्या के मामले को पुलिस ने एक्सीडेंट मानकर दबा दिया. मामले में निष्पक्ष कार्रवाई न किये जाने का आरोप लगाते हुए मामले की जांच एसआईटी व सीबीआई से कराये जाने की मांगी गई है. मामले में चीफ सेक्रेट्री होम डिपार्टमेंट, डीजीपी मध्य प्रदेश शासन, कलेक्टर रीवा, एसपी रीवा, थाना इंचार्ज मनगवां और एसपी एसटीएफ भोपाल को पक्षकार बनाया गया है. हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिये हैं.