जबलपुर। आमिर खान और अमन दामले. ये उस बच्चे के दो नाम हैं जो लगभग 10 साल पहले अपने असली मां-बाप से बिछड़ गया था. इस बीच मुस्लिम परिवार में जन्मे आमिर की परवरिश एक हिंदू परिवार में हुई. जबलपुर के आमिर को नागपुर में नया नाम और नई पहचान मिली. जबलपुर से नागपुर पहुंचा आमिर अब अमन बन चुका था. अमन जिस हिंदू- दामले परिवार के साथ था उसने आमिर की मानसिक स्थिति का इलाज भी कराया और उसके सामान्य होने के बाद उसे नया नाम दिया अमन. कुछ दिन पहले अपने असली माता-पिता के पास पहुंच चुका आमिर आज 250 किलोमीटर दूर नागपुर में अपनी मां की जन्मदिन मनाने पहुंचा है. आमिर के साथ आखिर ऐसा क्या हुआ था, कैसे वो जबलपुर से नागपुर पहुंचा..जानिए इस रिपोर्ट में
अपनी 'मां' का जन्मदिन मनाने नागपुर गया है आमिर
अपने असली घर और असली माता-पिता के बीच जबलपुर लौट आने के बाद भी आमिर नागपुर के अपने परिवार को नहीं भूला है. वह अपनी नागपुर वाली मां का जन्मदिन मनाने अपने पिता के साथ लगभग 250 किलोमीटर तक बाइक चलाकर नागपुर पहुंचा और मां का जन्मदिन सेलिब्रेट भी किया. जबलपुर के अपने परिवार को उसने वीडियो कॉल के जरिए जोड़ा. फोन पर वीडियो कॉल के दौरान दोनों परिवार के लोगों के बीच इतनी आत्मीयता से बातचीत हुई जिसे देखकर कहीं से भी नहीं लगता कि एक इंसान का दूसरे इंसान के बीच जुड़े नाते का आधार सिर्फ धर्म मजहब और रिश्ता ही होता है. यहां अमन, आमिर उसके बायोलॉजिकल माता-पिता और नागपुर के दामले परिवार के बीच जुड़ा जो बंधन है वो सिर्फ प्यार का बंधन है.
अपनेपन ने गिराई मजहब की दीवार
एक मुस्लिम लड़का जिसे नागपुर के दामले परिवार ने अपने बेटे की तरह पाला. उसे लाड़-प्यार और अपनापन दिया. इतना प्यार की अमन बना आमिर अपने असली परिवार और बायोलॉजिक माता-पिता को भूल चुका था. उसके परिवारवालों को उसके जिंदा होने की उम्मीद ही नहीं थी, लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनका आमिर नागपुर के दामले परिवार के पास है तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा वे उसे लेने नागपुर पहुंच गए. इस बात का कोई ख्याल नहीं आया कि वह हिंदू परिवार उनके साथ कैसा व्यवहार करेगा. उनका बेटा उन्हें मिलेगा या नहीं, फोन पर हुई बातों से अपनेपन की ऐसी डोर जुड़ी जिसमें धर्म और मजहब की बातें कहीं आड़े ही नहीं आईं. मुस्लिम परिवार में जन्मा आमिर जिसे एक हिंदू परिवार ने पाया अपनापन दिया यही साबित करता है धर्म और मजहब इंसानी रिश्तों से ऊपर नहीं हो सकते. आमिर 2015 तक एक अनाथालय में रहा. अनाथालय बंद हो जाने के बाद उसकी देखभाल करनेवाला कोई नहीं था. इसके बाद दामले परिवार अनाथालय से संपर्क कर उसे अपने घर ले गया. तब से वह उनके परिवार के साथ ही घर के सदस्य की तरह रहा. बचपन में साफ बोलने में असमर्थ आमिर सिर्फ अम्मा ही बोल पाता था. इसलिए दामले परिवार ने उसका नाम अमन रख दिया. वह अपने घर का पता, माता-पिता का नाम कुछ भी नहीं बता पाता था.
बचपन में ठीक नहीं थी मानसिक स्थिति
जबलपुर के गोहिलपुर थाना झेत्र में रहने वाले शेख अयूब का बेटा था आमिर. आमिर के पिता यहीं सिंधी कैंप के पास शास्त्री नगर में एक छोटा सा होटल चलाते हैं. ईटीवी भारत ने आमिर से अमन बने इस लड़के के परिवार से बात की और जाना कि उनका आमिर 250 किलोमीटर दूर जबलपुर किन परिस्थितिओं और हालत में पहुंचा और क्या इस दौरान उन्होंने उसे ढूंढने की क्या कोशिश की. आमिर की मां ने बताया कि उसकी मानसिक स्थिति बचपन में कुछ ठीक नहीं थी. पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था और अक्सर स्कूल से भाग जाया करता था. ऐसा वह 2-3 बार से ज्यादा कर चुका था. एक बार तो वह कचरा बीनने वाले बच्चों के साथ पकड़ा गया था और हमें पुलिस थाने में बैठा मिला. मां बताती हैं कि बचपन से ही उसका व्यवहार सामान्य बच्चों जैसा नहीं था. उसकी इन आदतों से परिवार के लोग काफी परेशान थे. मां ने बताया कि आखिरी बार करीब 10 साल पहले जब गायब हुआ तो फिर काफी तलाशने के बाद भी उन्हें नहीं मिला.