जबलपुर। मध्य भारत में दुर्गा पूजा (Jabalpur Durga Puja)के पंडालों की परंपरा जबलपुर से ही शुरू हुई थी. पहले बुंदेली परंपरा से बनाई हुई मूर्तियां स्थापित की जाती थीं. धीरे-धीरे इस कला में निखार आया और अलग-अलग तरीके से मूर्तियां बनाई जाने लगीं. जबलपुर में मिट्टी से मूर्ति बनाने वाले करीब 500 कलाकार हैं.
ऐसे तैयार होती हैं माता की मूर्तियां
नवरात्र शुरु होने वाले हैं. हर जगह माता के पांडाल सजने वाले हैं. पांडालों में आकर्षक मूर्तियां सजने लगी हैं. जबलपुर में उस मिट्टी का इस्तेमाल होता है जिनसे ईंटें बनाई जाती हैं. उसके बाद लकड़ी का एक ढांचा बनाया (Jabalpur Durga Puja) जाता है. इस पर बोरी में इस्तेमाल की जाने कपड़ा और धान की पुऑल से एक ढांचा बनाया जाता है. इसमें चौक मिट्टी से फिनिशिंग की जाती है. ऊपर कलर लगाए जाते हैं. फिर 15-20 सालों का हुनर काम आता है. तब जाकर 15 फीट से लेकर 20 फीट की मूर्तियां बनाई जाती हैं. जब फाइनल मूर्तियां तैयार होती हैं तो लगता है साक्षात मां दुर्गा धरती पर आ गई हैं.
100 साल पुरानी परंपरा
सामान्य तौर पर जबलपुर में 4 तरीके की मूर्तियां रखी जाती हैं. इनमें (Jabalpur Durga Puja)बंगाली परंपरा की मूर्तियां, दुर्गा माता की मूर्तियां, मां काली की मूर्तियां और बुंदेली तरीके से बनाई गई माता की मूर्तियां शामिल हैं. अलग-अलग स्वरूपों की वजह से अलग-अलग पंडालों में लोग उन्हें देखने आते हैं. जबलपुर में ये परंपरा 100 सालों से ज्यादा पुरानी है.