जबलपुर। भोपाल गैस त्रासदी के संबंध में दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट जस्टिस शील नागू व जस्टिस डीडी बसंल ने इंडियल काउसिंल ऑफ मेडिकल रिर्सच के चेयरमेन को तलब किया है. युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करने पर क्यो नहीं उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाए. याचिका पर अगली सुनवाई अगले सप्ताह निर्धारित की गयी है.
अदालत के निशा निर्देशों का नहीं हुआ पालन:सर्वाेच्च न्यायालय ने साल 2012 में भोपाल गैस पीडित महिला उद्योग संगठन सहित अन्य की ओर से दायर की गई याचिका की सुनवाई करते हुए भोपाल गैस पीडितों के उपचार व पुनार्वास के संबंध में 20 दिशा निर्देश जारी किये थे. इन बिंदुओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित कर मॉनिटरिंग कमेटी का गठित करने और इसकी रिपोर्ट प्रत्येक तीन माह में हाईकोर्ट के समक्ष पेश करने तथा रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए जाने के निर्देश भी जारी किये थे. जिसके बाद उक्त याचिका पर हाईकोर्ट द्वारा सुनवाई की जा रही थी. याचिका के लंबित रहने के दौरान मॉनिटरिंग कमेटी की अनुशंसाओं का परिपालन नहीं किये जाने के खिलाफ भी अवमानना याचिका दायर की गयी थी. अवमानना याचिका में कहा गया था कि गैस त्रासदी के पीडित व्यक्तियों के हेल्थ कार्ड नहीं बने हैं. अस्पतालों में अवश्यकता अनुसार उपकरण व दवाएं उपलब्ध नहीं है.बीएमएचआरसी के भर्ती नियम का निर्धारण नहीं होने के कारण डॉक्टर व पैरा मेडिकल स्टॉफ स्थाई तौर पर अपनी सेवाएं प्रदान नहीं करता.
MP High Court निजी मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटों की फीस कम करने पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक
शासन प्रशासन को बनाया अनावेदक:अवमानना याचिका में केन्द्रीय परिवार कल्याण विभाग के सचिव रंजन भूषण, केन्द्रीय रसायन व उर्वरक विभाग के सचिव आरती आहूजा, प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस, भोपाल गैस त्रासदी सहायता एंव पुनर्वास विभाग के सचिव मोहम्मद सुलेमान, आईसीएमआर के वरिष्ट डिप्टी डायरेक्टर आर. राम तथा बीएमएसआरसी के संचालक डॉ प्रभा तथा एनआईआरई के संचालक राजनारायण तिवारी को अनावेदक बनाया गया था. याचिका पर गुरूवार को हुई सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने बीएमएचआरसी में जारी भर्ती प्रक्रिया पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उक्त आदेश जारी किए हैं.
ADJ और सिविल जज की परीक्षा की उत्तरपुस्तिकाएं सार्वजनिक करने का मामला :सिविल जज तथा एडीजे की मुख्य परीक्षा की उत्तर पुस्तिका आरटीआई के तहत प्रदान करने की मांग संबंधित जनहित याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी. अब इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट मे अपील करने के लिए संविधान के अनुछेद 134-। के तहत प्रमाणपत्र की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में विधिक याचिका दायर की गयी है.
एडवोकेट यूनियन फार डेमोक्रेसी एवं सोशल जस्टिस की तरफ से दायर याचिका में आरटीआई के तहत सिविल जज एवं एडीजे की मुख्य परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाए प्रदान करने की मांग की गयी थी. हाईकोर्ट का नियम है की उम्मीदवार को स्वंय की उत्तरपुस्तिका आरटीआई के तहत प्रावधान की जा सकती है. जिसपर कोर्ट ने विस्तृत निर्णय देते हुए कहा था कि यदि आरटीआई के तहत उत्तर पुस्तिकाए दी जाती है तो इसके दुरुपयोग होने की संभावना है, निजता का हनन होगा, कई जटिलताएं उत्तपन्न होगी, उत्तरपुस्तिकाए संबंधित अभ्यर्थी की व्यक्तिगत जानकारी का हवाला दिया जाता है.आदेश में कहा गया था कि आरटीआई के तहत उत्तरपुस्तिकाए देने का आदेश किया जाता है तो हाईकोर्ट के 75 प्रतिशत कर्मचारी इसी काम मे व्यस्त हो जाएंगे. इसके बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी.
sc में दाखिल करेंगे पिटीशन:सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ऐसे ही एक केस “सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया विरूद्ध सुभाष चंद्र अग्रवाल” मे दिए गए फैसले के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट के न्यायधिपतियों की संपत्ति की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त की जा सकती है, तो क्या सिविल जज एवं एडीजे की मुख्य परीक्षाओं की उत्तरपुस्तिकाएं सार्वजनिक करने से क्या इसे अभ्यार्थियों की निजता का उल्लंघन माना जाएगा. याचिका में कानून के पांच सारभूत प्रश्नो के निराकरण हेतु सुप्रीम कोर्ट मे संविधान के अनुछेद 134-। के अपील करने के प्रावधान के तहत प्रमाणपत्र की मांग की गई है.