जबलपुर।फिल्म जगत में कई बेहतरीन कलाकार हैं जो कि अपनी कला के माध्यम से लोगों पर छाप छोड़ रहे हैं, इन्हीं कलाकरों में से एक नाम है मशहूर अभिनेता गोविंद नामदेव का. जी हां, गोविंद नामदेव जिन्होंने विरासत, गर्व, वांटेड, भूल-भुलैया जैसी बेहतरीन फिल्मों में अपनी अदा से जलवे बिखेरे हैं, नामदेव को एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा) का दिलीप कुमार भी कहा जाता है. तो आइए जानते हैं इंडस्ट्री के प्रसिद्ध फिल्म एक्टर गोविंद नामदेव से उनके जीवन संघर्ष की कहानी. (film actor govind namdev exclusive interview)
सवाल: मध्यप्रदेश के एक छोटे से जिले का व्यक्ति आज फिल्म जगत में इतना महान कलाकार.. बेताज बादशाह, कैसा लग रहा है?
जवाब: जी मैं फिल्म इंडस्ट्रीज में बेताज बादशाह नहीं हूं, बस एक छोटा सा कलाकार हूं. फिल्मों में जो मैंने काम किया है उसमें दर्शकों का मुझे प्यार भी बहुत मिला है, मुझे फिल्म इंडस्ट्री में 32 साल हो गए हैं और अभी भी अच्छे कामों को करने का मौका मिल रहा है.
सवाल:नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा को आपने ज्वाइन किया, वहां से आपको किस तरह की सीख मिली है जिसने आज फिल्म जगत में इतनी बड़ी ऊंचाई पर पहुंचा दिया?
जवाब:सातवीं क्लास तक सागर में पढ़ने के बाद मैं दिल्ली चला गया और वहीं पर ही पूरी पढ़ाई की, मेरी इच्छा थी कि मैं सागर से बाहर जाकर पढ़ाई करूं. मुझे महापुरुषों की जीवनी पढ़ने का बहुत शौक था, मुझे यह जानने की हमेशा से ही लालसा रहती थी कि महापुरुष आखिर क्या ऐसा काम करते हैं कि उन्हें सब लोग याद करते हैं. खास तौर पर मैं यह देखा करता था कि उन्होंने किस उम्र में कितनी पढ़ाई की और क्या खास किए कि वे महापुरुष बने. मैंने यह भी देखा है कि जितने भी महापुरुष थे उन्होंने पढ़ाई अच्छी की थी, बड़े-बड़े शहरों में जाकर पढ़ रहे थे, तो मेरी भी इच्छा होती थी कि अगर मुझे बड़ा बनना है तो कुछ बड़ा करना होगा तो बाहर ही जाना होगा, फिर मैंने सोच लिया कि मुझे अब दिल्ली जाकर ही पढ़ाई करनी है.
सवाल:एन.एस.डी से आपने डिग्री ली और उसके बाद फिर जब फिल्मों में आए तो विलन बनने का ही क्यूं सोचा, अक्सर टीवी पर विलेन को लोग गंदा ही बोलते हैं. इसके बावजूद भी आप विलेन बने?
जवाब:(मुस्कुराते हुए) दिल्ली में मैंने पढ़ाई की और उसके बाद 1975 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ज्वाइन किया, इस दौरान 3 साल तक मैंने ट्रेनिंग की. इसके बाद 11 साल तक मैंने नाट्य मंच में काम किया, 1990 में जब मैं मुंबई जा रहा था तब मैंने सोचा कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ तीन लोगों को ही दर्शक ज्यादा जानते हैं, एक होता है हीरो, दूसरा हीरोइन और तीसरा विलन. हीरो में बन नहीं सकता था क्योकि मेरी उम्र निकल चुकी थी. हीरोइन बनने का सवाल ही नहीं था तो फिर मैंने तय किया कि मुझे विलेन बनना है. दिल्ली में मैंने जो भी थिएटर किया वह बहुत ही बेहतरीन था, इस दौरान मुझे भारत से बाहर जाने का भी मौका मिला.