इंदौर।कोरोना वैश्विक महामारी ने दुनियाभर की अर्थव्यवस्था चौपट कर दिया है, जिस कारण दुनियाभर में करोड़ों लोगों का रोजगार छिन गया है. भारत जैसे विकासशील देश में आलम यह है कि कर्फ्यू और लंबे लॉकडाउन के बाद यहां 12 से 14 करोड़ रोजगार खत्म हो चुके हैं. रोजगार उपलब्ध कराने वाले उद्योग सेक्टर को ही 40 से 50 हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है, जिसका अच्छा खासा असर मध्य प्रदेश के आर्थिक राजधानी इंदौर में भी पड़ा है. नतीजतन सभी मदद के लिए सरकार से आस लगाए बैठे हैं जबकि बेरोजगारी अपने चरम पर है.
लॉकडाउन के कारण बढ़ी बेरोजगारी हर साल लाखों लोगों को रोजगार देने वाले ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल और तरह-तरह के सैकड़ों उद्योग इन दिनों कामकाज के लिहाज से सूने पड़े हैं, जो मजदूर इनमें थे कर्फ्यू और लॉकडाउन के बाद सभी पलायन कर गए. अब जबकि लॉकडाउन खुलने से बाजार खुल रहे हैं तो उद्योगों में मजदूरों का टोटा है तो कहीं श्रमिकों से काम कराने के लिए अवसर ही नहीं बचे हैं. जो मजदूर पलायन करके अपने अपने घरों को लौट चुके हैं उन्हें गांवों में भी रोजगार नहीं मिल रहा है. मनरेगा समेत राज्य सरकार विभिन्न प्रयासों से रोजगार उपलब्ध कराने के जितने प्रयास कर रही है बेरोजगारी की तुलना में वे एक चौथाई भी नहीं हैं, ऐसी स्थिति में बड़ी संख्या में युवा और कुशल कारीगर काम की तलाश में जहां-तहां भटकने को मजबूर हैं.
उद्योग पर पड़ा बुरा असर
उद्योगों की बात की जाए तो सबसे खराब स्थिति ऑटोमोबाइल एफएमसीजी और कॉमर्स सेक्टर की है. ऑटोमोबाइल सेक्टर में वाहनों की खरीदी नहीं होने के कारण स्थाई तौर पर मंदी देखी जा रही है. इसी तरह एफएमसीजी से जुड़े कॉस्मेटिक उद्योग से लोग किनारा कर चुके हैं, बीते 3 माह में इस सेक्टर में भी ब्यूटीशियन और ब्यूटी पार्लर के अलावा हजारों लोगों के रोजगार जा चुके हैं. टेक्सटाइल के हालात भी इससे जुदा नहीं है, रक्षाबंधन ईद और त्योहारी सीजन में भी कपड़ों की खरीदी नहीं हो सकी. जिसका खामियाजा टेक्सटाइल उद्योगों को भुगतना पड़ा. इधर सिर पर दीपावली है लेकिन बाजार को लेकर असमंजस फिर भी बरकरार है.
शिक्षा से जुड़े उद्योगों में भी बेरोजगारी
प्रदेश के एकमात्र एजुकेशन हब इंदौर में कोचिंग समेत प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले शिक्षण संस्थानों को भी कोरोना के कहर से जूझना पड़ रहा है. देशभर से इनमें जो बच्चे पढ़ने आते थे वह भी लॉकडाउन के दौर में अपने घर लौट चुके हैं. वहीं शिक्षण संस्थानों के हालत के कारण शैक्षणिक कामकाज करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं जो अपने लिए रोजी-रोटी के नए विकल्प तलाशने में जुटे हैं.
बारिश में प्रभावित हुआ मनरेगा का काम
कोरोना संक्रमण फैलने पर लाखों श्रमिक देशभर से अपने घरों पर तो लौट चुके हैं, लेकिन इन कुशल श्रमिकों को ग्रामीण क्षेत्रों में मनचाहा काम नहीं मिल पा रहा है. मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्माण के जो कामकाज चल रहे हैं, उनमें भी सीमित संख्या में मजदूरों को मजदूरी मिल पा रही है. इधर अब बारिश का सीजन शुरू होने से अधिकांश निर्माण कार्य और विकास कार्य बंद पड़े हैं. ऐसी स्थिति में दिहाड़ी श्रमिकों से लेकर कारीगर तक रोजगार की उम्मीद में एक बार फिर शहरों की तरफ लौटने को मजबूर हैं.