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Supreme Court: खासगी ट्रस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, खासगी ट्रस्ट को मिलेंगी फिर सभी संपत्ती - Khasgi Trust petition

खासगी ट्रस्ट की संपत्ती को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. खासगी ट्रस्ट की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित रखा और ट्रस्ट की संपत्ति ट्रस्ट की रहेगी इसको लेकर एक आदेश जारी कर दिया है.

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Published : Jul 22, 2022, 9:39 PM IST

इंदौर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ इंदौर हाईकोर्ट में हरिद्वार के रहने वाले शिकायतकर्ता विजय पाल सिंह ने खासगी ट्रस्ट में हो रही अनियमितताओं को लेकर एक याचिका दायर की थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए इंदौर हाईकोर्ट ने ट्रस्ट की संपत्ति के देखरेख का जिम्मा मध्यप्रदेश सरकार को बनाया था. इंदौर हाईकोर्ट को चुनौती देते हुए इस मामले को लेकर खासगी ट्रस्ट सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. दायर याचिका की पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित रखते हुए ट्रस्ट की संपत्ति ट्रस्ट की रहेगी इसका आदेश जारी कर दिया है.

संपत्तियों की जांच के लिए जांच दल गठित: ट्रस्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. तीन जजों की बैंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. जो गुरुवार को जारी हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रस्ट की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकारते हुए माना कि ये संपत्तियां न सरकार की हैं न होलकर परिवार की. ये संपत्तियां खासगी ट्रस्ट की हैं, लेकिन इन्हें शासन की अनुमति के बगैर बेचा नहीं जा सकेगा. कोर्ट ने संपत्तियों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) को शून्य घोषित करते हुए कहा है कि, रजिस्ट्रार इस संबंध में जांच करेंगे. कानून विशेषज्ञों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद शासन को ट्रस्ट की उन सभी संपत्तियों को जिन्हें उसने 5 अक्टूबर 2020 के बाद आधिपत्य में लिया है ट्रस्ट को लौटाना होगा. इसमें महेश्वर किला सहित देशभर में फैली ट्रस्ट की संपत्तियां शामिल हैं.

निर्णय के प्रमुख बिंदु

- खासगी ट्रस्ट को पब्लिक ट्रस्ट की तरह कार्य करना होगा.

- इस ट्रस्ट पर मध्यप्रदेश लोक न्यास अधिनियम 1951 के सभी उपबन्धक लागू होंगे.

- खासगी ट्रस्ट को एक माह के अंदर पंजीयन हेतु आवेदन प्रस्तुत करना होगा.

- रजिस्ट्रार लोक न्यास की अनुमति के बिना संपत्ति के संबंध में कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं

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ट्रस्ट कराए नए सिरे से पंजीयन:सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 27 जून 1962 को ट्रस्ट बना था. 50 साल से अधिक समय हो गया है. ऐसे में 5 नवंबर 2012 को कलेक्टर ने पत्र लिखकर संपत्तियों को सरकारी घोषित कर दिया जो पूरी तरह गलत है. इस पत्र को भी निरस्त किया जाता है. 6 संपत्तियों को बेचे जाने के मामले में हाईकोर्ट ने ईओडब्ल्यू को जांच करने के आदेश दिए थे. यह भी पूरी तरह गलत है. ट्रस्ट के खातों में पैसा जमा है या नहीं? इसकी जांच प्रशासन कर सकता है. ईओडब्ल्यू जांच को भी खत्म किया जाता है. ट्रस्ट को यह आदेश दिए जाते हैं कि वह एक महीने के भीतर रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट के यहां नए सिरे से पंजीयन करवाए.

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