इंदौर।मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 में होने वाले हैं, लेकिन इससे पहले प्रदेश के आदिवासी मतदाता राजनीतिक दलों के चुनावी रणनीति का केंद्र बन गये हैं. यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जहां आदिवासी वर्ग की सुध ली है, वहीं कांग्रेस की और से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी आदिवासी वोट बैंक के जरिए ही 2023 में सत्ता में वापसी के लिए मोर्चा संभाल चुके हैं. कमलनाथ ने इसका आगाज मंगलावर को विश्व आदिवासी दिवस पर टंट्या मामा की जन्मस्थली पातालपानी से कर दिया है.
आदिवासी वोटों से कांग्रेस ने 2018 में वापसी की थी:आजादी के बाद से ही लगातार आदिवासी वोट बैंक कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है इसी वोट बैंक के जरिए राज्य में कांग्रेस ने 2018 में सत्ता में वापसी की थी. इसके अलावा आदिवासी वोट बैंक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मध्य प्रदेश में 84 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जो आदिवासी बहुल हैं. 2018 के चुनाव में भाजपा इनमें से मात्र 34 सीट ही जीत पाई थी. इसमें भी महत्वपूर्ण यह है कि जिन सीटों पर आदिवासी हार और जीत तय करते हैं उनमें सिर्फ भाजपा 16 सीटें ही जीत पाई थी.
आदिवासी वोटों के लिए भाजपा भी लगा रही है जोर:अब जबकि, 2023 में फिर से विधानसभा चुनाव हैं, तो भाजपा 2018 की तरह बहुमत से दूर नहीं रहना चाहती. यही वजह है कि भाजपा ने पूरे जनजाति समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए टंट्या भील के जरिए आदिवासी वोट बैंक पर फोकस किया है. हाल ही में राजधानी भोपाल में आदिवासियों के सम्मेलन में गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसी लाइन पर विधानसभा चुनाव में आगे बढ़ने के संकेत दिए थे जिसके तहत शिवराज सरकार ने आदिवासी क्रांतिकारी टंट्या भील के बलिदान दिवस पर पातालपानी महू में बड़ा आयोजन करने के बाद से ही सक्रिय है.