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Jyesth purnima 2022: ज्येष्ठ पूर्णिमा पर करें भगवान विष्णु और वट वृक्ष की आराधना, पूर्ण होंगी मनोकामना जानें शुभ मुहूर्त, महत्व - ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि मुहूर्त

वर्ष के प्रत्येक महीने में पूर्णिमा और अमावस्या पड़ती है. धर्म ग्रंथों अनुसार, पूर्णिमा (Jyesth purnima 2022) का अपना महत्व है. इन तिथियों पर महापुरुषों धर्मगुरूओं और देवताओं का प्रादुर्भाव हुआ था. इस वजह से इसका और भी महत्व बढ़ जाता है. पूर्णिमा के दिन पूजा, जप, तप और दान का उल्लेख निहित है. इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. वट सावत्री की तरह ही कुछ जगहों पर वट पूर्णिमा (Jyesth purnima june 2022) का पर्व मनाया जाता है.

jyesth purnima june 2022
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2022

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Published : Jun 13, 2022, 10:53 PM IST

Updated : Jun 14, 2022, 4:17 PM IST

ईटीवी भारत डेस्क :वर्ष के प्रत्येक महीने में पूर्णिमा और अमावस्या (Jyesth purnima 2022) पड़ती है. धर्म ग्रंथों अनुसार, दोनों का अपना महत्व है. ज्येष्ठ मास को धर्म-कर्म की दृष्टि से विशेष माना गया है. पंचांग के अनुसार 14 जून 2022 गुरुवार को ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है. इसी तिथि को ज्येष्ठ पूर्णिमा कहा जाता है. ज्येष्ठ पूर्णिमा के व्रत को बेहद पवित्र माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है.

वर्ष के प्रत्येक महीने में पूर्णिमा और अमावस्या पड़ती है. धर्म ग्रंथों अनुसार, दोनों का अपना महत्व है. ज्येष्ठ मास को धर्म-कर्म की दृष्टि से विशेष माना गया है. पंचांग के अनुसार 14 जून 2022 गुरुवार को ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है. इसी तिथि को ज्येष्ठ पूर्णिमा साथ ही वट पूर्णिमा भी कहा जाता है. ज्येष्ठ पूर्णिमा के व्रत को बेहद पवित्र माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. वट सावत्री की तरह ही कुछ जगहों पर वट पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. यहां भी सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए ये व्रत रखती हैं.

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ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक इस बार ज्येष्ठ वट पूर्णिमा 13 जून सोमवार को रात्रि 9 बजे से पूर्णिमा लग रही है, जो अगले दिन 14 जून शाम 5 बजकर 20 मिनट तक रहेगी. पूजा करने का शुभ मुहूर्त सूर्योदय से लेकर शाम 5 बजे तक है. उन्होंने बताया कि इस दिन सुहागिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके सोलह श्रंगार करके बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. पूजा के दौरान वट वृक्ष में जल अर्पित करना, कलावा, सिंदूर मिठाई व अन्य पूजा सामग्री चढ़ाई जाती है.

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जेठ पूर्णिमा या जेठ पूर्णमासी का विशेष महत्व है. इस दिन पवित्र नदी या जलकुंड में स्नान, व्रत एवं दान-पुण्य के काम करने की मान्यता है. इस दिन स्नान, व्रत एव दान-पुण्य के कार्य करने से जातकों को शुभ फल प्राप्त होते हैं. यह तिथि ज्येष्ठ माह की अंतिम तिथि होती है. इसके बाद आषाढ़ माह प्रारंभ हो जाता है. मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन प्रातः काल पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. यदि नदियों तक जाना सम्भव न हो, तो घर पर ही नहाने के जल में गंगाजल मिलाकर भी स्नान किया जा सकता है.

व्रत रखने का है विधान : धर्मशास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा के व्रत का स्थान सात विशेष पूर्णिमाओं में आता है. इस दिन विधिपूर्वक भगवान विष्णु का व्रत एवं पूजन करने तथा रात्रि में चंद्रमा को दूध और शहद मिलाकर अर्घ्य देने से सभी रोग एवं कष्ट दूर हो जाते हैं मनोकामनाऐं पूरी होती हैं. इस दिन प्रातः काल स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का पूजन करें तथा यदि संभव हो तो संकल्प लेकर दिन भर फलाहार करते हुए व्रत रखने का विधान है. इस दिन वट पूर्णिमा के व्रत का भी विधान है.

कबीर दास की मनाई जाती है जयंती : 14 जून को कबीर जयंती भी है. कबीर दास के जन्म के संदर्भ में निश्चत रूप से कुछ कहना संभव नहीं है. मान्यता के अनुसार ज्येष्ठ मास पूर्णिमा को कबीर जंयती के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष यह तिथि 14 जून दिन मंगलवार को पड़ रही है. मान्यता के अनुसार के संत कबीर ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन काशी में लहरतारा तलाब के कमल पुष्प पर अपने पालक माता-पिता नीरू और नीमा को मिले थे. तब से इस दिन को कबीर जयंती के रूप में मनाया जाता है. कबीर दास ने अपने दोहों और विचारों और से मध्यकालीन भारत के सामाजिक और धार्मिक, आध्यात्मिक जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया था.

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Last Updated : Jun 14, 2022, 4:17 PM IST

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