इंदौर। गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ के बाद भारत-चीन संबंधों में बने तनावपूर्ण हालातों के मद्देनजर चीन ने भारत के फार्मा सेक्टर को जोर का झटका दिया है, चीन ने भारत को निर्यात करने वाली दवाओं के कच्चे माल का दाम 20 से 30% तक बढ़ा दिया है. चीनी फार्मा कंपनियों के फैसले के बाद भारत में अब कई दवाएं न केवल महंगी होंगी, बल्कि बाजार में उनकी कमी भी होने का अनुमान है. भारत सरकार ने इस फैसले के मद्देनजर तीन बल्क ड्रग पार्क बनाने की घोषणा की है, साथ ही फार्मा सेक्टर के लिए राहत पैकेज देने पर सहमति भी जताई है.
इंदौर, पीथमपुर, उज्जैन और ग्वालियर में 300 से ज्यादा दवा कंपनियां हैं, जिन का टर्नओवर करीब 5 हजार करोड़ सालाना है. इनमें से अधिकांश कंपनियां कई जीवन रक्षक दवाएं बनाने के लिए कच्चा माल चीनी कंपनियों से खरीदती हैं. जिससे विभिन्न दवा कंपनियों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से काम करने वाले करीब 25 हजार से ज्यादा लोग दवाओं का उत्पादन करते हैं और प्रदेश में तैयार की गई दवाएं अफ्रीका, लीबिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, जापान, रसिया सहित एशिया महाद्वीप के विभिन्न देशों में निर्यात की जाती है.
कोरोना काल में दुनिया भर में की सप्लाई
प्रदेश का फार्मा सेक्टर देश के दवा निर्माण में कितना महत्व रखता है, इसका उदाहरण कोरोना काल में देखने को मिला, जब इंदौर, पीथमपुरा और रतलाम से तैयार की गई हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा कई देशों में भेजी गई. जिसका उपयोग कोरोना संक्रमण से बचने के लिए कई देशों में प्रयोग किया जा रहा है. अमेरिका सरकार ने इस दवा की मांग की थी तो यहीं से भारत सरकार ने दवा तैयार कर अमेरिका भिजवाया था.