ग्वालियर। 18 जून को वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की 164 वां बलिदान दिवस है. (Veerangana Rani Laxmibai 164th death Anniversary) इस मौके पर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के उस युद्ध को याद करना बेहद जरूरी है जिसमें अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हो गई थीं. ग्वालियर स्थित संत गंगा दास की कुटिया पर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की समाधि आज भी बनी हुई है. यहीं पर रानी लक्ष्मीबाई ने अपने प्राण त्याग दिए थे.
दत्तक पुत्र को लिया गोद: वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को उत्तर प्रदेश में हुआ था. बचपन से मनु और मणिकर्णिका के नाम से बुलाई जाने वाली वीरांगना साहसी और निडर स्वभाव की थी. मनु का विवाह झांसी के महाराजा राजा गंगाधर राव से हुआ. विवाह के बाद वे रानी लक्ष्मीबाई के नाम से पहचानी जाने लगीं. इसके बाद 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन 4 महीने की उम्र में उसकी मृत्यु हो गई. 1818 में उन्होंने एक दत्तक पुत्र को गोद ले लिया इनका नाम दामोदर राव रखा गया. इसके कुछ ही दिनों बाद झांसी के राजा का निधन हो गया.
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रानी लक्ष्मीबाई के खिलाफ बगावत: राजा के निधन के बाद अंग्रेजों ने झांसी को अपने साम्राज्य में मिलाने की साजिश रची. अपनी हड़प नीति के तहत इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया. अंग्रेजों ने दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया. इसके बाद अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई के खिलाफ बगावत शुरू कर दी. इस दौरान रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया. 18 जून 1818 को जब झांसी की रानी ने दतिया को जीत लिया और ग्वालियर आकर यहां के राजा सिंधिया से मदद मांगी, लेकिन वहां से वे खाली हाथ लौटी. तभी अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया. इस दौरान अंग्रेज सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया.