ग्वालियर।बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को यादकर आज भी नसों में खून खौल जाता है, भुजाएं फड़क उठती हैं और स्वर ओज से भर जाता है. उन्होंने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने साम्राज्य और देश की रक्षा में अपना प्राण न्यौछावर कर दिया था. 18 जून के दिन ही 1858 को ग्वालियर में गंगा दास की कुटिया में रानी लक्ष्मीबाई ने अंतिम सांस ली थी. आज हम आपको बताते हैं कि, शहीद होने के बाद भी उन्हें अंग्रेज क्यों नहीं छू पाए और उन्होंने बाबा गंगा दास से अपनी कौन से अंतिम इच्छा जाहिर की थी.
झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई की वीर गाथा 18 जून के दिन स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज है. 18 जून 1858 को जब झांसी की रानी दतिया और ग्वालियर फतह करते-करते सिंधिया किले पर मदद के लिए पहुंची और वहां से खाली हाथ लौटने लगी, तभी अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया. अपनी तलवार से गोरों की गर्दन कलम करते हुए उन्होंने घोड़े को किले से नीचे उतार दिया, उसी समय एक अंग्रेज सैनिक ने उनपर भाले से हमला कर दिया, जिससे वो बुरी तरह घायल हो गईं और उनका घोड़ा भी घायल हो गया, सारा माजरा जब गंगादास की कुटिया में रहने वाले साधुओं को पता लगा, तो वे उनको उठा कर कुटिया ले गए.