ग्वालियर। प्रशासनिक अधिकारी 'न्यायालय' शब्द का प्रयोग करने को लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने कहा है कि कलेक्टर एसडीएम, तहसीलदार,नायब तहसीलदार सहित संभागीय आयुक्त द्वारा सुनवाई के लिए डाइस इस्तेमाल नहीं की जाती है. कक्षों के बाहर न्यायालय शब्द का प्रयोग करने और गाड़ियों पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट लिखने पर ग्वालियर खंडपीठ में एक जनहित याचिका दायर की गई थी. जिसपर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इस तरह के शब्द इस्तेमाल करने पर तमाम प्रशासनिक अधिकारियों को नोटिस जारी किया है. मामले में अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी.
केवल जज ही कर सकते हैं 'न्यायालय' शब्द का इस्तेमाल
याचिकाकर्ता उमेश बोहरे ने इस मामले में एक जनहित याचिका दाखिल करते हुए न्यायालय और कार्यपालिक मजिस्ट्रेट शब्द का प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस्तेमाल करने को गलत बताया था. उनका कहना था कि डायस का इस्तेमाल केवल जज ही कर सकते हैं प्रशासनिक अधिकारी नहीं, अगर उन्हें आम लोगों के केसों की सुनवाई करनी है तो वह कुर्सी लगाकर कर सकते हैं, लेकिन डायस का इस्तेमाल नहीं कर सकते. इसके साथ ही प्रशासनिक अधिकारी कार्यपालिक मजिस्ट्रेट भी नहीं लिख सकते हैं.याचिका की सुनवाई के बाद ग्वालियर खंडपीठ ने मुख्य सचिव, मुख्य सचिव राजस्व, प्रमुख सचिव परिवहन विभाग, ट्रांसपोर्ट कमिश्नर और अन्य अधिकारियों को नोटिस दिया है साथ ही 4 हफ्ते में जवाब मांगा है.
हत्या के दोषी 5 लोग 13 साल बाद दोष मुक्त
2008 में दतिया जिले के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में हुई एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में दोषी करार दिए गए 5 लोगों को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है. इसके साथ ही उनपर लगाया गया जुर्माना भी लौटाने के आदेश कोर्ट ने दिए हैं. इस पूरे मामले में कोर्ट ने पुलिस की कहानी को बेहद संदिग्ध और गवाहों के बयानों को भी विरोधाभासी बताते हुए कहा है मामला संदेह पैदा करता है. इन 5 लोगों को दतिया सेशन कोर्ट ने दोषी ठहराया था. जिन्हें हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने तुरंत रिहा करने के आदेश दिए हैं. आपको बता दें कि 6 दिसंबर 2008 को दतिया सिविल लाइन थाना क्षेत्र के जखौरिया गांव में रहने वाले हरगोविंद यादव की लाश गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर कठवा की पुलिया के नजदीक मिली थी. मृतक के परिवार ने आरोप लगाया कि वीर सिंह और उसके परिवार के लोग बिहारी लाल बाली उर्फ बालकिशन आदि उसे मारपीट के मामले में समझौते के लिए 6 दिसंबर 2008 को दिन में 11बजे घर से बुलाकर ले गए थे. उसके बाद हरगोविन्द की लाश अगले दिन पुलिया के नीचे मिली.