ग्वालियर। कोरोना से जंग केलिए लगा लॉकडाउन खत्म होकर अनलॉक की ओर बढ़ चला है, लगभग सभी प्रवासी मजदूर अपने घरों तक लौट चुके हैं, लेकिन प्रवासी मजदूरों की समस्याएं खत्म नहीं हुई हैं. प्रशासन लाख दावे करे कि उसने मजदूरों के लिए राशन और काम धंधे की व्यवस्था कर दी है, लेकिन हकीकत इससे जुदा है. आज भी कई प्रवासी मजदूर हैं, जो काम धंधे के लिए इधर-उधर भटकते देखे जा सकते हैं.
ग्वालियर में प्रशासन के दावों की खुली पोल, प्रवासी मजदूरों के सामने भूखों मरने की नौबत - ुैोतगदी
ग्वालियर में मजदूरों की समस्याएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. यहां लौटे प्रवासी मजदूरों के सामने भूखों मरने की नौबत आ चुकी है, जबकि प्रशासन उन्हें रोजगार देने का दावा करते नहीं थक रहा है. पढ़िए पूरी खबर...
ग्वालियर के गदाईपुरा में रहने वाले आसनारायण यादव और राजेंद्र ने बताया कि वे नोएडा और गुजरात में रह कर में मजदूरी करते थे, लेकिन अचानक कोरोना का कहर आया और लॉकडाउन लग गया, उस दौर में वे किसी तरह घर आ गए. इधर गुजरात और दिल्ली में कोरोना का कहर बढ़ता चला गया. आवागमन के साधन बंद होने से वे ना तो अपने काम पर लौट सके और ना ही उन्हें पुराना मालिक रखने के लिए तैयार है. ऐसे में परिवार की जीविका पर संकट आ गया है.
मजदूरों के पास तमाम दावों के बावजूद ना तो राशन पहुंचा है और ना ही उनका मनरेगा व दूसरी मजदूरी योजनाओं में कहीं रजिस्ट्रेशन हो पाया है. उनके सामने भूखों मरने की नौबत आ रही है, लेकिन प्रशासन का दावा है कि ग्वालियर में अभी तक 9 हजार प्रवासी मजदूर आए हैं, इनमें से 11 सौ को मनरेगा में काम दिया गया है. वहीं कुछ लोगों को निजी संस्थाओं में नौकरी दिलाई गई है और प्रशासन इसकी मानिटरिंग भी कर रहा है.