छिंदवाड़ा। संसार में अपनी अलग छाप छोड़ने वाले गोटमार मेले में मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा तहसील में 27 अगस्त को जमकर पत्थर चलेंगे. यहां परम्परा के नाम पर खूब खून-खराबा भी होगा. सबसे बड़ी बात ये हैं कि इस पूरे कार्यक्रम का आयोजन खुद प्रशासन करवाएगा. पिछले कई वर्षों में पत्थरबाजी के इस खेल में 13 लोगों की जान जा चुकी है, बावजूद इसके पांढुर्णा के लोग इस जुनून को छोड़ने को तैयार नहीं हैं. प्रशासन ने इस खेल को बंद कराने का लाख जतन किया, लेकिन प्रशासन के सारे प्रयासों पर साल दर साल पानी फिरता गया. पांढुर्णा के लोग पत्थर बाजी के इस खेल को गोटमार कहते हैं. गोटमार में पुलिस और प्रशासन के सामने लोग एक-दूसरे को पत्थर मारकर घायल करते हैं. अब देखना है कि इस बार गोटमारी में कितने लोग घायल होते हैं. कलेक्टर सौरभ कुमार सुमन ने बताया कि गोटमार के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर लिए गए हैं. सुरक्षा में तैनात किए जाने वाले वॉलिंटियरों को इस बार हेलमेट दिया जाएगा.
युवक युवती के प्रेम के बाद शुरू हुई परंपरा:हर वर्ष पोला पर्व के एक दिन बाद जिले के पांढुर्णा और सावरगांव के बीच जाम नदी के किनारे एक मेला लगता है. जिसे लोग गोटमार मेले के नाम से जानते हैं. इस मेले में लोग एक-दूसरे को पत्थर मारते हैं और खून बहाते हैं. प्रशासन ने इस खून खराबे को रोकने की खूब कोशिश की, लेकिन लगभग 145 वर्ष पहले की यह परंपरा आज भी नहीं बदली. गोटमार की यह परंपरा एक प्रेम कहानी से जुड़ी है. इसी प्रेम कहानी से आज गोटमार परम्परा बन गई है. इस परंपरा से जुड़ी एक किवदंती है. कहते हैं कि यह दो गांव की दुश्मनी और प्रेम करने वाले युगल की याद में शुरू हुई. सावरगांव की लड़की थी और पांढुर्णा का लड़का,जो एक-दूसरे को प्रेम करते थे. एक दिन लड़का-लड़की को लेकर भाग रहा था और जाम नदी को पार करते समय लड़की पक्ष के लोगों ने देख लिया. फिर पत्थर मारकर रोकने की कोशिश की. यह बात लड़का पक्ष को पता चली तो वह उन्हें बचाने के लिए लड़की वालों पर पत्थर बाजी करने लगे. हालांकि, प्रेमी प्रेमिका कौन थे आज तक किसी को पता नहीं. तबसे लेकर आज तक यह परम्परा चली आ रही है.