भोपाल। संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है, कानून के सामने सभी समान है चाहें वो पुरुष हो या महिला. सरकार कानून के तहत सभी को बराबरी संरक्षण प्रदान करेगी, तो फर्क कहां हुआ. क्यों हुआ और महिला पुरुष के अंतर को पाटने की कोशिशें किस किस ढंग से हुई. क्या पुरुषों की तरह सिगरेट के छल्ले उड़ा देने से महिला पुरुष में समानता आएगी या महिलाओं ने पुरुषों को बहुत पीछे छोड़ दिया के प्रतिमान गढ़ते रहने से बराबरी की नई प्रस्तावना लिखी जाएगी. समानता खैरात में मिलेगी या लड़कर छीनी जाएगी. तो अपने ढंग से अपने हक का आसमान और जमीन पा लेने वाली गुमनाम नायिका सीता से मिलिए. समानता दिवस पर गांव से निकली सीता की मिसाल इसलिए कि बराबरी के लिए समाज को करवट तो इन्ही गांवों से लेनी है. दसवीं पढ़ने के बाद सैल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ी सीता गुर्जर आजीविका मिशन में मास्टर ट्रेनर बन चुकी है. जो देश भर में महिलाओँ को आजीविका की राह दिखाने के साथ आत्मनिर्भर होने का पाठ पढ़ाती है. (Womens Equality Day 2022)
बदल रही हैं अपने हाथों की लकीर और तस्वीर:जो अपनें हाथों अपनी तकदीर ही नहीं पूरे समाज की तस्वीर बदल रही हैं. वो अपनी ही लकीर बढ़ाती है. समानता के पैमानों पर खुद को आंकती हैं. और गैर बराबरी के दायरों से निकलकर ये बताती हैं कि मेरे हिस्से की ज़मीन और आसमान लेना जानती हूं मैं . बिना किसी दंगल में उतरे. मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले की सीता गुर्जर उन्ही में से है. जिन गांवों में आर्थिक सामाजिक सारे फैसले पुरुषों की मुट्ठी में कैद हैं. वहां बैंक सखी बनकर सीता सरकार और समाज की एक अहम बनकर खड़ी है. ये तय पैमाना बदलते हुए कि गांव में महिला के हाथ रसोई में काम करने के लिए होते हैं केवल. सीता ने स्वसहायता समूह की 110 बैंक सखियों के साथ मिलकर अब तक करीब 6 करोड़ सत्तर लाख रुपए से भी ज्यादा की राहत राशि गरीबों तक पहुंचाई . जो सरकार की तरफ से उन्हें भेजी जाती है. पांच से दस गांव हर दिन का कार्यक्षेत्र है सीता का. इतना ही नहीं कोरोना के मुश्किल वक्त में जब सब घरो में कैद थे. गांव गांव तक एक लाख से ज्यादा मास्क बनवाकर उन्हें बांटने की जिम्मेदारी भी सीता ने निभाई. पुरुष हो या स्त्री सीता की फिक्र में तो कोई फर्क नहीं था. (Bhopal Master Trainer Sita Teaching women)
पुरुषों का था पर काम महिलाएं संभाले हैं मैदान:सीता जब गांव में पहुंचकर अपने किसी किसान भाई का पंजीयन करवाती हैं. या किसी बुजुर्ग की पेंशन पहुंचाती हैं तब फिर उस लकीर को लांघ जाती हैं जो समाज को स्त्री पुरुष में बांटती है. जल जीवन मिशन में जब गांव गांव और घर घर पहुंचा नल तो तो पानी का बिल भी जुटाने की जिम्मेदारी सीता और उनके जैसी महिलाओँ के हिस्से आई. तो सवाल उठे कि महिलाएँ कैसे कर पाएंगी. लेकिन सीता और उसके साथ सैल्फ हैल्प ग्रुप की महिलाओँ ने वो काम भी कर दिखाया. पानी का बिल जुटाने से लेकर पानीकी बर्बादी पर अर्थ दंड वसूलने तक पूरा जिम्मा इन्ही का है. (Tricks of Economic Self Reliance)