भोपाल। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को किसान संगठनों से नए कृषि कानून को लेकर जारी विरोध-प्रदर्शन को खत्म करने की एक बार फिर से अपील की है. केंद्रीय मंत्री भोपाल के दौरे पर हैं.
किसान संगठनों से हुई 11 दौर की बातचीत
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार किसान संगठनों से 11 दौर की बातचीत कर चुकी है और वह आगे भी किसानों से बातचीत करने को तैयार है. उन्होंने कहा कि एमएसपी लागू होने से किसानों को फायदा होगा. किसान यूनियन को यदि कानून के किसी प्रावधान पर आपत्ति है, तो केंद्र सरकार उन्हें सुनने के लिए तैयार है. उन्होंने किसान यूनियनों से आंदोलन खत्म करने की अपील की है.
मिशन यूपी की तैयारी कर रहा संयुक्त किसान मोर्चा
बता दें कि शुक्रवार को ही संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य शिव कुमार कक्का ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने इस कानून के विरोध में पूरे देश में राष्ट्रपति के नाम जिला मुख्यालय और तहसील स्तर तक ज्ञापन सौंपने की बात कही. उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में भी किसान आंदोलन को गति दी जाएगी. सरकार को सबक सिखाने मिशन यूपी शुरू करेंगे, फिर दिल्ली चलो अभियान को लेकर लगातार किसान संगठन किसानों को जागरूक करेगा.
किसान आंदोलन के मद्देनज़र सुरक्षा कड़ी
किसान आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर अपनी मांगों के समर्थन में किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल शनिवार को उप-राज्यपाल को ज्ञापन सौंपेगा. ज्ञापन सौंपने के लिए किसानों का जत्था दिल्ली के अलग अलग हिस्सों से पहुंचेगा. किसान आंदोलन के मद्देनजर दिल्ली पुलिस ने काफी संख्या में फोर्स की तैनाती की हुई है. इस दौरान लोगों की भीड़ और सुरक्षा के लिहाज से दिल्ली मेट्रो के तीन स्टेशन सुबह दस बजे से दोपहर दो बजे तक बंद रहेंगे।
किसान आंदोलन : कब क्या-क्या हुआ?
20 और 22 सितंबर, 2020 को संसद ने कृषि संबंधी तीन विधेयकों को पारित किया. 27 सितंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इन विधेयकों को मंजूरी दे दी, जिसके बाद ये तीनों क़ानून बन गए. इन क़ानूनों के प्रवाधानों के विरोध में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. इन क़ानूनों के ज़रिए मौजूदा एपीएमसी (Agriculture Produce Market Committee) की मंडियों के साथ साथ निजी कंपनियों को भी किसानों के साथ अनुबंधीय खेती, खाद्यान्नों की ख़रीद और भंडारण के अलावा बिक्री करने का अधिकार होगा.
किसानों की आशंकाएं क्या हैं?
विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों को इस बात की आशंका है कि सरकार किसानों से गेहूं और धान जैसी फसलों की ख़रीद को कम करते हुए बंद कर सकती है और उन्हें पूरी तरह से बाज़ार के भरोसे रहना होगा. किसानों को इस बात की आशंका भी है कि इससे निजी कंपनियों को फ़ायदा होगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य के ख़त्म होने से किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी.