भोपाल: साल 2020 मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान और विष्णु दत्त शर्मा की जोड़ी के नाम रहा. इस दौरान दोनों नेताओं ने 15 माह की कमलनाथ सरकार को सत्ता से धकेल सत्ता में वापसी की और कोरोना काल में हुए 28 सीटों के उपचुनाव में भी पार्टी को विजय दिलाई, इस दौरान बीजेपी संगठन स्तर पर विष्णु दत्त शर्मा ने और सरकार के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सरकार को बखूबी चलाया.
शिव-विष्णु की जोड़ी ने की सत्ता में वापसी
विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी की 15 महीने की सरकार की विदाई कर कमलनाथ के हाथ में प्रदेश की सत्ता सौंपी, इस दौरान शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष ने कमलनाथ सरकार के खिलाफ हर मोर्चे पर डटकर सामना किया. प्रदेश में अपहरण के मामले हो, दुष्कर्म के मामले या ओलावृष्टि से खराब हुई किसानों की फसलों को लेकर दोनों नेताओं ने सड़क से लेकर सदन तक की लड़ाई लड़ी और 15 माह में ही कमलनाथ को सत्ता से बेदखल कर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता की कुर्सी संभाली. सत्ता परिवर्तन के दौरान भी दोनों नेताओं के आपसी तालमेल से बीजेपी का मिशन लोटस सफल रहा, जहां एक तरफ शिवराज ने प्रदेश से लेकर केंद्रीय नेताओं के बीच समन्वय बनाया तो वहीं दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में संगठन स्तर पर विष्णु दत्त शर्मा ने मोर्चा संभाला.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (सौ.- सोशल मीडिया) सत्ता में आने के बाद अपनों की नाराजगी
15 माह ही विपक्ष की भूमिका निभाने के बाद सत्ता में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी को अपनों की नाराजगी भी जमकर झेलनी पड़ी. दरअसल, सिंधिया समर्थकों के कारण बीजेपी सत्ता में आई थी और ऐसे में सत्ता में भागीदारी भी सिंधिया समर्थकों की रही. जिसके कारण पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जा सका. जिनमें शिवराज के खास माने जाने वाले रामपाल सिंह, संजय पाठक, अजय विश्नोई राजेंद्र शुक्ला के अलावा गौरीशंकर बिसेन और अन्य नेता पार्टी से खफा नजर आए और उन नेताओं में भी नाराजगी नजर आई, जो सिंधिया समर्थकों से 2018 के विधानसभा चुनाव में हारे थे, जिनमें खासतौर से ग्वालियर चंबल के नेता शामिल थे, और उपचुनाव भी सबसे ज्यादा इन्हीं सीटों पर होना था इस क्षेत्र में 16 सीटों पर चुनाव होने थे.
बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा (सौ.- सोशल मीडिया) उपचुनाव रहा एक बड़ी चुनौती
सत्ता में वापसी करने के बाद भारतीय जनता पार्टी के सामने उपचुनाव एक बड़ी चुनौती था. क्योंकि जिन 28 सीटों पर चुनाव होना था उन सीटों पर 2018 के विधानसभा चुनाव के समय जो उम्मीदवार थे, उनमें नाराजगी थी. ऐसे में कहीं ना कहीं पार्टी को उनकी नाराजगी दूर कर उन्हें पार्टी के उम्मीदवारों के लिए काम करने के लिए तैयार करना भी एक बड़ी चुनौती था. क्योंकि इस दौरान कांग्रेस बिकाऊ और गद्दार का नारा देते हुए इन विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रचार कर रही थी और सिंधिया समर्थकों पर करो रुपए लेकर सरकार गिराने का आरोप लगाया था. ऐसे में कहीं ना कहीं बीजेपी को विकाउ और गद्दार जैसे नारों के बीच अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को पेश करना एक बड़ी चुनौती था . हालांकि सालों से संगठन में काम करते चले आ रहे हैं. वीडी शर्मा ने अपने कौशल से सभी नेताओं को साधा और संगठन के लिए काम करने के लिए सभी नेताओं ने अपनी पूरी ताकत लगा दी शायद यही वजह है कि उपचुनाव में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन कर 28 सीटें हासिल की और अपनी सरकार को बचाए रखा.
पार्टी कार्यालय में संगठन महामंत्री सुहास भगत, सीएम शिवराज और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा (सौ.- सोशल मीडिया) 2021 में रहेगी चुनौतियों
साल 2020 में सत्ता वापसी और उप चुनाव की जीत के बाद अब इन दोनों नेताओं के सामने नए साल में भी चुनौतियां कम नहीं हैं. साल 2021 में प्रदेश में निकाय चुनाव होंगे और इन निकाय चुनाव के बाद पंचायत स्तर के चुनाव कराए जाएंगे. फिलहाल सभी 16 निकाय बीजेपी के कब्जे में हैं. ऐसे में पार्टी को निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में भी सफल प्रदर्शन करना जरूरी रहेगा. क्योंकि निकाय चुनाव कि हार जीत के बाद उसका प्रभाव पंचायत स्तर के चुनाव पर पड़ता है, और पंचायत स्तर के चुनाव प्रदेश में आने वाले विधानसभा चुनाव की जमीन तैयार करते हैं. ऐसे में अब इन दोनों नेताओं को निकाय और पंचायत स्तर के चुनाव जीतना भी कोई कम चुनौती नहीं है.
प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान और विष्णु दत्त शर्मा ने एक सफल जोड़ी का उदाहरण पेश किया है, जहां शिवराज सिंह चौहान ने पिछले 13 साल के मुख्यमंत्री के कार्यकाल का अनुभव कोरोना काल में सरकार चलाकर अपने आपको साबित किया, वहीं दूसरी तरफ संगठन स्तर पर विष्णु दत्त शर्मा ने पार्टी को स्थाई रूप से चलाकर अपने विद्यार्थी परिषद से प्रदेश अध्यक्ष तक के सफर का अनुभव को संगठन चलाने में किया.