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नेहरु-गांधी परिवार के करीबी थे Shankaracharya Swaroopanand Saraswati, सोनिया गांधी ने किया था आश्रम का उद्घाटन - Who is Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी लंबी बीमारी के बाद रविवार को ब्रह्मलीन हो गए. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में उन्होंने अंतिम श्वांस ली. वह 99 साल की उम्र में मृत्युलोक छोड़कर गोलोकवासी हुए. सोमवार को लगभग शाम 4:00 बजे तक उन्हें समाधि दी जाएगी. नेहरु-गांधी परिवार को स्वामी स्वरूपानंद का काफी करीबी माना जाता था. राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी से लेकर राहुल और प्रियंका गांधी तक स्वामी स्वरूपानंद का आशीर्वाद ले चुके हैं. (Shankaracharya Swaroopanand Saraswati Death)

Swami was close to the Nehru Gandhi family
नेहरु गांधी परिवार के करीबी रहे स्वामी

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Published : Sep 11, 2022, 9:56 PM IST

Updated : Sep 11, 2022, 10:11 PM IST

भोपाल। द्वारिका एवं ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का 99 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. उन्होंने नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली, वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज जी को मणिदीप आश्रम से गंगा कुंड स्थल पालकी पे सवार कर भक्तों द्वारा ले जाया जा रहा है. जहां पर सभी भक्तजनों को दर्शन होंगे. भारी संख्या में यहां श्रद्धालु मौजूद हैं. सोमवार को लगभग शाम 4:00 बजे तक महाराज श्री जी को समाधि दी जाएगी. भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है. वीआईपी लोगों का आना शुरू हो गया है.

नेहरु गांधी परिवार के करीबी रहे स्वामी

नेहरु-गांधी परिवार के करीबी रहे स्वामी: शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को नेहरु-गांधी परिवार का काफी करीबी माना जाता था. राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी से लेकर राहुल और प्रियंका गांधी तक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का आशीर्वाद ले चुके हैं. मध्य प्रदेश के साथ ही देशभर के बड़े कांग्रेसी नेता शंकराचार्य स्वामी का आशिर्वाद समय-समय पर लेते रहते थे. अक्सर गांधी परिवार स्वामी स्वरूपानंद के दर्शन के लिए मध्य प्रदेश आता-जाता रहा है. जानकारी के मुताबिक शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के आश्रम का उद्घाटन सोनिया गांधी ने किया था.

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म: शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम धनपति उपाध्याय और मां नाम गिरिजा देवी था. माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं, इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज से वेद वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी.

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के चरणों में दिग्विजय सिंह

Narsinghpur मणिदीप आश्रम से शंकराचार्य को पालकी पर सवार कर भक्त ले गये गंगा कुंड स्थल, यहीं होंगे अंतिम दर्शन

आजादी की लड़ाई लड़कर जेल गए स्वामी: 1942 में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की उम्र मात्र 19 साल थी. उस वक्त पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का आंदोलन छिड़ा हुआ था. स्वामी स्वरूपानंद भी इसमें शामिल हुए और उन्होंने आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम शुरू की. स्वामी स्वरूपानंद क्रांतिकारी साधु के रुप में प्रसिद्ध हुए और उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम चलाने के लिए उन्हें पहले वाराणसी की जेल में नौ महीने और फिर मध्य प्रदेश की जेल में छह महीने रहना पड़ा. इस दौरान वह करपात्री महाराज के राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी रहे.

शंकराचार्य सरस्वती से आशिर्वाद लेते हुए सोनिया गांधी

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को मिली शंकराचार्य की उपाधि: 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए. इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी. वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे. 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाये गए और 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दंड से संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे. 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली.

मध्य प्रदेश में जन्म, काशी में ली थी वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा: शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता धनपति उपाध्याय और मां गिरिजा देवी के यहां हुआ. माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं, इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी.

Last Updated : Sep 11, 2022, 10:11 PM IST

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