ग्वालियर।मध्य प्रदेश में चुनावी माहौल गर्मा चुका है. कुछ ही समय में पंचायत निकाय और विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. इस चुनावी माहौल के बीच कई ऐसे दिग्गज नेता हैं जिनके राजनीतिक कैरियर मेंं कई बदलाव देखने को मिलेंगे.कई नेताओं का राजनीतिक कैरियर थम जाएगा तो कई के राजनीतिक सितारे बुलंद हो जाएंगे, लेकिन देश का एक ऐसा राजशाही परिवार जिसके रसूख पर हार जीत का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर का सिंधिया परिवार एक ऐसा ही परिवार है जिसका कोई भी सदस्य राजनीति में हारा वही सियासत की सीढ़ियां चढ़ता चला गया. मतलब इस परिवार के सदस्यों ने हार से कभी हार नहीं मानी और बाजी पलट दी.
देश की राजनीति में पावरफुल है सिंधिया परिवार बाजी हारे पर हौसला नहीं:प्रदेश से लेकर देश की राजनीति में सिंधिया परिवार के सदस्यों की एक अलग ही पहचान है. हमेशा से इस परिवार के सदस्यों का प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में खासा दखल और वर्चस्व रहा है,लेकिन सिंधिया परिवार के सदस्यों ने हार का डर भी करीब से देखा है. कई सदस्य सियासत में बाजी हारे हैं, लेकिन उन्होंने अपने हौसले को कभी भी नहीं हारने दिया नहीं दिया. राजशाही परिवार के सदस्य चुनाव हारे ,लेकिन उन्होंने इस चुनावी हार से कभी हार नहीं मानी, बल्कि वे लगातार राजनीति में आगे बढ़ते चले गए.
- राजमाता विजय राजे सिंधिया. जनसंघ की संस्थापक सदस्य रहीं और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में उनका नाम शामिल है.यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी आज भी राजमाता विजय राजे सिंधिया के आदर्शों का अनुसरण करती याद आ रही है. राजनीति में शुरुआत करने के बाद राजमाता विजय राजे सिंधिया ने सन 1972 में दतिया भिंड संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के दिग्गज नेता नरसिंह राव दीक्षित को बुरी तरह हराया. इस जीत के बाद राजमाता विजय राजे सिंधिया का कद लगातार बढ़ता गया. इसके बाद 1980 में पार्टी ने राजमाता विजय राजे सिंधिया को उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के खिलाफ उतारा,लेकिन इस चुनाव में राजमाता विजय राजे सिंधिया बुरी तरह हार गईं, लेकिन राजमाता विजय राजे सिंधिया ने इस हार से हार नहीं मानी बल्कि वह अपनी इस हार के बाद राजनीतिक सफर में तेजी से आगे बढ़ती चली गईं. बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनी उसके बाद राज्यसभा सदस्य और वह आगे जाकर बीजेपी की निर्णायक सदस्य बनकर शीर्ष नेता के रूप में उभरीं.
बेटी की कराई एंट्री: राजमाता विजय राजे सिंधिया ने 1984 में वसुंधरा राजे राजनीति में एंट्री कराई और भिंड-दतिया लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया, लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार श्री कृष्ण सिंह जूदेव से वे बुरी तरह हार गईं. मायके में बुरी तरह हार का सामना करने के बाद वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपनी ससुराल धौलपुर को राजनीतिक केंद्र बनाया और उसके बाद वर्ष ससुराल यानी राजस्थान में एक पावरफुल नेता के रूप में उभरीं. वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रही हैं. और प्रदेश बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार हैं.
कांग्रेस से जुड़े माधवराव सिंधिया:माधवराव कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाते थे और वह राजीव गांधी और सोनिया गांधी के बेहद करीब थे, लेकिन माधवराव सिंधिया के राजनीतिक कैरियर में भी एक बड़ा बदलाव सामने आया था. हवाला कांड में नाम आने के बाद उनकी राजनीति पर प्रश्न चिन्ह लग गया था. हालात यह हो चुकी थी और कांग्रेस से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन हार की बाजी पलटने में माहिर सिंधिया परिवार के मुखिया रहे महाराज सिंधिया ने मध्य प्रदेश विकास पार्टी का निर्माण किया और निर्दलीय जीत हासिल की. उसके बाद ले फिर कांग्रेस में शामिल हुए और एक बड़ा कार्यकाल उनके नाम रहा.
ज्योतिरादित्य के करियर में आए उतार चढ़ाव: वर्तमान में सिंधिया परिवार के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक करियर में कई उतार चढ़ाव आए हैं. उन्होंने ने भी अपने राजनीतिक जीवन मे हार का स्वाद चखा है, लेकिन हार की बाजी को पलटना सिंधिया परिवार बखूबी जनता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया परिवार की पैतृक सीट गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़े, उनके समर्थक कार्यकर्ता उन्हें करारी हार दे दी. ज्योतिरादित्य सिंधिया के चुनाव हारने के बाद पूरे देश भर की राजनीति में हलचल पैदा हो गई. बीजेपी में शामिल हुए अपने ही कार्यकर्ता से चुनाव हारने के बाद सिंधिया के राजनीतिक करियर का ग्राफ काफी नीचे आ गया और खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया इस हार से उभर नहीं पा रहे थे. उन्होंने बाजी पलटने की ठान ली. एमपी में कमलनाथ सरकार बनने के बाद कांग्रेस पार्टी में खुद को असहज महसूस कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी में शामिल होने के बाद सिंधिया का कद लगातार तेजी से बढ़ रहा है. पहले राज्यसभा सांसद और उसके बाद केंद्रीय मंत्री. बीजेपी की राजनीति में अब उनका अच्छा खासा वर्चस्व है. पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता और सिंधिया समर्थक यह मानते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में उन्हें सीएम पद की जिम्मेदारी भी मिलती है. राजघराने का यह राजनीतिक सफर बताता है कि सियासत का माहिर खिलाड़ी बन चुका सिंधिया परिवार अपनी पारिवारिक विरासत से कोई समझौता नहीं करता है. सिंधिया चुनावी रण हारने के बावजूद बाजी पलटने में माहिर हैं.