भोपाल.भारत जोड़ो यात्रा पर निकल रहे कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी मध्यप्रदेश पहुंचने पर नर्मदा में डुबकी भी लगाएंगे. मध्यप्रदेश की राजनीति में नर्मदा पट्टी की जो सियासत है. उसके मद्देनजर इसे केवल कांग्रेस के धार्मिक एजेंडे और इवेंट के तौर पर नहीं देखा जा सकता है. जिस राज्य में बीजेपी और कांग्रेस की नर्मदा परिक्रमाओं ने मध्यप्रदेश की चुनावी राजनीति और चुनाव नतीजों पर असर दिखाया हो. वहां विधानसभा चुनाव के साल भर पहले राहुल गांधी की नर्मदा में डुबकी के क्या कांग्रेस की सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति का संदेश है या फिर 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले नर्मदा पट्टी की सीटों तक पहुंचने की असरदार तैयारी
2018 में मिला था फायदा, अब नर्मदा से एंट्री: 2018 के टैम्पल रन के नतीजे कांग्रेस के लिए काफी फायदेमंद रहे थे. उस चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह ने नर्मदा यात्रा के दौरान कांग्रेस की जीत के बीच बो दिए थे. अब एक बार फिर 2023 के चुनाव से पहले इस बार कांग्रेस महासचिव एमपी की नर्मदा पट्टी में कांग्रेस की दमदार एंट्री कराने के लिए नर्मदा में डुबकी लगाना चाहते हैं.
यात्रा के दौरान कई धार्मिक स्थलों पर जाएंगे राहुल गांधी: कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की भारत जोड़ा यात्रा बुरहानपुर से एमपी में प्रवेश करेगी. इसके बाद मालवा से होते हुए राजस्थान का रुख करेगी. इस यात्रा की प्लानिंग में कांग्रेस ने कई ऐसे इवेंट शामिल किए हैं, जो एक पंथ कई काज के अंदाज में हैं. यात्रा के दौरान राहुल गांधी महाकाल के दरबार में माथा टेकने के साथ अन्य धार्मिक स्थलोंपर भी जाएंगे. क्षिप्रा और नर्मदा में डुबकी भी लगाएंगे. राहुल गांधी की नर्मदा में डुबकी एक साथ कई निशाने लगाने वाला दांव माना जा रहा है. ये कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व की करवट तो है ही साथ ही नर्मदा के किनारे वाली करीब 60 से ज्यादा सीटों तक संदेश पहुंचाना भी है.
80 से ज्यादा सीटों पर नर्मदा बड़ा सियासी मुद्दा: मध्यप्रदेश के सामाजिक और राजनीतिक सरोकारो में देखें तो नर्मदा केवल नदी नहीं है. मध्यप्रदेश के एक बड़े हिस्से के लिए ये जीवन रेखा है. नर्मदा में लोगों की आस्था इतनी है कि पिछले दस साल की राजनीति में नर्मदा परिक्रमा के सहारे सियासी दल चुनावी राजनीति का पांसा पलटते रहे हैं.राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से एक अनुमान के मुताबिक नर्मदा पट्टी के 16 जिलों में 80 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं जहां वोटर की नर्मदा में गहरी आस्था है. नर्मदा से जुड़े मुद्दे जैसे बढ़ता प्रदूषण,अवैध रेत खनन असर दिखाते हैं और इसके नतीजे मतपेटी तक जाते हैं.
2018 में दिग्विजय की नर्मदा परिक्रमा ने बदला सीन: यूं तो पूरे मध्यप्रदेश में नर्मदा के प्रति आस्था है. लेकिन प्रदेश के एक खास हिस्से के लिए नर्मदा नदी नहीं है बल्कि मां है जिसके सहारे इसके किनारे पर रहने वाले लोगों का जीवन चलता है. लिहाजा नर्मदा किनारे के लोग चुनावी बिसात में अक्सर उसके साथ खड़े दिखाई देते हैं जिसकी नर्मदा में गहरी आस्था है. साल 2018 में दिग्विजय की नर्मदा परिक्रमा ने सियासत का सीन बदल दिया था. 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले नर्मदा परिक्रमा पर निकले दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश की करीब 110 सीटों को कवर किया था. ऐसा कांग्रेस का दावा था. बेशक ये यात्रा राजनीतिक नहीं थी लेकिन इस परिक्रमा के बहाने दिग्विजय सिंह ने इस बड़े इलाके में कांग्रेस की जमीन मजबूत की थी. जिसके नतीजे 2018 के विधानसभा चुनाव में दिखाई भी दिए.
शिवराज भी नर्मदा सेवा यात्रा पर निकले थे:बीजेपी और सीएम शिवराज भी नर्मदा के आध्यात्मिक और सियासी महत्व बखूबी जानते हैं. सीएम शिवराज भी अपनी पिछली पारी में नर्मदा सेवा यात्रा पर निकले थे. करीब 148 दिनों की यात्रा के दौरान नर्मदा के किनारों को हरा भरा करने का अभियान चलाकर एक दिन में साढे छह करोड़ से ज्यादा पौधे लगाने का विश्व रिकार्ड बनाए जाने के दावे हुए. लेकिन इन दावों की हवा निकलते भी देर नहीं लगी.
डुबकी का दांव कहीं उल्टा ना पड़ जाए: वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राकेश दीक्षित कहते हैं अगर राहुल गांधी निजी आस्था में नर्मदा में डुबकी लगा रहे हैं तब तो ठीक है. बाकी इसका कोई राजनीतिक मैसेज है तो बीजेपी की फील्ड में कांग्रेस ने जब भी खेला है उसे नुकसान ही हुआ है. 2019 में राहुल गांधी का टैम्पल रन इसकी मिसाल कहा जा सकता है. दूसरी तरफ कांग्रेस भी अगर इसे बड़े रिलीजियस इवेंट की तरह प्लान कर रही है तो जरूरी नहीं कि हर बार उसे इसका कोई सियासी फायदा मिले यह तय नहीं माना सकता. कांग्रेस भी यह देख चुकी है कि बीजेपी के हिंदुत्व को कांग्रेस ने जब जब चुनौती दी है उसका फायदा बीजेपी को ही मिला है.