भोपाल। सेंट्रल जेल में बंद कैदियों को अखिल विश्व गायत्री परिवार ने पुरोहित बनाने का प्रशिक्षण शुरू किया है. कैदियों का यह प्रशिक्षण एक माह तक चलेगा. पीठ के घर-घर यज्ञ प्रकोष्ठ के संयोजक रमेश नागर ने बताया कि, शुरुआत में बंदियों को गृह, नक्षत्र, तिथि, पक्ष के और तीज-त्यौहारों पर होने वाले अनुष्ठानों के बारे में बताया जा रहा है. साथ ही संबंधित देवता के पूजन में इस्तेमाल होने वाले श्लोकों के बारे में विस्तार से समझाया जा रहा है. (Prisoners in Bhopal jail are learning Panditai)
भोपाल जेल में बंद कैदी सीख रहे पंडिताई संस्कृत भाषा का दिया जा रहा ज्ञान
कैदियों को संस्कृत भाषा का भी ज्ञान दिया जा रहा है. जिससे उन्हें श्लोक का भावार्थ समझने में आसानी होगी. प्रशिक्षण अवधि में यज्ञोपवीत, नामकरण, मुंडन सहित सभी 16 संस्कारों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी. इसके लिए उन्हें साहित्य भी उपलब्ध कराया जा रहा है. रमेश नागर के मुताबिक गायत्री शक्ति पीठ से जुड़े पुरोहित कैदियों को जेल में ही विशेष शिविर लगाकर धार्मिक कर्मकांड सिखा रहे हैं.
कैदियों में भी उत्साह
जेल में कैदियों को दिए जा रहे युगपुरोहित प्रशिक्षण के सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं. अखिल विश्व गायत्री परिवार युवा प्रकोष्ठ भोपाल एवं केंद्रीय जेल यह कार्यक्रम चला रहे हैं. 1 मार्च 22 से 8 प्रशिक्षक कैदियों को पुरोहित बनने का प्रशिक्षण दे रहे हैं. प्रशिक्षण में दोपहर 1 से 4 तक क्लास लगती है. इसमें कर्मकांड संस्कृत मंत्रों का सरलीकरण सिखाया जाता है. शाम को लगने वाली दूसरी क्लास में सुगम संगीत, तीसरे में बौद्धिक एवं अंतिम कालखंड में शंका समाधान का सत्र चलता है.
प्रशिक्षण का लिया गया टेस्ट
इस प्रशिक्षण का 15 दिन बाद टेस्ट लिया गया. जिसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं. पुरोहित बनने के गुर सीख रहे कैदियों में भी उत्साह देखने को मिला. कई कैदी बिना देखे मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करने लगे है. संगीत में ढपली वादन का भी अच्छा अभ्यास किया. खास बात यह है कि इस पुरोहित प्रशिक्षण शिविर में सभी जाति के कैदी शामिल हैं. वर्तमान में लगभग 50 कैदी पंडित बनने के गुर सीख रहे हैं. इस शिविर में वे कैदी शामिल हैं जिनकी सजा 3 वर्ष में पूरी होने वाली है. वे जेल से रिहा होने के बाद परिवार और समाज में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं. गायत्री परिवार की पहल भी इन कैदियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए ही है, ताकि वे जेल से रिहा होने के बाद समाज और अपने जीवन में बदलाव ला सकें.