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MP Nikay Chunav: चारों महानगरों में बीजेपी का झन्डा दशकों से बुलंद, जनता ने कांग्रेस को निकायोंं में नकारा, इस बार किसकी नैया पार? - People of Indore rejected Congress for 22 years

मध्य प्रदेश में चारों बड़े महानगरों (भोपाल, इंदौर, ग्वालियर व जबलपुर) में महापौर चुने जाने के लिए जनता मतदान कर चुकी है. चारों महानगरों में पिछले कई बार से बीजेपी का डंका बज रही है. इस बार दोनों दलों की क्या स्थिति है, भाजपा और कांग्रेस की क्या रणनीति रही और किस दल के प्रत्याशी की ओर जनता का रुझान है. पढ़ें पूरी खबर-

Competition between BJP Congress in Mayor election
महापौर चुनाव में बीजेपी कांग्रेस के बीच टक्कर

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Published : Jul 7, 2022, 7:16 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव का मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के ही बीच होता आया है. चार महानगरों का जिक्र करें, तो लगातार कांग्रेस को शिकस्त मिलती रही है. ग्वालियर में पिछले छह दशक से कांग्रेस महापौर से दूर है. तो इंदौर में 22 साल, जबलपुर 16 साल से और भोपाल 13 साल से महापौर की कुर्सी के लिए बेचैन है. ग्वालियर में 6 दशक से भगवा का रंग ऐसा चढ़ा है कि, कांग्रेस की लाख कोशिशों के बावजूद भी लोगों का मोह भगवा से भंग नहीं हो रहा. 58 साल में 17 महापौर जनता को मिले. इस बार बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस के विधायक सतीश सिकरवार की पत्नी शोभा सिकरवार से है, तो बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की समर्थक सुमन शर्मा पर भरोसा जताया है.

सिंधिया का ग्वालियर में नहीं चल पाया सिक्का: महाराज सिंधिया को ग्वालियर की जनता ने नकार दिया. पिछले चुनावों में भी सिंधिया के समर्थक मैदान में उतरे, लेकिन बीजेपी से मुकाबले में धराशाही हो गए. सिंधिया के दबदबे के बावजूद भी वह कभी अपना महापौर नहीं बना पाए. इस बार भी सिंधिया अपना पसंदीदा प्रत्याशी मैदान में नहीं उतार पाए. ग्वालियर से नरेंद्र सिंह तोमर की समर्थक सुमन शर्मा को टिकट दिया गया है.

इंदौर की जनता ने कांग्रेस को 22 साल से नकारा: इंदौर में पिछले 22 साल से बीजेपी महापौर पद पर काबिज रही है. 1995 में कांग्रेस से मधु वर्मा महापौर थे, इसके बाद महापौर की कुर्सी कभी भी कांग्रेस के हाथ नहीं आई. कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में मतदाता का दिल तो जीता, लेकिन नगरीय निकाय चुनाव में जनता ने कांग्रेस को नकारा दिया. इस बार चेहरा संघ का है, तो वहीं कांग्रेस ने करोड़पति विधायक संजय शुक्ला को मैदान में उतारा है.

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भोपाल में बीजेपी-कांग्रेस प्रत्याशी के बीच टक्कर: भोपाल की महापौर सीट कांग्रेस के लिए राहत वाली है. यहां पर सुनील सूद और विभा पटेल महापौर रह चुके हैं. हालांकि ये सीट 13 साल से बीजेपी के कब्जे में है. कृष्णा गौर फिर आलोक शर्मा ने महापौर की सीट जीती. यहां समीकरणों की बात करें, तो बीजेपी ने दो बार पार्षद चुनाव हार चुकी मालती राय को उम्मीदवार बनाया है, तो वहीं कांग्रेस ने पूर्व महापौर विभा पटेल पर फिर भरोसा जताकर टिकट दिया है.

जबलपुर में कांग्रेस की स्थिति खराब: जबलपुर में कांग्रेस को 1994 में जीत हासिल हुई थी और विश्वनाथ दुबे महापौर चुने गए थे. लेकिन उसके बाद जबलपुर से कांग्रेस का कोई महापौर उम्मीदवार सफल नहीं हो पाया. जबलपुर से 20 महापौर बन चुके हैं. इस बार बीजेपी ने संघ और शिवराज के करीबी जितेंद्र जामदार को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस से जगत बहादुर सिंह मैदान में हैं.

बीजेपी की रणनीति: हर बार की तरह बीजेपी ने मंदिर जाकर भगवान से जीत का आशीर्वाद मांगा. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उज्जैन महाकाल दरबार में माथा टेक कर नगरीय निकाय चुनाव का आशीर्वाद भगवान भोले से लिया. बीजेपी में दिग्गज एक साथ प्रत्याशी के साथ खड़े दिखाई दिए और विकास का मॉडल सामने रखकर जनता के बीच भाजपा जनता के बीच गई, तो वहीं संगठन भी पूरे दमखम के साथ मैदान में डटा रहा.

कांग्रेस की रणनीति: कांग्रेस का फोकस बीजेपी सरकार की कोरोना काल की असफलता और भ्रष्टाचार के मुद्दे को सड़कों तक ले जाने पर रहा. कांग्रेस ने महापौर प्रत्याशी पहले घोषित कर दिए थे, लिहाजा चुनाव प्रचार प्रसार में भी पार्टी जोरों शोरों से जुटी रही. प्रचार की कमान पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने संभाली. कांग्रेस ने अपना वचन पत्र तो जनता तक पहुंचाया ही, साथ ही भाजपा सरकार की कमियां भी जनता को गिनाईं.

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