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चुनाव प्रचार में नेताओं ने लांघी भाषा की मर्यादा, अधर्मी, राक्षस और पापी जैसे शब्दों का हुआ इस्तेमाल

कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही पार्टियों के एक-दूसरे पर व्यक्तिगत टीका टिप्पणियां कर रहे हैं. जैसे-जैसे उपचुनाव के मतदान की तिथि नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे ये जुबानी जंग व्यक्तिगत आरोपों पर फोकस होती जा रही है.

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चुनाव प्रचार में नेताओं ने लांघी भाषा की मर्यादा

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Published : Oct 19, 2021, 9:47 PM IST

भोपाल। प्रदेश में हो रहे उप चुनाव के दौरान पार्टी के मेनीफेस्टो और प्रोग्राम जैसे मुद्दों से लेकर हटकर चुनावी जंग अब जुबानी जंग में बदलती जा रही है. नेताओं के आरोप- प्रत्यारोप अब व्यक्तिगत होते जा रहे हैं. कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही पार्टियों के एक-दूसरे पर व्यक्तिगत टीका टिप्पणियां कर रहे हैं. जैसे-जैसे उपचुनाव के मतदान की तिथि नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे ये जुबानी जंग व्यक्तिगत आरोपों पर फोकस होती जा रही है.

चुनाव प्रचार में नेताओं ने लांघी भाषा की मर्यादा
चुनाव प्रचार में नेताओं ने लांघी भाषा की मर्यादा

राक्षस, अधर्मी, पापी जैसे शब्दों का हुआ इस्तेमाल

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नेताओं को राजनीति में व्यक्तिगत आरोपों से बचना चाहिए क्योंकि आम जनता और समाज के लोग उन्हें अपना रोल रोल मॉडल मानते हैं. यह बात दोनों ही दलों के नेता भी मानते हैं, लेकिन वे अपनी जुबान को लगाम नहीं लगा पा रहे हैं. खंडवा लोकसभा सीट हो या रैगांव ,पृथ्वीपुर और जोबट विधानसभा प्रदेश का सियासी पारा यहां गरमाया हुआ है. आए दिन राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे पर व्यक्तिगत छींटाकशी कर रहे हैं. कुछ बयानों पर नजर डालें तो

- पीसीसी चीफ और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मैं तब से सांसद हूं जब बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष निक्कर पहनना सीख रखा था.

- पलटवार करते हुए वीडी शर्मा ने कमलनाथ को नेहरू परिवार का दरबारी कहा था.

- गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और सीएम शिवराज ने कमलनाथ पर परिवारवाद फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कांग्रेस में सीनियर लीडर कमलनाथ और युवा नेता नकुलनाथ हैं बाकी सब अनाथ हैं.

-बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को अधर्मी और पापी तक कह डाला.

- एक कांग्रेस विधायक रामचंद्र दांगी ने भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर को राक्षसी प्रवृत्ति की महिला बता दिया.

1975 के बाद राजनीति में आया व्यक्तिगत छवि बिगाड़ने का ट्रेंड

राजनीतिक विश्लेषक रमेश शर्मा का कहना है कि 1975 के बाद भारतीय राजनीति में व्यक्ति पर हमला करने जैसा नया परिवर्तन आया है. ऐसा भी कहा जा सकता है कि राजनीति में भाषायी मर्यादा को लेकर गिरावट आई है. शर्मा का कहना है कि नेताओं को व्यक्तिगत आरोपों से बचना चाहिए और कभी ऐसा हो भी तो भाषा संयत और शालीन ही होनी चाहिए, यही आदर्श राजनीति वाली स्थिति होती है.

चुनाव प्रचार में नेताओं ने लांघी भाषा की मर्यादा
चुनाव प्रचार में नेताओं ने लांघी भाषा की मर्यादा

राजनीतिक विश्लेषक राजेश चतुर्वेदी का मानना है कि लोगों के आकर्षण का केंद्र बनने और चर्चा में बने रहने के लिए नेता एक दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप लगाते हैं. इसके पीछे पॉपुलरिटी भी एक वजह होती है. चतुर्वेदी कहते हैं कि नेता समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और लोग नेताओं को अपना रोल मॉडल मानते हैं लेकिन नेता अगर अपना आचरण नहीं सुधारेंगे तो स्थिति और बिगड़ने वाली है.

अमर्यादित व्यवहार के लिए ठहरा रहे एक-दूसरे को दोषी

इस पूरे मामले को लेक कांग्रेस प्रवक्ता अजय यादव का कहना है कि भाजपा के नेता उपचुनाव में मुद्दों से भाग रहे हैं वे वैचारिक रूप से दिवालिया हो चुके हैं. बीजेपी ने नेता महंगाई ,बेरोजगारी, महिलाओं पर अत्याचार ,आदिवासी- किसानों पर अत्याचार जैसे मुद्दों पर बात नहीं करते. जनता को उनके सवालों का जवाब नहीं देते और इधर उधर के की बात कर जनता को मुद्दों से भटकाने की कोशिश करते हैं. वे यह भी दावा करते हैं कि भाजपा की यह साजिश सफल नहीं होने वाली है. जनता बीजेपी को इसका जवाब देने जा रही है. यादव कहते हैं कि चुनाव में मुद्दों पर ही बात होनी चाहिए, व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी केवल मानसिक और वैचारिक दिवालियापन दिखाती है.

बिलो द बेल्ट जाकर कमेंट्स कर रहे कांग्रेस नेता

भाजपा प्रवक्ता लोकेंद्र पाराशर का कहना है कि चुनाव के दौरान किसी को भी बिलो द बेल्ट जाकर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. उन्होंने कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए कहा कि कांग्रेस के नेता कमलनाथ मंच से लोकायुक्त को फर्जी कह देते हैं. उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि कांग्रेस के अंदर ही फर्जी और असली का खेल चल रहा है. उन्होंने कहा कि कमलनाथ का दोबारा मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना शेखचिल्ली के सपने जैसा है जो कि पूरा नहीं होने वाला.



अमर्यादित टीका-टिप्पणी करने के मामले पर सफाई देते कांग्रेस और बीजेपी के प्रवक्ता भी भाषा की मर्यादा लांघते दिखे. इन बयानों का मतलब यही निकाला जा सकता है नेताओं के लिए अब राजनीति का मतलब सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीतना ही रह गया है. फिर इसके लिए चाहे जुबान से गिरना पड़े या इमान से गिरना पड़े.

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