भोपाल।प्रदेश सरकार ने सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों के लिए चिकित्सा बिलों के देयकों के लिए लिमिट तय कर दी है. कर्मचारी के स्वयं और परिवार के आश्रित सदस्य के ओपीडी के रुप में उपचार के लिए अब एक साल में बीस हजार रुपए से अधिक के चिकित्सा प्रतिपूर्ति दावों को स्वीकृति नहीं दी जाएगी. अस्पताल में भर्ती मरीजों, लंबे उपचार वाले मरीजों के मामले में यह बंधन नहीं रहेगा. मध्य प्रदेश तृतीय कर्मचारी संघ के महामंत्री लक्ष्मीनारायण शर्मा का कहना है कि, 'नियमों में संशोधन के बाद जो सीमा तय की गई है, इससे शायद ही कोई प्राइवेट अस्पताल कर्मचारियों का इलाज करे. पूर्व की दरों को कम कर दिया गया है, जिससे इलाज कराना मुश्किल होगा'.
राज्य स्तरीय समिति की अनुशंसा पर स्वीकृत किए जाएंगे: राज्य सरकार ने अलग-अलग स्थानों और राज्यों में चिकित्सा के लिए शासकीय कर्मचारियों के लिए अब दरें तय कर दी है. अस्पताल में भर्ती मरीजों के उपचार के लिए चिकित्सा प्रतिपूर्ति के सभी दावों की भोपाल शहर के लिए तय अधिकतम सीजीएचएस दरों की सीमा में प्रतिपूर्ति की जाएगी. नियम पैकेज से अधिक उपचार खर्च की प्रतिपूर्ति नियमों में तय सीमा तक की जाएगी. आपातकालीन चिकित्सीय अवस्था में अस्पताल में भर्ती रोगी के रूप में उपचार होंने पर राज्य के भीतर या राज्य के बाहर जहां की भोपाल शहर के लिए सीजीएचएस पैकेज दरें उपलब्ध न हो, वहां पांच लाख रुपए तक के दावों को संभागीय समिति की अनुशंसा पर स्वीकृत किया जाएगा.
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इलाज कराने पर ही प्रतिपूर्ति हो सकेगी: संभागीय समिति में संभागीय शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय के डीन अध्यक्ष और क्षेत्रीय स्वास्थ्य संचालक सदस्य सचिव व संयुक्त संचालक कोष एवं लेखा भुगतान की अनुशंसा करेंगे. आपातकालीन चिकित्सीय अवस्था में भर्ती होकर उपचार कराने पर राज्य के भीतर या बाहर जहां भोपाल शहर के लिए केन्द्र सरकार स्वास्थ्य योजना पैकेज दरें उपलब्ध न हो, वहां पांच लाख से अधिक और बीस लाख से कम के दावे राज्य स्तरीय समिति की अनुशंसा पर स्वीकृत किए जाएंगे. राज्य स्तरीय समिति में संचालक स्वास्थ्य, संचालक चिकित्सा शिक्षा और अपर संचालक कोषालय शामिल रहेंगे, जो निजी चिकित्सालय सूचीबद्ध होंगे वहां इलाज कराने पर ही प्रतिपूर्ति हो सकेगी.
प्रदेश के साढे सात लाख कर्मचारियों पर इसका असर पड़ेगा: कर्मचारिंयो के माता पिता, पत्नि सौतेली या गोद ली संतान, तलाकशुदा पुत्री भी काउंट होगी. हालांकि दो से ज्यादा संतानों होने पर लाभ नहीं मिलेगा. प्रदेश के साढे सात लाख कर्मचारियों पर इसका असर पड़ेगा. दरअसल चिकित्सा परिचर्या नियमों में लंबे समय से संशोधन की प्रकिया चल रही थी. इसके तहत नियमों में राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है. महिला कर्मचारी के माता पिता को यह लाभ तभी मिलेगा, जब वे पूरी तरह से पुत्री पर ही निर्भर रहेंगे. वहीं बांझपन के इलाज की सुविधा सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए ही रहेगी. इसके लिए निजी अस्पतालों को संलग्न किया गया है, राज्य के बाहर निजी चिकित्सालय को सूचीबद्ध करने का निर्णय अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव की अध्यक्षता वाली समिति करेगी.