भोपाल।ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश की राजनीति में असली बाजीगर बनके उभरे हैं. लोकसभा चुनाव हारने के बाद माना जा रहा था कि राजनीति में महाराज का राज अब खत्म होने लगा है. सिंधिया राजघराने का गढ़ रहे गुना-शिवपुरी से चुनाव हार जाना और वो भी एक अनजान शख्स से ऐसे में राजनीति के जानकारों और सिंधिया विरोधियों को लग रहा था कि ग्वालियर-चंबल संभाग में 'महल' की धाक अब पहले जैसी नहीं रही है, लेकिन बीते कुछ दिनों में ही सारा खेल बदल चुका है. चुनावी बाजी हारने वाले सिंधिया हार कर भी जीत गए और उनकी यह जीत धमाकेदार कही जा सकती है.
हारी बाजी को जीतना...आता है
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अपराजेय माने जाते रहे सिंधिया का भ्रम पार्टी की भितरघात के चलते टूट गया. उनके मुकाबले कोई बड़ा नेता मैदान में नहीं था बावजूद इसके एक अनजान से लोकल चेहरे से चुनाव हार जाना शायद सिंधिया को भी खल गया था. कांग्रेस में पहले सीएम न बनाया जाना, फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से भी उनका पत्ता साफ होना और रही सही कसर राज्यसभा के जरिए दिल्ली पहुंचने की कोशिश को भी रोकने की तमाम कोशिशें उनके विरोधियों ने की. विरोधी काफी हद तक कामयाब भी रहे, लेकिन यहीं बाजीगर सिंधिया ने 'दादी वाला दांव' चला और उन्हें राजनीति करने से रोकने वालों को राजनीति सिखा दी. सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए और प्रदेश में 15 साल के इंतजार के बाद बनी कांग्रेस की सरकार एक झटके में ही 'सड़क' पर आ गई.
खुद को और ज्यादा मजबूत किया
बीेजेपी में शामिल होने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया सीधे पार्टी हाईकमान से मिले. प्रदेश की राजनीति से दूरी बनाए रखने के संकेत उन्होंने पहले ही दे दिए थे. मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद चुने जाने के बाद दिल्ली पहुंचे सिंधिया प्रदेश में कम ही आए. हाल ही में अपने समर्थकों को उचित पद दिलाने की कवायद के चलते सीएम शिवराज सिंह और पार्टी अध्यक्ष वीडी शर्मा से मुलाकात हुई थी. इसके बाद सिंधिया एक बार फिर दिल्ली लौट गए. इस दौरान वे प्रदेश में अपनी ताकत बढ़ाते रहे. मोदी कैबिनेट में शामिल होने के बाद वे एक बार फिर ताकतवर होकर उभरे हैं. चुनाव हार कर भी कैबिनेट मंत्री बनने तक का उनका सफर उनके विरोधियों के लिए करारा जवाब है जो चुनावी हार को यह मान रहे थे सिंधिया का राजनीतिक करियर अब ध्वस्त हो गया है. ऐसे लोगों को ज्योतिरादित्य ने बता दिया है कि वे फ्रंटलाइन नेता हैं और वही रहेंगे. 2018 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में खुद शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेशभर में 'माफ करो महाराज' का नारा देकर बता दिया था कि उनकी असली लड़ाई सिंधिया से ही है, लेकिन अब बाजी पलट चुकी है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ली कैबिनेट मंत्री की शपथ
अपने ही समर्थक रहे केपी यादव से हारे थे चुनाव
2019 के लोकसभा चुनाव में दे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने ही समर्थक डॉ. कृष्णपाल सिंह यादव से एक लाख 25 हजार से ज्यादा वोट से चुनाव हार गए थे. डॉ. केपी यादव, जो पहले कांग्रेस से ही ग्रामीण क्षेत्र की राजनीति करते थे. इसी दौरान उनका सिंधिया से सम्पर्क हुआ जिसके बाद केपी ने सिंधिया को ही अपना नेता माना. सिंधिया ने भी डॉ. केपी में काबिलियत देखी और उन्हें अपना प्रतिनिधि बना दिया. डॉ. केपी यादव विधानसभा का चुनाव लड़ने की इच्छा रखते थे. उन्हें भरोसा था कि 2018 में सिंधिया उनका यह सपना पूरा करेंगे, लेकिन टिकट डॉ. बृजेंद्र सिंह यादव को मिला. इसके बाद अपना सपना पूरा ना होते देख डॉ. केपी ने भाजपा के साथ चले गए. विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन महज ढाई हजार वोट से चुनाव हार गए. बावजूद इसके मोदी लहर में उन्हें संसदीय चुनाव लड़ने का टिकट मिला. चुनाव प्रचार के दौरान सिंधिया और केपी की वह सेल्फी भी वायरल हुई, जिसमें उनके और सिंधिया के कद को लेकर कुछ बात कही गई. यही इस चुनाव का टर्निंग प्वाइंट बना और लोकल सपोर्ट से केपी यादव ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे राजनीति के दिग्गज को मात दे दी. बीते समय में राजनीति के बनते बिगड़ते संबंधों के बीच सिंधिया एक बार फिर हार के बावजूद अपने विरोधियों से जीत गए हैं.